Raksha Bandhan Speech 2022: भारत में रक्षाबंधन का त्योहार बड़े ही हर्षो-उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष रक्षाबंधन 2022 में 11 अगस्त और 12 अगस्त दो दिन मनाया जाएगा। श्रवण मास की पूर्णिमा तिथि 11 अगस्त 2022 को सुबह 10 बजकर 38 मिनट पर शुरू होगी और 12 अगस्त 2022 को सुबह 7 बजकर 5 मिनट पर समाप्त होगी। भाई-बहन के प्यार और रक्षा का प्रतीक माना जाने वाला यह रक्षाबंधन का पर्व हम सबके लिए विशेष महत्व रखता है। दरअसल मेले और त्योहार हमारे जीवन में बहुत महत्व रखते हैं। हम अपने त्योहारों को कभी मिस नहीं कर सकते। त्यौहार हमारे धर्म और संस्कृति को दर्शाते हैं। रक्षा बंधन का त्योहार प्रेम और भाईचारे का पर्व है। बहनें अपने भाइयों की कलाई पर पवित्र धागा बांधती हैं और भाई, बहन की रक्षा का बचन देता है। साथ ही भाई अपनी बहनों को सभी बुराईयों से बचाने का संकल्प लेते हैं।
रक्षाबंधन का क्या अर्थ है?
'रक्षा बंधन' शब्द का एक बहुत ही महत्वपूर्ण अर्थ है। रक्षा का अर्थ है सुरक्षा और बंधन का अर्थ है बंधन। यह एक भाई और बहन के बीच प्यार और सुरक्षा के पवित्र बंधन का उत्सव है। यह त्योहार प्रेम और सद्भाव का प्रतीक है। रक्षा बंधन का पर्व हर वर्ष अगस्त में आता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, यह श्रवण महीने की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। यह त्योहार भारत के उत्तरी और पश्चिमी भाग के लोगों द्वारा मनाया जाता है। रक्षा बंधन को देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है। कुछ लोग इस त्योहार को 'राखी पूर्णिमा' कहते हैं, तो कुछ इसे 'काजरी पूर्णिमा' कहते हैं। इस मौके पर लोग भगवान शिव की पूजा करते हैं। परंपरा के अनुसार, बहनें दीया, रोली, चावल और राखी के साथ एक थाली या थाली तैयार करती हैं। सबसे पहले वह भगवान से प्रार्थना करती है और फिर भाइयों को राखी बांधती है और उनकी भलाई की कामना करती है। भाई बदले में बहनों के पक्ष में होने के वादे के साथ प्यार को स्वीकार करता है और उसे प्यार के प्रतीक के रूप में उपहार देता है।
रक्षाबंधन पर भाषण ड्राफ्ट 1
रक्षाबंधन सिर्फ भाई-बहन का ही त्योहार नहीं है अपितु परमात्मा हमारी रक्षा करे और हम परमात्म अनुभूति के साथ पवित्रता का संकल्प करते हुए देव समान बनें यही रक्षाबंधन की मूल अवधारणा है। चूंकि हम सभी परमात्मा की संतान हैं और परमात्मा हमारा पिता है। इसी कारण उसकी संतान होने के नाते हम आपस में भाई-भाई या फिर भाई बहन एक दूसरे को मानें और समझें तथा आवश्यकता पड़ने पर एक दूसरे की रक्षा करें इसी संकल्प को बंधन रुप में मानते हुए यह पर्व मनाया जाता है। भाई-बहन का रिश्ता चूंकि सबसे पवित्र और पावन है चाहे बहन हो या भाई दोनों ही एक दूसरे के प्रति शुभ भावना रखते हैं और एक दूसरे की प्रगति चाहते हैं, वह भी बिना किसी स्वार्थ के। हालांकि रक्षाबंधन पर जब बहन भाई को राखी बांधती है तो भाई बदले में उसे उपहार देता है। ऐसा इसलिए है ताकि भाई बहन के बीच प्रेम और सदभाव उत्तरोत्तर बढ़ता रहे और कम से कम एक दिन ऐसा हो जब भाई बहन एक दूसरे से मिलकर खुशी मना सकें।
आज भी गांव देहात में पंडित द्वारा अपने यजमानों को रक्षासूत्र यानि राखी बांधने का प्रचलन है। इसके पीछे भी यही अवधारणा है कि पंडित को विद्वान और पवित्र माना जाता है और वह रक्षासूत्र बांधने के पीछे अपने यजमान को बुद्धिमान और पवित्र रहने का संदेश देता है। रक्षाबंधन के पर्व पर जब बहन भाई की कलाई पर राखी बांधती है तो उन्हें विकारों को त्यागने का संकल्प लेना चाहिए। जिसकी शुरूआत प्रति रक्षाबंधन एक विकार को त्यागने के संकल्प के साथ हो सकती है। क्योंकि मनुष्य में व्याप्त विकार एक नहीं अनेक होते हैं। जिनमें काम क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार जहां प्रमुख हैं वहीं ईष्र्या, द्वेष, घृणा जैसे विकार भी मनुष्य की प्रगति में बाधक हैं। सच पूछिए तो रक्षाबंधन है ही पवित्रता का पावन पर्व, जिसमें भाई बहन के पवित्र रिश्ते की रक्षा के लिए रक्षासूत्र बांधने की वर्षों से परम्परा है। इस पर्व के माध्यम से जहां हम अपनी बहनों की सुख समृद्धि और प्रगति की कामना करते हैं वहीं बहन भी अपने भाई की दीर्घायु की कामना के साथ-साथ उसकी उन्नति की प्रार्थना करती हैं।
रक्षाबंधन यानी भाई बहन का त्योहार। कहा जाता है कि भाई और बहन के रिश्ते से पवित्र दुनिया में कोई भी रिश्ता नहीं होता। इस दिन बहनें अपने भाईयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और भाई जीवनभर उसकी रक्षा का प्रण लेता है। यूं तो मान्यता है कि सभी दिन परमपिता परमात्मा के बनाये हुए हैं जब परमात्मा की कृपा होती है तो सभी कार्य स्वतः ही सिद्ध होने लगते हैं। लेकिन फिर भी सनातन धर्म के अनुसार कुछ दिनों का महत्व अलग होता है, जिसे हम त्योहार कहते हैं। जबकि परमात्मा की दृष्टि में सभी दिन एक जैसे ही होते हैं। उनमें विशेष कुछ है तो वह है शुभ और अशुभ लग्न। जिसे हम साधारण भाषा में शुभ व अशुभ समय भी कहते हैं। जिसके बारे में जानकारी प्राप्त कर सभी बहनें अपने भाईयों की कलाई पर शुभ समय में ही रक्षासूत्र को बांधने का प्रयास कर सकें।
हालांकि यह ऐसा पर्व है जिसे कभी भी और किसी भी समय व किसी भी दिन मनाया जा सकता है। आज आवश्यकता भी इसी बात की है, कि समाज में बहनों का सम्मान हो, उनकी रक्षा हो और वे स्वाभिमान के साथ सिर उठाकर निर्भीक जीवन जी सकें। रक्षाबंधन का त्योहार हिन्दी महीनों के हिसाब से सावन मास के अंतिम दिन पूर्णिमा को यह त्योहार होता है। भाई-बहन सुबह से नहा-धोकर तैयार होते हैं। बहन पूजा की थाली सजाती है। भाई को टीका करके उसके हाथ में राखी बांधती है और फिर मिठाई खिलाती है। कुछ बहनें भाई की आरती भी उतारती हैं। बदले में भाई-पूजा की थाली में बहन के लिए अपनी सामथ्र्य के अनुसार रुपये डाल देते हैं।
रक्षाबंधन पर भाषण ड्राफ्ट 2
रक्षाबंधन के दिन खूब अच्छे-अच्छे स्वादिष्ट भोजन बनाएं जाते हैं। विशेष रुप से कढ़ी चावल और खीर तो अवश्य बनाते हैं, क्योंकि इन चीजों को बहुत शुभ माना जाता है। यह त्योहार क्यों और कैसे शुरु हुआ, इस विषय में एक कथा प्रचलित है। एक समय की बात है, जब श्री कृष्ण अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ रहते थे। उन दिनों असुर शक्तिशाली हो गये थे। ऋषि-मुनियों और अन्य लोगों को भी बहुत तंग करते थे। उनके अत्याचारों से सब दुःखी हो गये थे। ऋषि-मुनियों का पूजा-पाठ यज्ञ आदि करना बिलकुल असंभव ही हो गया था। राक्षस कभी बच्चों को चुराकर ले जाते और कभी अकारण ही लोगों को मारते-पीटते और लूट लेते जो दिन शांति से निकल जाता उसे लोग अपना बड़ा सौभाग्य समझते।
इसी प्रकार बहुत समय व्यतीत हो गया। लोगों का घर से बाहर निकलना बंद हो गया। बच्चों को भी सब अंदर ही रखते, किसी की परछाई भी न पड़ने देते। ऋषि-मुनि और संन्यासी सभी डर के मारे कंदराओं में छिपे रहते, वहीं पूजा-पाठ और यज्ञ हवन भी कर लेते। समय-समय पर श्रीकृष्ण को राक्षसों के अत्याचार की खबर मिलती रहती थी और वह अपने दूतों को लोगों की रक्षा करने के लिए भेजते रहते थे। लेकिन उपद्रवों में कोई कमी नहीं आ रही थी। एक दिन इन उत्पादों से दुःखी होकर सभी लोग अपनी फरियाद लेकर रोते-रोते श्रीकृष्ण के पास आये। उस दिन श्रीकृष्ण के हृदय केा बड़ी ठेस पहुंची। उन्होंने उसी समय प्रतीज्ञा की कि अब मैं इन राक्षसों को नष्ट करके ही दम लूंगा।
श्रीकृष्ण और बलराम दोनों भाई असुरों को नष्ट करने के लिए तैयार होने लगे। उन्होंने अपनी पूरी चतुरंगिनी सेना को तैयारी की आज्ञा दे दी। बड़े जोर-शोर से लड़ाई की तैयारियां होने लगी। बलराम तो थोड़े उग्र स्वभाव के थे, लेकिन श्रीकृष्ण को कभी क्रोध नहीं आता था। इस समय श्रीकृष्ण को भी क्रोध आया देखकर सुभद्रा बहुत ही डर गयी। उन्हें मालूम था कि श्रीकृष्ण का संकल्प कोई ऐसा वैसा नहीं। एक बार कुछ भी काम करने की मन में ठान ली, तो फिर करके ही छोड़ेंगे। श्रीकृष्ण की शक्ति का ज्ञान उन्हें था अवश्य, लेकिन साथ ही असुरों के माया-जाल को भी वह जानती थी। यह सब विचार करके उसका मन अत्यंत अशांत हो गया। तुरंत ही उन्होंने पूजा की थाली सजाई और गौरा पार्वती के मंदिर में अपने भाईयों की मंगलकामना के लिए पूजा करने चल दी।
मंदिर में पहुंचकर गौरा पार्वती की उन्होंने बहुत ही प्रार्थना की। अपने भाईयों की दीर्घायु और युद्ध में उनकी सफलता के लिए वह बहुत देर तक प्रार्थना करती रही। उनकी प्रार्थना से गौरा जी प्रसन्न हो गयी। सुभद्रा ने देखा कि उनके गले में मंगलसूत्र अपने आप ही खुलकर नीचे गिर पड़ा है। उसे प्रसाद समझकर उन्होंने तुरंत ही उठा लिया और घर वापस आ गयी। यह रेशमी धागा जो गौरा पार्वती की मंगलसूत्र था, सुभद्रा ने अपने दोनों भाईयों की कलाइयों में बांध दिया। उन्हें पूर्ण विश्वास था कि गौराजी के प्रसाद को हाथों में बांध देने से अवश्य ही उन दोनों का कल्याण होगा और वे दोनों निश्चित ही असुरों को परास्त करके लौटेंगे। अंत में यही हुआ भी। श्रीकृष्ण-बलराम दोनों युद्ध में विजयी होकर वापस आये। उनके वापस आने पर बहन सुभद्रा ने खूब खुशियां मनाई और कढ़ी चावल और खीर तथा अन्य स्वादिष्ट भोजन बनाकर अपने भाईयों को खिलाएं।
गौरा जी के मंगलसूत्र का प्रभाव किसी से छिपा न रहा। अब सुभद्रा हर वर्ष उसी सावन मास की पूर्णिमा को मंदिर में जाती, गौरा-पार्वती की खूब प्रार्थना करती और जब मंगलसूत्र नीचे गिर जाता, तो प्रसन्न होकर उसे उठा लेती-माथे से लगाकर घर ले आती और अपने भाईयों के हाथों में बांधकर उनकी मंगलकामना करतीं। धीरे-धीरे कालांतर में भाईयों के लिए मानता-मानने का चलन बन गया और बढ़ता ही गया। अब सभी बहनें भाईयों की रक्षा के लिए वहीं गौरा पार्वती का मंगलसूत्र लाकर उनके हाथों में बांधने लगीं। अनेकों वर्ष व्यतीत हो गये हैं। रक्षाबंधन का त्यौहार अब भी उसी भावना से भाईयों की मंगलकामना के लिए ही मनाया जाता है।