काई भी व्यक्ति जब एक स्टार्टअप लॉन्च करने की सोचता है, तब सबसे पहला प्रश्न उसके ज़हन में आता है - क्या मैं अकेले सब कुछ कर पाउंगा? क्या मैं अकेले एक कंपनी हो उस ऊंचाई तक ले जा पाउंगा जैसा मैने सोचा है? क्या मुझे अपने साथ किसी को-फाउंडर को जोड़ना चाहिए? क्या मैं अपनी कंपनी के को-फाउंडर पर इतना विश्वास कर पाउंगा? अगर हां, तो वो को-फाउंडर कौन होना चाहिए और कैसा होना चाहिए?
जी हां! अगर आप एक स्टार्टअप या कोई फर्म शुरू करना चाह रहे हैं तो ऐसे तमाम सवाल आपके मन में घूम रहे होंगे। ऐसे में क्या करना चाहिए? आपकी कंपनी के लिए को-फाउंडर जरूरी है भी या नहीं, यह भी तय करना मुश्किल होगा। तो आइये हम आपकी मुश्किलों को कम करते हैं। जी हां हम आपके सामने इन सवालों के प्रश्नों के उत्तर रखने जा रहे हैं। खास बात यह है कि ये उत्तर हम नहीं, या हमारा कोई रिसर्च नहीं देगा, बल्कि स्वयं कंपनियों के फाउंडर देंगे।
स्टार्टअप में को-फाउंडर जरूरी है या नहीं?
इससे जुड़े सवालों के जवाब देंगे ये चार लोग-
- दिलशाद बिलिमोरिया, फाउंडर एवं प्रबंध निदेशक, दिलज़र कंसल्टेंट प्राइवेट लिमिटेड, बेंगलुरु
- बी श्रीनिवासन, निदेशक श्री सिडविन फाइनेंशियल सर्विसेस एंड इंवेस्टमेंट प्राइवेट लिमिटेड, बेंगलुरु
- युवा राजा, प्रबंध निदेशक, बीओएचओ फिनसर्व प्राइवेट लिमिटेड, बेंगलुरु
- अरुण ठकराल, पूर्व महानिदेशक एवं सीईओ एक्सिस सिक्योरिटीज़
दअससल 5 जुलाई को भारतीय प्रबंध संस्थान (आईआईएम) बेंलुरु में एफपीएसबी इंडिया द्वारा फाइनेंशियल प्लानिंग प्रोफेशनल्स के लिए एक बूट कैम्प का आयोजन किया गया था। इस बूटकैम्प के एक सत्र में उपर्युक्त चारों इंडस्ट्री एक्सपर्ट एकत्र हुए और करियर इंडिया भी इस सत्र का साक्षी बना। इस सत्र का फोकस किसी भी स्टार्टअप के पहले पांच कस्टमर पर था साथ ही में चर्चा हुई कि क्या किसी कंपनी को शुरु करते समय साथ में को-फाउंडर होना चाहिए या नहीं?
एक स्टार्टअप के लिए क्यों जरूरी है को-फाउंडर?
इस सवाल के जवाब में सिडविन फाइनेंशियल के निदेशक बी श्रीनिवासन ने कहा कि किसी भी स्टार्टअप के लिए को-फाउंडर होना बहुत जरूरी है। इससे आपका बिजनेस में कॉन्फिडेंस बना रहता है। जब कभी भी आप के निर्णय गलत दिशा में जाते हैं, तब उन्हें ठीक करने वाला कोई साथी होता है। साथ ही आपका वर्कलाइफ बैलेंस बना रहता है। जैसा कि सभी जानते हैं कि स्टार्टअप को रन करने के लिए 24X7 काम करना होता है, और यह एक व्यक्ति के बस की बात नहीं। ऐसे में अगर आपके साथ को-फाउंडर है, तो आपका वर्क लाइफ बैलेंस बना रहता है। आप अपने परिवार को समय दे पाते हैं। को-फाउंडर के नहीं होने पर आप एक दिन की छुट्टी नहीं ले सकते, जबकि उककी उपस्थिति में आप चाहें तो 20 दिन की छुट्टी लेकर विदेश यात्रा भी कर सकते हैं।
क्या होता है जब एक स्टार्टअप में होता है को-फाउंडर?
हम सब जानते हैं कि जब किसी स्टार्टअप में को-फाउंडर नहीं होता है, तब सारा काम फाउंडर को करना होता है। सारे बड़े निर्णय खुद लेने होते हैं। इसी बात को आगे बढ़ाते हुए बीओएच के एमडी युवा राज ने कहा कि जब आपके साथ को-फाउंडर नहीं होता है, तब आप अपना 70 प्रतिशत समय उन कार्यों में व्यर्थ गंवा देते हैं, जो कोई और भी कर सकता था। ऐसे में बेहतर होगा कि आप पहले ही दिन से को-फाउंडर को साथ लें और टीम बनाकर आगे बढ़ें। ध्यान रहे कोई भी कंपनी हो, छोटी या बड़ी, उसके मुखिया का समय बहुमूल्य होता है।
कैसा होना चाहिए एक स्टार्टअप का को-फाउंडर?
इस पर बीओएच के एमडी युवा राज ने कहा कि वैसे तो को-फाउंडर पहले दिन से होना चाहिए, लेकिन अगर आपने कोई शुरुआत अकेले की है तो एक-दो साल में अपने साथ किसी को जोड़ सकते हैं। शुरुआत से हो या बीच में जुड़े, को-फाउंडर हमेशा लाइक माइंडेड होना चाहिए। यानि कि आपकी और उनकी सोच समान होनी चाहिए। एक दूसरे से विपरीत सोच रखने वाले को-फाउंडर की रिलेशनशिप ज्यादा दिन तक नहीं चलती है। दरअसल होता जब आपकी सोच एक जैसी होगी तो हर मुश्किल में आप साथ होंगे और कंपनी को संभाल लेंगे, लेकिन अगर आपकी सोच अलग है, तो अच्छे समय में सब कुछ अच्छा चलेगा, लेकिन बुरा वक्त आने पर आप एक दूसरे पर दोषारोपण शुरू कर देते हैं, जिससे अलग होने की नौबत आ जाती है। ध्यान रहे जो व्यक्ति जोश में आकर कोई काम करे, उसे को-फाउंडर कभी नहीं बनाना चाहिए। व्यक्ति ऐसा हो जो पूरी प्लानिंग के साथ आगे बढ़े।
एक को-फाउंडर के साथ आपके रिश्ते कैसे होने चाहिए?
सत्र में इस सवाल का जवाब अरुण ठकराल ने दिया। उन्होंने कहा कि आज के समय विश्वास होना बहुत जरूरी है। आपके साथ जो व्यक्ति कंपनी की जिम्मेदारी संभाल रहा है, उसके प्रति आपके मन में कोई ईगो नहीं होना चाहिए। यह तो कतई नहीं कि आप फाउंडर हैं और वो को-फाउंडर। किसी भी कंपनी में कोई छोटा-बड़ा नहीं होता। आपके रिश्ते पानी की तरह पारदर्शी होने चाहिए ताकि बुरा वक्त आने पर भी आप एक-दूसरे को समझ सकें। सफलता मिलने पर आपको उन्हें बराबर से श्रेय देना चाहिए क्योंकि सफलता की जड़ें केवल एक जगह पर नहीं होती हैं।
स्टार्टअप शुरू करते समय ही टीम बनानी चाहिए या आगे चलकर?
इस सवाल के जवाब से पहले एक और सवाल- क्या आपको दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन के पहले का प्रबंध निदेशक का नाम याद है? जरूर याद होगा, ई. श्रीधरन! क्या आपको दूसरे प्रबंध निदेशक का नाम याद है? नहीं न? इसी तरह जब किसी स्टार्टअप की शुरुआत होती है, तो लॉन्चिंग टीम के प्रत्येक सदस्य को हर कोई याद रखता है। ऐसे में सवाल यह है कि एक स्टार्टअप जहां शुरुआत से ही पैसे खर्च करने की सीमाएं होती हैं, वहां टीम होनी चाहिए या नहीं, इस पर दिलज़र कंसल्टेंट की एमडी दिलशाद बिलिमोरिया ने बहुत अच्छा जवाब दिया।
उन्होंने कहा कि किसी भी स्टार्टअप के लिए उसके क्लाइंट महत्वपूर्ण होते हैं। जाहिर है आपको बार-बार क्लाइंट से मिलना होता है, चाहे काम छोटा हो या बड़ा। ऐसे में टीम बहुत जरूरी होती है। छोटे-छोटे कामों के लिए अगर आपकी टीम क्लाइंट को डील करती है, और आप केवल फाइनल कॉल के लिए मिलते हैं तो उससे आपकी और आपकी कंपनी की एक अलग रेप्युटेशन बनती है। कुछ अच्छा होता है, तो आपकी टीम आपके साथ सेलेब्रेट करने के लिए होती है, और अगर कुछ बुरा होता है, तो वही टीम आपके साथ मंथन करने के लिए भी होती है। अगर आप अकेले या एक-दो लोगों के साथ आगे बढ़ते हैं, तो बहुत सारी दिक्कतें आती हैं।
उन्होंने आगे कहा कि कोई भी कंपनी तभी सुचारु रूप से रन कर पाती है, जब एक सिस्टम से चलती है। अगर कंपनी के प्रत्येक को अपनी जिम्मेदारी मालूम है और वो सेल्फ मोटीवेशन के साथ काम कर रहा है, तो वही टीम आपके लिए वरदान साबित होती है।
उम्मीद है करियर इंडिया का यह लेख आपको आपके स्टार्टअप की योजना बनाने में मददगार साबित होगा। अगर वाकई में इन बातों से आप संतुष्ट हैं तो इस आर्टिकल को शेयर जरूर कीजियेगा। आपका एक शेयर आने वाले 10 उद्यमियों की मदद कर सकता है।
Read This in English: Should You Have a Co-founder in Your Start-up? Insights from the Founders of Four Companies