Sai Baba Death Anniversary 2024: साईं बाबा की मृत्यु कब और कैसे हुई? दशहरा के दिन त्यागे थे प्राण

Sai Baba Death Anniversary 2024: साईं बाबा, जिन्हें श्रद्धालुओं द्वारा प्रेमपूर्वक 'शिरडी के साईं बाबा' के नाम से पुकारा जाता है, एक महान संत और आध्यात्मिक गुरु थे। उनका जीवन और उपदेश लोगों को सद्भावना, प्रेम और एकता का संदेश देते हैं। साईं बाबा ने अपने जीवन के दौरान जात-पात और धर्म के भेदभाव को मिटाने का प्रयास किया और सभी को प्रेम और सच्चाई के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।

साईं बाबा की मृत्यु कब और कैसे हुई? दशहरा के दिन त्यागे थे प्राण

साईं बाबा का जीवन और उपदेश

साईं बाबा का जन्म और प्रारंभिक जीवन रहस्य के आवरण में ढका हुआ है। उनकी सही जन्मतिथि और जन्मस्थान के बारे में कई धारणाएं हैं, लेकिन यह माना जाता है कि साईं बाबा शिरडी में आए और वहीं अपनी अधिकांश जीवन यात्रा पूरी की। शिरडी में आने के बाद उन्होंने वहां के लोगों के बीच अपने चमत्कारी शक्तियों और आध्यात्मिक उपदेशों के माध्यम से विशेष पहचान बनाई। उन्होंने सदैव समाज में एकता, प्रेम और सभी धर्मों की समानता का संदेश दिया।

साईं बाबा की शिक्षा का मुख्य सिद्धांत "सबका मालिक एक" था, जो इस बात पर जोर देता है कि भगवान एक हैं, चाहे व्यक्ति किसी भी धर्म से क्यों न हो। उन्होंने अपने अनुयायियों को सत्य, करुणा, और अहिंसा का पालन करने की शिक्षा दी और उन्हें भक्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।

साईं बाबा की मृत्यु कब और कैसे हुई?

साईं बाबा ने 15 अक्टूबर 1918 को दशहरे के दिन अपने प्राण त्यागे थे। यह दिन हिन्दू पंचांग के अनुसार विजयादशमी का था, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। साईं बाबा की मृत्यु के बारे में कई अनुयायी यह मानते हैं कि वे अपनी मृत्यु की भविष्यवाणी पहले ही कर चुके थे। कहा जाता है कि बाबा ने अपने अनुयायियों से यह कहा था कि वे जल्दी ही इस नश्वर संसार को छोड़ देंगे।

साईं बाबा ने अपनी मृत्यु से कुछ दिन पहले ही संकेत दे दिए थे कि उनका देह त्यागने का समय नजदीक है। 15 अक्टूबर 1918 को शिरडी में उन्होंने अपने शरीर को त्याग दिया और महासमाधि ले ली। उनके अंतिम शब्द थे, "मैं हमेशा अपने भक्तों के साथ रहूंगा," जो उनके अनुयायियों के लिए एक स्थायी आश्वासन बन गए।

दशहरे के दिन साईं बाबा का देह त्यागना

साईं बाबा का विजयादशमी के दिन प्राण त्यागना एक विशेष महत्व रखता है। यह दिन हिन्दू धर्म में रावण पर भगवान राम की विजय का प्रतीक है। बाबा ने इस दिन अपने शरीर का त्याग कर यह संदेश दिया कि जीवन का अंतिम उद्देश्य बुराई पर अच्छाई की जीत है, और आध्यात्मिक मुक्ति का मार्ग सदैव सच्चाई, प्रेम और भक्ति में ही है।

साईं बाबा की पुण्यतिथि का महत्व

हर साल साईं बाबा की पुण्यतिथि को 'महासमाधि दिवस' के रूप में मनाया जाता है। इस दिन शिरडी में विशेष पूजा और आरती का आयोजन किया जाता है, जहां हजारों श्रद्धालु साईं बाबा के दर्शन करने के लिए आते हैं। उनकी समाधि पर लोग फूल और चादर चढ़ाते हैं और बाबा के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं।

2024 में, साईं बाबा की पुण्यतिथि 15 अक्टूबर को मनाई जाएगी। इस अवसर पर भक्तगण बाबा के उपदेशों और उनके जीवन के मार्गदर्शन पर चिंतन करते हैं। बाबा का संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उनके जीवनकाल में था। उनके अनुयायी आज भी यह मानते हैं कि बाबा की आत्मा शिरडी में वास करती है और वे अपने भक्तों की प्रार्थनाओं को सुनते हैं।

साईं बाबा की पुण्यतिथि पर हम उनके जीवन और उनके उपदेशों को याद करते हैं, जो आज भी हमें प्रेम, भक्ति और सच्चाई के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं। उनकी शिक्षा हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति का अर्थ केवल पूजा-अर्चना नहीं है, बल्कि अपने कर्मों में सच्चाई, करुणा, और समर्पण को अपनाना है। साईं बाबा की पुण्यतिथि पर उनकी शिक्षाओं का पालन करते हुए हम उनके आदर्शों पर चल सकते हैं और समाज में सद्भाव और एकता का संदेश फैला सकते हैं।

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English summary
Sai Baba, fondly called by devotees as 'Sai Baba of Shirdi', was a great saint and spiritual guru. His life and teachings give the message of goodwill, love and unity to the people. Sai Baba tried to eradicate caste and religious discrimination during his life and inspired everyone to follow the path of love and truth.
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