जानिए कौन थे पुरुषोत्तम दास टंडन: देश की स्वतंत्रता में टंडन का रहा है अतुलनीय योगदान

पुरुषोत्तम दास टंडन भारत के स्वतंत्रता सेनानी थे। इन्हें प्रथागत रूप से राजर्षि की उपाधि दी गई थी। 1961 में उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान अकल्पनीय था। वह देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाले लोकप्रिय अधिवक्ताओं में से एक थे। उन्होंने कांग्रेस पार्टी को ज्वाइन किया और उसके साथ मिलकर काम किया, पार्टी के साथ ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शित करने के लिए उन्होंने कई कार्यक्रमों में भाग भी लिया। इतना ही नहीं पुरुषोत्तम दास टंडन स्वतंत्रता के बाद भी अपने देश की भलाई के कार्यों में जुटे रहे। 1947 के बाद से वह राजनीति में सक्रिय रूप से जुडे रहे। पुरुषोत्तम दास टंडन हिंदी को भारतीय आधिकारिक भाषा बनाने और लोकसभा में आयोजित पार्टी की बैठकों में भाग लेने के लिए सबसे अधिक याद किए जाते हैं।

जानिए कौन थे पुरुषोत्तम दास टंडन: देश की स्वतंत्रता में टंडन का रहा है अतुलनीय योगदान

पुरुषोत्तम दास टंडन का जीवन

पुरुषोत्तम दास टंडन का जन्म 1 अगस्त 1882 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था। उस दौरान भारत में ब्रिटिश सरकार का राज था। टंडन ने अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद कानून की पढ़ाई की और इसके साथ उन्होंने इतिहास में मास्टर्स की डिग्री भी प्राप्त की।

1906 में उन्होंने कानूनी अभ्यास शुरू किया। ये अभ्यास का उनका पहला साल था। इसके बाद वह इलाहाबाद उच्च न्यायालय के बार काउंसिल में शामिल हुए। 1908 में वह जुनियर के तौर पर प्रमुख वकील तेज बहादुर सप्रू के साथ काम करने लगे और इसके साथ उन्होंने जलियांवाला बाग कांड का अध्ययन करना शुरू किया।

देखते ही देखते उन्होंने अपना पूरा ध्यान स्वतंत्रता संग्राम और राजनीति में केंद्रित कर दिया। स्वतंत्रता और राजनीति के लिए उन्होंने वकालत भी छोड़ दी। उन्होंने वकालत छोड़ने से पहले 1921 में इसका अंतिम अध्ययन किया। .

स्वतंत्रता संग्राम में पुरुषोत्तम दास टंडन की भूमिका

पुरुषोत्तम दास टंडन स्कूल के दिनों से ही भारत को स्वतंत्र बनाना चाहते थे। वह भारत के लिए सिर्फ स्वतंत्रता ही नहीं चाहते थे बल्कि उसके लिए पूरी तरह से समर्पित भी थे। पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने कांग्रेस पार्टी को ज्वाइन किया और भारत के कल्याण से जुड़े कार्य भी करने शुरू कर दिए। 1906 में वकालत का अभ्यास शुरू करने के बाद उन्होंने इलाहाबाद में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करना शुरू किया।

1920 में हुए असहयोग आंदोलन में पुरुषोत्तम दास टंडन ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था। असहयोग आंदोलन में सक्रिय होने के ठीक एक साल बाद वर्ष 1921 में उन्होंने कानून का अभ्यास छोड़ने का फैसला लिया और अपना पूरा ध्यान राजनीति और स्वतंत्रता संग्राम पर केंद्रित कर दिया। साल 1930 में सत्याग्रह और असहयोग आंदोलन में अपनी भागदारी के कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

1934 में पुरुषोत्तम दास टंडन को बिहार में प्रांतिय किसान अध्यक्ष के तौर पर चुना गया। अध्यक्ष के तौर पर चुने जाने के बाद उन्होंने कई किसान आन्दोलन का नेतृत्व किया। 1946 में उन्हें भारतीय संविधान सभा के लिए चुना गया और इसी के साथ वह उत्तर प्रदेश विधानसभा में बतौर अध्यक्ष 13 साल (1947 से 1950) तक बने रहे।

भारत की आजादी के बाद राजनीति में भूमिका

पुरुषोत्तम दास टंडन ने कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए 1948 में चुनाव लड़ा जिसमें उन्हें पट्टाभी सीतारमैया से हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 1950 में दो साल बाद उन्होंने आचार्य कृपलानी को मात देकर कांग्रेस के नागपुर सत्र का नेतृत्व करने का स्थान हासिल किया।

नेहरू के साथ संबंध

शुरूआती दौर में पुरुषोत्तम दास टंडन और नेहरू के बहुत अच्छे संबंध थे। पुरुषोत्तम दास टंडन ने 1930 में नो टैक्स अभियान की शुरुआत की थी, जिसकी सरहाना नेहरू जी ने की थी। पुरुषोत्तम दास टंडन कभी सत्ता के भुखे नहीं थे। वह सरदार वल्लभभाई पटेल को सच्चे नायक के तौर पर देखते थे। कुछ समय बाद टंडन और नहरू के संबंध बिगड़ने लगे। 1950 में हुए कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में उन्होंने आचार्य कृपलानी को मात दी जिसे नेहरू द्वारा समर्थित माना जाता था।

हिंदी भाषा को राष्ट्रीय भाषा बनाने पर जोर

कांग्रेस में कई दिग्गज नेता होने के बावजूद भी टंडन ने हिंदी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में अपनाने की वकालत की। उन्होंने देवनागरी लिपि पर जोर दिया और उर्दू लिपि के साथ अरबी और फारसी वाले शब्दों को अस्विकार करने की बात पर जोर देते हुए बगावत भी की। इसी कारण से उन्हें नेहरू द्वारा पॉलिटिकल रिएक्सनरी कहा गया था।

धार्मिक सहिष्णुता पर पुरुषोत्तम दास टंडन

पुरुषोत्तम दास टंडन हमेशा से हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच समानताओं पर जोर दिया, टंडन की पहचान एक नर्म हिन्दू राष्ट्रवादी नेता के रूप में थी, लेकिन इसके बाबजूद भी उनके जीवन में कई विवाद और अंतर्विरोध है। उदारवादी राधा स्वामी संप्रदाय से जुड़े होने के बाबजूद टंडन लोक सेवा के धार्मिक पहलुओं में धार्मिक आदर्शों को बुलाने में गांधी की तरह सफल नहीं थे। टंडन और केएम मुंशी उन लोगों में से थे जो धार्मिक प्रचार और धर्मांतरण के खिलाफ थे। उन्होंने धर्म परिवर्तन की निंदा करते हुए संविधान सभा में जोरदार तर्क भी दिया था।

पुरुषोत्तम दास टंडन केवल भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के लिए ही नहीं बल्कि कई कारणों से जाने जाते हैं। एक समर्पित राजनयिक, कुशल वक्ता, बेबाक पत्रकार, कवि, लेखक, समाज सुधार और समाज सेवी भी थे। उनके समर्पण और लगन की वजह से गांधी जी उन्होंने प्रेम से राजर्षि कहते थे। हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप आधिकारिक दर्जा दिलावाने में उनका बड़ा योगदान था।

For Quick Alerts
ALLOW NOTIFICATIONS  
For Daily Alerts

English summary
Purushottam Das Tandon is one of India's Freedom fighter. Who have studied law and was practicing but he decided to focus on politics and independence. He has been part of the constituency assembly.
--Or--
Select a Field of Study
Select a Course
Select UPSC Exam
Select IBPS Exam
Select Entrance Exam
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
Gender
Select your Gender
  • Male
  • Female
  • Others
Age
Select your Age Range
  • Under 18
  • 18 to 25
  • 26 to 35
  • 36 to 45
  • 45 to 55
  • 55+