Sardar Vallabhbhai Patel Jayanti 2023: सरदार वल्लभभाई पटेल, राष्ट्रीय एकता के प्रतीक के रूप में जाने जाते है। गाँधीजी के विचारों से प्रभावित सरदार पटेल ने अंहिसा के मार्ग पर चलते हुए देश की आजादी की लंबी लड़ाई लड़ी। हालाँकि उनका कनेक्शन आजादी की पहली लड़ाई यानी 1857 युद्ध से भी है।
डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, फैज़ाबाद के डॉ. श्रवण कुमार यादव द्वारा किए गए शोध, जिसका शीर्षक 'भारत में राष्ट्रवाद के विकास में सरदार वल्लभभाई पटेल के विचारों की प्रासंगिकता' है, के अनुसार रानीलक्ष्मी बाई एवं 1857 की जंग से सरदार पटेल का कनेक्शन जुड़ा हुआ है, आइए जानते हैं कैसे?
सरदार पटेल के पिता झवेरआई पटेल
भारत की एकता और अखण्डता के लिए अपना संपूर्ण जीवन न्योछावर करने वाले देशरत्न सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म गुजरात के किसान झवेरभाई पटेल के घर हुआ। झवेरभाई पटेल गुजरात क्षेत्र के किसान थे, जिसके पास लगभग 12 एकड़ भूमि थी। वे सुप्रसिद्ध धर्मवत स्वामीनारायण के अनुयायी भी थे। इस भूमि के उपज से ही झावेरभाई अपने परिवार का पालन-पोषण करते थे। उनके परिवार में पत्नी लाड़बा, वल्लभभाई सहित पाँच पुत्र और एक पुत्री थी।
'हिन्दू' और 'हिन्दुस्तान' की विचारधारा से प्रभावित थे झवेरभाई
सरदार वल्लभ भाई पटेल की माँ लाड़बा एक आदर्श गृहणी और धर्मनिष्ठ महिला थीं। वे संयमी और देशभक्ति की भावना से परिपूर्ण थीं। एक साधारण किसान होने के अतिरिक्त सरदार पटेल के पिता झवेरभाई गलाभाई पटेल, एक संयमी और राष्ट्रवादी विचार संपन्न व्यक्ति थे। वे निडर, वीर साहसी थे। 'हिन्दू' और 'हिन्दुस्तान' की विचारधारा का उन पर प्रभाव था। देशभक्ति की भावना उनमें भरी हुई थी।
रानी लक्ष्मीबाई एवं 1857 स्वतंत्रता संग्राम से पटेल का कनेक्शन| Rani Lakshmi Bai and Sardar Patel's connection
सरदार वल्लभ भाई पटेल के पिता झवेरभाई पटेल झांसी की रानी लक्ष्मी बाई की सेना में बहुत बहादुर सेनानी थे। उन्होंने सन 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। झवेरभाई पटेल सन् 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले एक सिपाही थे। माना जाता है कि उन्होंने इस महासंग्राम में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की ओर से अंग्रेजों के विरूद्ध लोहा लिया था। हिन्दू आश्रम - व्यवस्था के अनुरूप ही 50-55 की आयु में झवेरभाई एक वानप्रस्थी की स्थिति में अपने को ले आए और फिर शनैः-शनैः गृहकार्यों से उदासीन होते गए। वर्ष 1914 ईस्वी में उनका लगभग 85 वर्ष की आयु में देहान्त हो गया।
विधिवेत्ता और राजनीतिज्ञ विट्ठलभाई प्रथम केन्द्रीय विधानसभा के अध्यक्ष चुने गये
वल्लभभाई पटेल के तीन बड़े भाई थे- सोमाभाई, नरसीभाई और विट्ठलभाई। सोमाभाई और नरसीभाई दोनों लगभग वर्ष 1885 ईस्वी से, घर के बड़े पुत्रों के रूप में, अपना उत्तरदायित्व संभालने लगे थे। वर्ष 1900 से नरसीभाई ने घर की व्यवस्था का पूरा उत्तरदायित्व अपने ऊपर ले लिया, क्योंकि सोमाभाई का स्वास्थ्य दुर्बल हो गया था। सोमाभाई केवल कृषि कार्यों में नरसीभाई का हाथ बँटाते थे, जबकि आय-व्यय के ब्योरे सहित शेष सभी कार्यो को नरसीभाई देखते थे। नरसी भाई परिवार की ओर से समस्त सामाजिक कर्तव्यों का निर्वाह भी करते थे।
सोमाभाई और नरसीभाई के बाद नम्बर था, विट्ठलभाई पटेल का। महान राष्ट्रवादी विधिवेत्ता और राजनीतिज्ञ विट्ठलभाई प्रथम भारतीय थे, जो केन्द्रीय विधानसभा के अध्यक्ष बने। अपने समय के सुविख्यात स्वराज्य-दलीय नेता, विट्ठलभाई का लम्बा सार्वजनिक जीवन रहा, जो स्मरणीय होने के साथ ही अनुकरणीय भी बना। विट्ठलभाई पटेल बॉम्बे विधान परिषद (1913) इम्पीरियल विधान परिषद (1919) तथा भारत की केन्द्रीय विधानसभा (1924) के लिए निर्वाचित हुए।
भारत के स्वाधीनता आन्दोलन में बढ़-चढ़कर लिया भाग
अपने अनेक दायित्वों का निर्वहन करने के साथ ही विट्ठलभाई ने भारत के स्वाधीनता आन्दोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया। न केवल राष्ट्र की सीमाओं के भीतर ही, अपितु यूरोप के कई देशों में जाकर उन्होंने भारत की स्वाधीनता के लिए जन-सहानुभूति अर्जित की। विट्ठलभाई पटेल का निधन 22 अक्टूबर, 1933 ईस्वी को स्विटरजरलैण्ड में हुआ।
वल्लभाई पटेल के छोटे भाई काशीभाई थे, जिन्होंने स्वाधीनता संग्राम में भाग लेने के अतिरिक्त मुम्बई में वकालत कार्य भी किया। उनकी एकमात्र तथा सबसे छोटी बहन डाहिबा का युवावस्था में वर्ष 1916 में देहावसान हुआ था।
वल्लभभाई पटेल का अट्ठारह वर्ष की आयु में विवाह
लगभग अट्ठारह वर्ष की आयु में बल्लभाई पटेल का विवाह करमसद के निकट के एक ग्राम गाना के पाटीदार देसाईभाई पंजाब भाई पटेल की सुपुत्री झबेरबा के साथ हुआ। यह 1893 ईस्वी की बात है। झबेरबा के जीवन से संबंन्धित घटनाक्रम की अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। लेकिन जितनी सूचना प्राप्त है, उसके अनुसार वे समर्पित और सुशील ग्रहणी थीं उनकी ऊँचाई सामान्य थी और रंग गेंहुआ या उससे भी साफ था। वल्लभभाई के साथ झवेरबा का दाम्पत्य जीवन लगभग 16 वर्षो का ही रहा।
केस के दौरान जब पटेल को मिली पत्नी की मृत्यु की खबर
झवेरबा की 11 जनवरी, 1909 को मुम्बई में एक शल्य चिकित्सा के समय मृत्यु हो गई थी। जिस समय उनकी श्वास बंद हुई, वल्लभभाई बोरसद के न्यायालय में न्यायधीश के समक्ष, एक केस के संदर्भ में तर्क कर रहे थे। उन्हें पत्नी के निधन की सूचना से सम्बन्धित तार मिला, उसे उन्होंने पढ़ा और चुपचाप अपनी जेब में रख लिया। वे अपने तर्क के कार्य में लग गए। जब न्यायालय में सुनवाई पूरी हो गई और वल्लभभाई बाहर आए, तो साथियों के पूछने पर उन्होंने तार से प्राप्त अपनी पत्नी की मुत्यु की बात को स्पष्ट किया। बल्लभभाई के धैर्य धारण और कठिनतम समय में भी विचलित न होने का भान इन घटना से भलीभाँति हो सकता था। झबेरबा से वल्लभाई को कितना प्रेम था। उनके समर्पित जीवन की वल्लभभाई पर कितनी गहरी छाप थी, इन दोनों बातों का अनुमान उनके पुनर्विवाह न करने के निर्णय से लगाया जा सकता है। झबेरबा के निधन के बाद वल्लभभाई ने जीवनभर विवाह नहीं किया।
वल्लभभाई और झबेरबा के संतान
वल्लभभाई को झबेरबा से दो सन्तानें मिली। सुपुत्री मणिबहन का जन्म अप्रैल 1903 में हुआ, जबकि सुपुत्र डह्याभाई का 28 नवम्बर, 1905 को हुआ। मणिबहन छोटे कद की तथा अपनी माता झबेरबा के वर्ण की थीं। सेवा, समर्पण तथा श्रद्धा मणिबहन के स्वभाव के तीन प्रमुख गुण थे। वे सादगी और ईमानदारी का उदाहरण थीं तथा कम से कम बोलना उनकी पहचान थी। वे प्रारम्भ में क्वीन मैरीज हाईस्कूल, मुम्बई की छात्रा रहीं। मणिबहन वर्ष 1917 में गवर्नमेंट हाईस्कूल, अहमदाबाद में भर्ती हुई। लेकिन गुजरात विद्यापीठ की स्थापना के उपरान्त मणिबहन वहाँ आ गई तथा वहीं से उन्होंने हाईस्कूल (मैट्रिक पास किया तथा बाद में वहीं से वे स्नातिका भी बनीं।
सामाजिक कार्यों में मणिबहन का योगदान
जैसा कि सर्वविदित है, मणिबहन ने जीवनभर अविवाहित रहकर अनेक सामाजिक- रचनात्मक कार्यों में भाग लिया। अपने पिता बल्लभभाई पटेल के समस्त राष्ट्रीय कार्यों में यथा संभव सहयोग दिया। छोटी आयु में ही विभिन्न सत्याग्रहों में भागीदारी करने के साथ ही वे कई बार जेल गई। बारडोली किसान आन्दोलन 1928, नमक सत्याग्रह 1930, व्यक्तिगत सविनय अवज्ञा 1940 और भारत छोड़ो आन्दोलन 1942 में उनकी भागीदारी इस सन्दर्भ में विशेष उल्लेखनीय रही।
वर्ष 1930 के उपरान्त उन सभी रचनात्मक-सामाजिक कार्यों में, जिन्हें वल्लभभाई ने नेतृत्व दिया, या जो उनकी अथवा महात्मा गाँधी की प्रेरणा से प्रारम्भ हुए, मणिबहन सम्मिलित रहीं। इसी के साथ-साथ सरदार वल्लभभाई पटेल की दिनचर्या दैनिक कार्य-कलापों आदि की उन्होंने व्यवस्था की, वल्लभभाई की सचिव के रूप में कार्य किया। विशेष रूप से उल्लेखनीय बात यह रहीं कि मणिबहन ने उन हजारों अभिलेखों और पत्रों को सुरक्षित रखा, जो सरदार पटेल के महान जीवन व कार्यो से सम्बद्ध थे। वह सामग्री भारत के इतिहास की एक महत्वपूर्ण धरोहर है। मणिबहन पटेल वर्ष 1952 से वर्ष 1980 के मध्य अनेक बार संसद के दोनों सदनों लोकसभा एवं राज्यसभा की सदस्या रही काँग्रेस कार्य समिति में रहीं।
पिता सरदार पटेल के नक्शेकदम पर चले पुत्र डह्याभाई पटेल
सरदार पटेल के एकमात्र पुत्र डह्याभाई पटेल प्रारम्भ में अपनी बहन के साथ ही क्वीन मैरिज हाईस्कूल में स्नातक परीक्षाएं पास की। महात्मा गाँधी के आशीर्वाद से वर्ष 1925 में डह्याभाई पटेल ने अहमदाबाद के साबरमती आश्रम में काशीभाई अमीन की सुपुत्री यशोदा से विवाह किया। एक पुत्र को यशोदा ने वर्ष 1927 में जन्म दिया, लेकिन दुर्भाग्यवश 31 मई, 1930 को उनका स्वर्गवास हो गया। डह्याभाई ने बहुत दबाव पड़ने पर, यहाँ तक कि महात्मा गाँधी के कहने पर 23 मई 1940 को बड़ौदा में भानुमति से दूसरा विवाह किया। दूसरे विवाह से भी उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई।
अपने पिता वल्लभभाई से स्वयं निर्माण के प्राप्त गुण के आधार पर ही डह्याभाई पटेल ने अपने जीवन का स्वयं ही निर्माण किया। एक ओर उन्होंने राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलन में भागीदारी ली, तो दूसरी ओर परिवार का पालन भी किया। उन्होंने दोनों कार्य साथ-साथ किए। 1927 में डह्याभाई ने ओरियन्टल बीमा कम्पनी में नौकरी करनी प्रारम्भ की तथा 1946 तक वे इसी कम्पनी से सम्बद्धित रहे। युवावस्था में ही 1920 में वे काँग्रेस में सम्मिलित हुए तथा 1956 तक इसमें बने रहें।
डह्याभाई को अपने पुत्र समान मानते थें विट्ठलभाई
वे मुम्बई नगर निगम के सदस्य (1938), इसकी स्टेन्डिंग कमेटी के अध्यक्ष (1946) तथा मुम्बई के मेयर (1954) भी चुने गए। काँग्रेस की कई समितियों के सदस्य बनने के साथ ही वे चरोत्तर विद्यामण्डल के अध्यक्ष रहे: सरदार पटेल विश्वविद्यालय सहित चरोत्तर क्षेत्र में कई संस्थाओं के निर्माण में डह्याभाई ने अग्रणी भूमिका का निर्वाह किया। डह्याभाई पटेल 1958 में राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए। जहाँ एक ओर उनके जीवन पर पिता वल्लभभाई की छाप थी, वहीं अपने ताऊ विठ्ठलभाई पटेल से भी वे प्रभावित रहे थे। विट्ठलभाई डह्याभाई को अपने पुत्र ही मानते थे।