Children's Day 2022 Speech On Child Trafficking In India (बाल तस्करी पर भाषण) एनसीआरबी रिपोर्ट के मुताबिक साल 2021 में 73535 बच्चे गायब हो गए। अगर पिछले 5 सालों की बात करें तो गायब होने वाले बच्चों की संख्या 340000 है। पिछले 5 सालों से हर साल औसतन 68000 बच्चे गायब होते रहे हैं। कोरोनावायरस महामारी के दौरान भी 59263 बच्चे गायब हो गए थे। गायब होने वाले बच्चों में 75 फ़ीसदी लड़कियां होती हैं। यह आंकड़े हमारे देश समाज की उसको कुरूप छवि को उजागर करती है, जो बच्चों के लिए बेहद असुरक्षित होती जा रही है। इससे बच्चों की बेहतरी को सुनिश्चित करने के लिए हर साल मनाए जाने वाले बाल दिवस की सार्थकता पर भी सवाल खड़े होते हैं। हमारे देश में आजादी के 60 के दशक से ही लगातार बाल दिवस मनाया जा रहा है। पहले बाल दिवस 20 नवंबर को मनाया जाता था, लेकिन 1964 के बाद बाल दिवस पंडित जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिन 14 नवंबर को मनाया जाता है। हर साल बाल दिवस के मौके पर बच्चों के विकास उनकी सुरक्षा आदि को लेकर बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं, लंबे चौड़े भाषण दिए जाते हैं। लेकिन देश में बच्चों की क्या दयनीय स्थिति है इसका अंदाजा एनसीआरबी द्वारा जारी आंकड़ों से लगाया जा सकता है।
बाल तस्करी के लिए कौन जिम्मेदार है
हालांकि एनसीआरबी के आंकड़े ही चिंताजनक हैं, जबकि बच्चों के लिए काम करने वाली कुछ संस्थाएं इन आंकड़े को भी वास्तविकता से बहुत कम मानती है। उनके मुताबिक हर साल लगभग 10 लाख बच्चे पूरे देश से गायब हो रहे हैं। देश में हर साल 30 सेकंड में कोई एक बच्चा घरवालों से बिछड़ जाता है। कहां जाता है किसी को पता नहीं। इनमें कई बच्चे तो वापस आ जाते हैं, लेकिन तमाम बच्चे कभी वापस नहीं आते। संचार साधनों के गहन विस्तार, शहरीकरण, बढ़ती साक्षरता दर इन सब बातों का बच्चों के खोए जाने को रोकने में कोई मदद नहीं मिलती। उल्टा जैसे-जैसे शहरीकरण और आधुनिक संचार तकनीकी का दायरा बढ़ रहा है, यातायात के साधनों में इजाफा हुआ है, साक्षरता दर बढ़ी है, उसी अनुपात में बच्चों के खोने का ग्राफ भी ऊपर चढ़ा है। आंकड़ों के मुताबिक कुछ ही बच्चे की पुलिस में गुमशुदगी की रिपोर्ट दिखाई जाती है। बहुत सारे बच्चों के बारे में तो लोगों को तभी पता चलता है जब निठारी जैसा कोई भगवा हादसा सामने आता है। यानी सामाजिक और कानूनी उदासीनता इसके लिए काफी हद तक जिम्मेदार हैं।
कैसे रुकेगी बाल तस्करी
ऐसा नहीं है कि बच्चों के गायब होने का यह सिलसिला हाल ही में शुरू हुआ हो। अतीत में भी बच्चे गायब होते रहे हैं। उनको गायब किया जाता रहा है। लेकिन उनके साथ उस तरह की ज़्यादतियां नहीं होती थी। जो आजकल गायब होने वाले बच्चों के साथ होती हैं। हाल के दशकों में खोए हुए बच्चों के साथ जिस तरह अपराधिक घटनाओं का खुलासा हुआ है, वह रोंगटे खड़े कर देने वाला है। इनमें से कईयों के साथ रेप जैसी वारदातें होती हैं। गुस्सा या विरोध करने पर इन्हें मार दिया जाता है। इनके शरीर के विभिन्न अंगों का चोरी छुपे कारोबार किया जाता है। हालांकि अब राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग इस संबंध में सक्रिय हुआ और विभिन्न सरकारों और गैर सरकारी एजेंसियों को यह बताने की कोशिश हो रही है कि बच्चों के बारे में तमाम कल्याणकारी योजनाएं और नीतियां तब तक बेकार है जब तक उनकी सुरक्षा का कोई पुख्ता बंदोबस्त नहीं किया जाता। जरूरत है कि सरकार, कानून व्यवस्था के साथ समाज भी अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर सजग बने, तभी बच्चों के गायब होने का सिलसिला थमेगा।