Sharad Purnima 2024 Sharad Purnima Kab Hai: धन और समृद्धि की प्राप्ति के लिए हर साल शरद पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है। शरद पूर्णिमा का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी और चंद्रमा की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा अपनी पूर्णतम रूप में होता है और इसके किरणों से अमृत बरसता है। हिंदू कैलेंडर के शरद महीने की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा कहा जाता है।
भारत के विभिन्न हिस्सों में शरद पूर्णिमा को लेकर अलग अलग मान्यताएं हैं और अपनी अलग पूजा विधि है। कई राज्यों में शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी की पूजा अर्थात कोजागरी लक्ष्मी पूजा की जाती है तो कहीं चंद्रमा की पूजा कर इस दिन को पर्व के रूप में मनाया जाता है। शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन खासतौर पर उत्तरी भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
शरद पूर्णिमा पर की जाने वाली पूजा और कथा का विशेष महत्व होता है क्योंकि इससे व्यक्ति को सौभाग्य, स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस दिन की पूजा और जागरण से मनुष्य को शारीरिक, मानसिक और आर्थिक सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। हिंदू कैलेंडर में इस दिन की विशेष मान्यता है और इसे अत्यंत शुभ माना गया है।
आमतौर पर हिंदू कैलेंडर के अश्विन महीने में शरद पूर्णिमा की तिथि पड़ती है। शरद पूर्णिमा का त्योहार सितंबर अथवा अक्टूबर महीने में ही मनाया जाता है। इस लेख में हम आपको शरद पूर्णिमा 2024 की तिथि, पूजा का मुहूर्त, कथा, पूजा विधि और शरद पूर्णिमा के महत्व की विस्तृत जानकारी दे रहे हैं।
शरद पूर्णिमा 2024 तिथि और मुहूर्त
- शरद पूर्णिमा तिथि: 16 अक्टूबर 2024
- पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 16 अक्टूबर 2024 को शाम 08:40 बजे
- पूर्णिमा तिथि समाप्त: 17 अक्टूबर 2024 को शाम 04:55 बजे
इस वर्ष शरद पूर्णिमा का पर्व बुधवार को अर्थात 16 अक्टूबर को मनाया जायेगा। इस दिन लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त रात 11 बजकर 42 मिनट से दर रात 12 बजकर 32 मिनट तक रहेगा।
शरद पूर्णिमा की कथा
शरद पूर्णिमा की प्रमुख कथा के अनुसार, माता लक्ष्मी इस रात को स्वर्गलोक से धरती पर उतरती हैं। इस दौरान जो भी जागरण करके उनकी पूजा करता है, उसे धन और समृद्धि का वरदान मिलता है। इसलिए इसे कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है "कौन जाग रहा है"। इसके अलावा, भगवान कृष्ण और गोपियों के साथ उनके रासलीला की कथा भी शरद पूर्णिमा से जुड़ी हुई है। क्योंकि यह भगवान श्री कृष्ण क रासलीला से जुड़ी हुई है, इसलिए इसे रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह मानसून का अंत का भी प्रतीक माना जाता है। शरद पूर्णिमा को देश के विभिन्न राज्यों में विभिन्न प्रकार से मनाया जाता है। कई प्रांतों में शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की पूजा करने का भी रिवाज है। कहानियों के अनुसार इस दिन विशेष रूप से राधा कृष्ण, शिव पार्वती और लक्ष्मी नारायण जैसे कई हिंदू दिव्य जोड़ों की पूजा चंद्र देवता के साथ की जाती है। इस दौरान उन्हें फूल और खीर चढ़ाई जाती है। शरद पूर्णिमा को मंदिरों में देवताओं को आमतौर पर सफेद रंग के कपड़े पहनाए जाते हैं, जो चंद्रमा की चमक को दर्शाते हैं। कई लोग शरद पूर्णिमा के पूरे दिन उपवास भी रखते हैं।
शरद पूर्णिमा पूजा विधि
- इस दिन प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें।
- घर के मंदिर में देवी लक्ष्मी और चंद्रमा की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- पूजा के लिए दूध और चावल से बनी खीर का भोग तैयार करें। इसे खुले आसमान के नीचे चंद्रमा की रोशनी में रातभर रखें।
- रात में जागरण करें और भजन-कीर्तन का आयोजन करें।
- चंद्रमा को अर्घ्य दें और उनकी किरणों से अमृत प्राप्त करें। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की रोशनी में रखी गई खीर स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी होती है।
- अगली सुबह खीर का प्रसाद के रूप में सेवन करें और परिवारजनों को बांटें।
शरद पूर्णिमा का महत्व
शरद पूर्णिमा की रात को जागरण करने और देवी लक्ष्मी की पूजा करने से धन और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। वैज्ञानिक महत्व के अनुसार, चंद्रमा की किरणें इस रात विशेष रूप से स्वास्थ्य के लिए लाभकारी मानी जाती हैं और इससे मानसिक शांति प्राप्त होती है। शरद पूर्णिमा का कृषि महत्व भी है। अश्विन महीने में मनाई जाने वाली शरद पूर्णिमा को मानसून का अंत भी माना जाता है। शरद पूर्णिमा के बाद से सर्दी का आगमन माना जाता है और यह फसलों की बुवाई का समय भी होता है।
शरद पूर्णिमा या कोजागरी पूर्णिमा को भारत के पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा में कोजागरी व्रत का पालन भी किया है। लोग दिन भर उपवास करने के बाद चांदनी में यह व्रत करते हैं। यह दिन भारत, बांग्लादेश और नेपाल के विभिन्न क्षेत्रों में हिंदुओं द्वारा अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। शरद पूर्णिमा का स्वामीनारायण संप्रदाय में बहुत महत्व है।
उत्तरी भारत के उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में रात के समय खीर बनाई जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस खीर को रात भर खुली छत वाली जगह पर चांदनी में रखी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस रात चांद की किरणें अमृत लेकर आती हैं। इससे खीर में इकट्ठा किया जाता है। इस खीर को अगले दिन प्रसाद के रूप में खाया जाता है। साथ ही इस रात देवी लक्ष्मी की पूजा भी की जाती है।