भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का बच्चों से एक अलग ही तरह का लगाव था। उनका मानना था की बच्चें और युवा पीढ़ी देश का भविष्य है। वह कहते थे की आज के बच्चे ही कल के भारत का भविष्य हैं और कल के भारत के भविष्य को बनाने के लिए हमें बच्चों का आज सुरक्षित करने की जरूरत है। बच्चों का भविष्य आज सुरक्षित करने के लिए उन्हें शिक्षा की आवश्यकता है, तभी वह कल भारत के भविष्य में अपना योगदान देंगे। एक प्रधानमंत्री के तौर पर उन्होंने देश की प्रगति के लिए शिक्षा को महत्वपूर्ण माना था और इसकी प्रगति में अपना योगदान भी दिया था। बच्चों के लेकर उनके विचारों के कारण ही उनकी जयंती को राष्ट्रीय बाल दिवस के रूप में चुना गया है। हर साल बाल दिवस बच्चों की शिक्षा और सुरक्षा के साथ उनके अधिकारों के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए मनाया जाता है। नेहरू में शिक्षा को समाज के लिए महत्वपूर्ण माना है और इसके लिए कई योगदान भी दिए हैं जिसके बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं।
शिक्षा के क्षेत्र में नहेरू का योगदान
युवा पीढ़ी की प्रगति के साथ देश की प्रगति को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने साइंस और प्रबंधन के संस्थानों की स्थापना की जो आज भी भारत के सबसे प्रसद्धि और प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान है। उन्होंने 1951 में आईआईटी खड़गपुर की स्थापना की जो विज्ञान और प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण संस्थान है। 1961 में उन्हों इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट की स्थापना कोलकता में की और इसके साथ अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान- एम्स की स्थापना के साथ कई अन्य संस्थानों की भी स्थापना की।
1950 में आईआईटी खड़गपुर के पहले दीक्षांत समारोह में शामिल हुए थें और उस दौरान उन्हें अपने भाषण में भारत के बनते भविष्य की बात कही थी। उन्होंने कहा था - यह जगह हिजली डिटेंशन कैंप की जगह है। जो कि भारत का उत्कृष्ट स्मारक है जो भारत के आग्रह का प्रतिनिधित्व करता है। भारत का भविष्य बन रहा है। यह तस्वीर मुझे भारत में आने वाले बदलावों की प्रतीकात्मक लगती है।
भारत के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना
नेहरू ने भारत में कई आईआईटी संस्थानों की स्थापना में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उन्होंने में बॉम्बे में आईआईटी की स्थापना में सोवियत संघ की सहायता ली। जिसके परिणाम स्वरूप 1958 में आईआईटी बॉम्बे की स्थापना की गई। आईआईटी बॉम्बे के बाद अमेरिका की सहायता से 1959 में कानपूर में एक और आईआईटी संस्थान की स्थापना हुई।
एम्स की स्थापना कोलकता में की जानी थी लेकिन पश्चिम बंगाल के सीएम बिधान चंद्र रॉय द्वारा प्रपोजल को मंजूरी न देने के कारण इस संस्थान को दिल्ली में बनाया गया। एम्स दिल्ली की संस्थान 1956 में की गई थी।
इस के बाद उन्होंने आईआईएम कोलकता और एम्स की स्थापना में एक अहम भूमिका निभाई। उन्होंने 1961 में भारत को प्रबंधन के क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण संस्थान दिया। इस के बाद उसी साल उन्होंने अपने पिता के नाम परमोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान संस्थान की आधारशिला रखी जिसे एमएनएनआईटी भी कहा जाता है।
नेहरू ने बारत की ललित कला अकादमी और साहित्य अकादमी की स्थापना में सहयोग किया और बाद में वह इनके पहले अध्यक्ष बने। शिक्षा ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जिसमें उन्होंने अपना योगदान नहीं दिया। उन्होंने साइंस और प्रबंधन को भारत के लिए उतना ही आवशयक उन्होंने ललित कला और साहित्य को भी समझा।
बच्चों की प्राथमिक शिक्षा पर नेहरू के विचारों की आलोचना
नेहरू द्वारा लाई पंचवर्षीय योजनाओं में बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा की प्रतिबद्धात को उल्लेखित किया। जिसके लिए उन्हें आलोचना को भी सामना करना पड़ा था। नोबल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन द्वारा मुफ्त और प्राथमिक शिक्षा के विचार की आलोचना की गई थी। अमर्त्य सेन का कहना था कि "नेहरू प्राथमिक शिक्षा की समझ रखते हैं और इसके लिए प्रतिबद्ध भी थें, लेकिन संसाधनों, प्राथमिकताओं या नियोजन के मामले में ये एक बड़ी विफलता थी।" लेकिन आज के इस युग में नेहरू की ये बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा के सफल योजनाओं में से एक है। इसके माध्यम से कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित नहीं रह सकता है।