इस वर्ष 2 अक्टूबर 2022 को महात्मा गांधी की 153वीं जयंती मनाई जा रही है। स्वतंत्रता दिवस 2022 के अवसर पर भारत में आजादी के 76 साल की वर्षगांठ मनाई गई। 15 अगस्त 1947 की नई सुबह देखने के लिए मंगल पांडेय से लेकर भगत सिंह तक कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए। स्वतंत्रता सेनानियों में महात्मा गांधी ने सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अहिंसा के मार्ग पर चलकर गांधी जी के आजाद भारत का सपना साकार किया गया। महात्मा गांधी के आंदोलनों में चंपारण आंदोलन, खेड़ा आंदोलन, खिलाफत आंदोलन, असहयोग आंदोलन, नमक मार्च और भारत छोड़ो आंदोलन ने लोगों को आजादी के लिए प्रेरित किया।
लोग महात्मा गांधी जी के आन्दोलनों में जुड़ते गए और आजादी की राह को आसान बनाते गए। अंत में 15 अगस्त 1947 को भारत ब्रिटिश राज से आजाद हुआ। स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में महात्मा गांधी पर भाषण लिखने की तैयारी कर रहे हैं तो करियर इंडिया हिंदी आपके लिए सबसे बेस्ट महात्मा गांधी पर भाषण लेकर आया है, जिसकी मदद से आप आसानी से महात्मा गांधी पर भाषण लिख सकते हैं।
महात्मा गांधी पर भाषण
अगर आज गांधीजी जिंदा होते तो 2 अक्टूबर 2022 को 153 साल के हो जाते, लेकिन आज गांधी जी हम सबके मन में जिंदा है। इस साल 2 अक्टूबर 2022 को महात्मा गांधी की 153वीं जयंती मनाई जाएगी। मेरे लिए हर दिन के अचरण में गांधीजी के जीवनदर्शन को उतारना ही सही मायनों में गांधीवादी होना है और सही मायनों में उनके प्रति सम्मान व्यक्त करना है। गांधी जी ने भारत की आजादी के लिए अपना पूरा जीवन देश को समर्पित किया। देश में उनके अतुलनीय योगदान के लिए उन्हें राष्ट्रपिता का दर्जा दिया गया और उनके नाम में महात्मा शब्द जोड़ा गया। जयंती मनाना महज एक रस्म अदायगीभर होती है। महत्वपूर्ण यह है कि क्या हमारे जीवन में उस जीवन का कोई अंश या प्रभाव है, जिसकी हम जयंती मना रहे हैं? अगर ये होता है तो वह फिर हमारी जिंदगी एक नई राह पर चलती है।
किसी के प्रति सम्मान का सबसे सही तरीका यही है, इसलिए मुझे गांधी जयंती मनाने या उनके भव्य कार्यक्रम में जाने से ज्यादा उनके विचारों को जीवन में उतरना है। भारत जिस तरह की समरस्ता के लिए सदियों से जाना जाता रहा है और जिस तरह के भारत को दुनिया जानती, मानती व सम्मान करती है, उस समरस भारत की तो अब छवि ही ध्वस्त की जा रही है। एक मुल्क के लिए और एक समाज के लिए वह आईना उसकी सूरत को दिखाने वाला आईना नहीं होता बल्कि उसकी आत्मा को दर्शाने वाला आईना होता है। सूरत को हम चाहे जितनी साफ सुथरी बनाकर रखें, उसे सुंदर गढ़ लें, लेकिन जो आईना हमारी आत्मा को दिखाता है, उसे हमारी सूरत से कुछ लेना देना नहीं होता। इसलिए गांधीजी के विचारों का सम्मान करें, यही हमें गांधीवादी बनता है।
जब तक कि हम गांधीजी के जीवनदर्शन को अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में नहीं उतारते, तक तब उनके सपनों का भारत का निर्माण नहीं होगा। मुझे चिंता इस बात की है कि गांधीजी को उत्सव में तब्दील करने के बाद भी मुल्क के आईने में जो हमारी आत्मा की तस्वीर नजर आयेगी, क्या उसे हम खुद स्वीकार कर पायेंगे? यह गांधी की छवि पूजा का दौर है, उनका दिनरात खूब नाम लिया जा रहा है। लेकिन अपने जीवन और अपनी सोच में उन्हें बिल्कुल जगह नहीं दी जा रही। इसका बहुत बुरा असर पड़ा रहा है। गांधी के नाम पर जो बड़े बड़े कार्यक्रम करने की होड़ लगी हुई, वह दरअसल जनता को कन्फ्यूज करने के लिए है। जनता को यह बताने या दर्शाने की कोशिश की जा रही है कि सरकार गांधीजी के बताये हुए मार्ग पर चल रही है और इसी के बल पर उससे अपने लिए समर्थन मांगा जाता है।
जब लोग नासमझी में किसी को समर्थन देते हैं तो ऐसे लोग गर्व से यह कहते हें, उन्हें जनता ने चुना है। यह गांधी दर्शन के साथ एक राजनीतिक साजिश है। लेकिन मैं समझता हूं, जो खरा है, वो कभी खत्म नहीं होगा। इतिहास गवाह है जो खरा है, उसे थोड़े समय तक के लिए भले बरगला दिया जाए लेकिन कोई भी ताकत खरे प्रभाव को कभी भी खत्म नहीं कर सकती। अगर गांधीजी को इस किस्म से बरगलाना आसान होता तो अब तक दुनिया में गांधीजी का प्रभाव खत्म हो गया होता। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हर गुजरते दिन के साथ गांधीजी पहले से ज्यादा महत्वपूर्ण और पहले से ज्यादा दुनिया की जरूरत बन गए हैं, जो लोग गांधीजी की मूर्ति की पूजा के बहाने अपने मंसूबो को अंजाम देने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें मालूम होना चाहिए कि नकली भक्ति हमेशा के लिए कभी नहीं टिकती, वह जल्दी बेनकाब हो जाती है।
गांधीजी के साथ कुछ वैसा ही हो रहा है जैसा मर्यादा पुरुषोत्तम राम के साथ हुआ या हो रहा है। जो लोग राम के भक्त कहलाने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें वह मर्यादा पुरुषोत्तम राम याद नहीं आता जिसके कारण उन्हें भगवान का दर्जा मिला। वह तो बस राम का नाम लेकर अपनी राजनीति को चमकाना चाहते हैं। इसी तरह गांधी के साथ हो रहा है। इस दौर के राजनेता आईकोनिक पूजा का दिखावा करते हैं, लेकिन जिन्हें अपना आदर्श बताते हैं, कभी उनके कदमों पर चलने की कोशिश नहीं करते। क्योंकि यह उन्हें बहुत कठिन लगता है और यह भी सही है कि उनकी फितरत भी अलग है। आज के दौर में राजनीति, आईकोनिक पूजा के बहाने अपने उद्देश्यों को गाठने की कोशिश करती है। इस क्रम में भले उसे अपने ही आर्दश की छवि के साथ नाइंसाफी करनी पड़े।
बापू के साथ भी यही कोशिश हो रही है। लेकिन जनता अब ऐसी नहीं है कि राजनेताओं के बरगलाने पर वह लंबे समय तक बरगलायी जाती रहे। अब जनता का भ्रमित होना आसान नहीं है। हां, थोड़े बहुत लोग भ्रमित हो भी रहे हैं तो उसकी वजह यह है कि आज की दुनिया में ऐसे लोग दिखते ही नहीं जिनकी तुलना गांधीजी से की जा सके या जिन्हें आज के दौर का गांधी कहा जा सके। किसी भी महान आत्मा से दर्शाया गया प्रेम हमारे आचरण और व्यवहार में तभी दिखता है जब वह सच्चा या सचमुच का प्रेम हो। अभी जो बापू के प्रति प्रेम दिखता है, जो भक्ति दिखती है, वह एक छलावा है। बापू के नाम पर अपने ही एजेंडा को सेट करने का षडयंत्र है, एक तरह से बापू का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस सबसे देश को कोई फायदा नहीं होगा, देश को फायदा तब होगा जब हम उनके बताए मार्ग पर चलेंगे।