Sarat Chandra Chattopadhyay Biography in Hindi: 15 सितंबर, 1876 को बंगाल के एक छोटे से गांव देवानंदपुर में पैदा हुए शरत चंद्र चट्टोपाध्याय एक प्रखर बंगाली लेखक और उपन्यासकार थे, जिनकी साहित्यिक कृतियों ने भारतीय साहित्य पर अमिट छाप छोड़ी है।
सामाजिक यथार्थवाद और मानवीय भावनाओं की गहरी समझ से भरपूर उनकी कालजयी कहानियाँ पीढ़ी-दर-पीढ़ी पाठकों के बीच गूंजती रहती हैं। 16 जनवरी को उनकी पुण्यतिथि पर आइए उनके जीवन यात्रा के कुछ अनकही कहानियों के बारे में जानें।
जब 8 वर्ष की उम्र में छाया आर्थिक संकट का साया
शरत चंद्र का जन्म एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था। जब वह केवल 8 वर्ष के थे, तब उनके पिता मोतीलाल चट्टोपाध्याय की मृत्यु हो गई। पिता की मृत्यू से जहां एक ओर वे आहत थें, वहीं उन्होंने उस छोटी सी उम्र में परिवार पर छाये आर्थिक संकट को समझा। वह एक बात जो उन्हें अद्वितीय बनाती है, वह है कि लाखों चुनौतियों के बावजूद, शरत चंद्र में साहित्यिक प्रतिभा की झलक दिखीं और उन्होंने पारिवारिक संकट के बीच अपनी साहित्यिक यात्रा की शुरुआत की। इस बीच उनकी अत्यधिक पढ़ने की आदत ने उन्हें विविध प्रकार के साहित्य से परिचित कराया।
आर्थिक तंगी से सीमित रह गई औपचारिक शिक्षा
पिता की मृत्यू के बाद आर्थिक तंगी ने शरत चंद्र और उनके परिवार पर काफी समय तक प्रभाव डाले रखा। आर्थिक तंगी के कारण शरत चंद्र की औपचारिक शिक्षा सीमित रह गई। उन्होंने थोड़े समय के लिए हुगली मोहसिन कॉलेज में दाखिला लिया लेकिन उन्हें इसे छोड़ना पड़ा। हालांकि, साहित्य और स्व-शिक्षा के प्रति उनका जुनून कम नहीं हुआ। उन्होंने बांगला और अंग्रेजी में बड़े पैमाने पर पढ़कर खुद को शिक्षित किया।
कैसे शुरु हुई शरत चंद्र की साहित्यिक यात्रा
शरत चंद्र का अधिकांश बचपन बिहार के भागलपुर में अपने चाचा के घर पर बीता। ऐसा माना जाता था कि साहित्य और लेखन में शरत चंद्र की रुचि उनके पिता से विरासत में मिली थीं क्योंकि उनके पिता मोतीलाल चट्टोपाध्याय ने कई कहानियां लिखीं थी। शरत चंद्र ने एक बार कहा था कि उन्हें अपने पिता से अपनी बेचैन आत्मा और साहित्य में गहरी रुचि के अलावा कुछ भी विरासत में नहीं मिला है। उनकी मां, भुबनमोहिनी की मृत्यु 1895 में हो गई, जिसके बाद परिवार के कई अन्य सदस्यों ने कठिन समय में शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के परिवार की सहायता की।
अपनी किशोरावस्था के दौरान, वह मैरी कोरेली, चार्ल्स डिकेंस और हेनरी वुड जैसे लेखकों के पश्चिमी लेखन के इतने शौकीन हो गए कि उन्होंने अपना उपनाम "सेंट" चुन लिया। शरत चंद्र का साहित्यिक करियर 1917 में प्रकाशित उनके पहले उपन्यास, "बोड़ोदीदी" से शुरू हुआ। हालांकि, 1914 में प्रकाशित यह उनका दूसरा उपन्यास, "बिशाबृक्षा" (द पॉइज़न ट्री) था, जिसने उन्हें पहचान दिलाई। उनकी कहानियां अक्सर निम्न और मध्यम वर्ग के संघर्षों को दर्शाती हैं और सामाजिक मुद्दों को संबोधित करती हैं, जिससे वे व्यापक दर्शकों के लिए प्रासंगिक बन जाती हैं।
उनके कुछ उल्लेखनीय कार्यों में शामिल निम्नलिखित हैं: (Sarat Chandra Chattopadhyay Biography in Hindi)
"देवदास" (1917): यह एक दुखद प्रेम कहानी है। इस कहानी में सामाजिक मानदंडों और व्यक्तिगत पसंद के विषयों की खोज की गई, जिसे बाद में कई फिल्मों में रूपांतरित किया गया।
"परिणीता" (1914): शरत चंद्र की लिखी यह कहानी प्रेम, त्याग और सामाजिक अपेक्षाओं की एक संपूर्ण कहानी है। यह कहानी शरत चंद्र की मानवीय भावनाओं की गहरी समझ को दर्शाती है।
"पोथेर देबी" (1926): एक राजनीतिक उपन्यास जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर प्रकाश डालता है। यह रचना सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों के प्रति उनकी चिंताओं को उजागर करती है।
"स्वामी" : यह उपन्यास भी उनके नारीवाद का प्रतिबिंब था। कहानी सौदामिनी नाम की एक महत्वाकांक्षी और उज्ज्वल लड़की का वर्णन करती है जो अपने पति, घनश्याम और अपने प्रेमी, नरेंद्र के प्रति अपनी भावनाओं के बारे में संदिग्ध है।
"इति श्रीकांत" : यह एक चार भागों वाला उपन्यास है, जो क्रमशः 1916, 1918, 1927 और 1933 में प्रकाशित हुआ था। इसे शरतचंद्र की 'उत्कृष्ट कृति' के रूप में प्रशंसित किया गया है। उपन्यास में कथाकार, श्रीकांत, एक लक्ष्यहीन भटकने वाला व्यक्ति है। शरत चंद्र चट्टोपाध्याय ने अपने जीवंत चरित्रों के माध्यम से उन्नीसवीं सदी के बंगाल को जीवंत बना दिया। उस समय समाज पूर्वाग्रह से ग्रस्त था जिसे आमूलचूल रूप से बदलने की आवश्यकता थी।
"चोरिट्रोहिन" : यह 1917 में प्रकाशित हुई थी, जो कि चार महिलाओं की कहानी है। समाज ने उनके साथ अन्याय किया, यह रचना उसी पर आधारित है।
शरत चंद्र की रचनाएं और उनका दार्शनिक दृष्टिकोण
शरत चंद्र ने कई कहानी, उपन्यास लिखें। उनकी रचनाएं अक्सर आदर्शवाद और यथार्थवाद का मिश्रण व्यक्त करती हैं। उन्होंने सामाजिक सुधारों, महिलाओं के अधिकारों की वकालत की और सामाजिक अन्याय के खिलाफ बात की। उनके लेखन में दलितों के प्रति उनकी गहरी सहानुभूति और एक अधिक न्यायसंगत समाज की उनकी इच्छा प्रतिबिंबित होती है।
मुख्य रूप से 20वीं सदी की शुरुआत के लेखक होने के बावजूद, शरत चंद्र की कथाएं आज भी प्रासंगिक हैं। जटिल मानवीय भावनाओं और सामाजिक चुनौतियों की उनकी खोज समय से परे है, जिससे उनकी कहानियां सार्वभौमिक रूप से प्रासंगिक बन गई हैं। भारतीय साहित्य पर उनका प्रभाव उनके कार्यों के विभिन्न कला रूपों में निरंतर रूपांतरण में स्पष्ट है।
शरत चंद्र ने कभी भौतिक धन की लालच नहीं की
शरत चंद्र का निजी जीवन उनकी साहित्यिक रचनाओं की तरह ही दिलचस्प था। उन्होंने सादा जीवन व्यतीत किया और कभी भी भौतिक धन की चाहत नहीं की। उनके विवाह, विशेष रूप से उनकी दूसरी पत्नी मोक्षदा, जो उनसे काफी छोटी थीं, के साथ उनके संबंधों ने ध्यान आकर्षित किया। महिलाओं के अधिकारों पर उनके प्रगतिशील विचार उनके व्यक्तिगत संबंधों में परिलक्षित होते थे।
शरत चंद्र चट्टोपाध्याय की विरासत उनके कालजयी साहित्य के माध्यम से कायम है। मानवीय रिश्तों और सामाजिक गतिशीलता की जटिलताओं को चित्रित करने की उनकी क्षमता ने उन्हें बंगाली साहित्य में एक प्रतिष्ठित स्थान दिलाया है। उनकी भाषा की सरलता और गहन कहानी कहने की कला ने उनकी रचनाओं को कालजयी बना दिया है जो आज भी दुनिया भर के पाठकों को मंत्रमुग्ध कर रही है। (Sarat Chandra Chattopadhyay jivani)
शरत चंद्र चट्टोपाध्याय अपनी कलम के जरिए आम आदमी की आवाज बनें। भावनात्मक गहराई और सामाजिक टिप्पणियों से भरपूर उनकी कहानियां न केवल समय की कसौटी पर खरी उतरी हैं बल्कि आज भी मनाई जाती हैं। भारतीय साहित्य काल की यात्रा में, शरत चंद्र का योगदान बेहद महत्वपूर्ण रहा है। उनकी रचनाएं पाठकों और लेखकों की पीढ़ियों को प्रभावित कर रही है, जो उनके साहित्यिक नक्शेकदम पर चलने का प्रयास भी कर रहे हैं।