Opinion: विश्व स्वास्थ्य दिवस 2023: मानसिक, शारीरिक और सामाजिक स्वास्थ्य की भूमिका

World Health Day 2023: वर्ष 1948 में विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्थापना के बाद दुनिया भर में स्वास्थ्य के महत्व और चिकित्सकों के योगदानों को महत्व देने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष 07 अप्रैल 1948 को विश्व स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। 7 अप्रैल 1948 से संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुषांगिक संस्था विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा दुनिया भर में विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। आज की वर्तमान वैश्विक परिस्थिति में यह जानना अत्यंत आवश्यक है कि अपने 1948 के संविधान में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्वास्थ्य की जो परिभाषा दी थी वो क्या है। इसके अनुसार, शारीरिक बीमारी और कमजोरी का न होनी स्वस्थ होना नहीं होता, बल्कि मानसिक, शारीरिक और सामाजिक आरोग्यता की पूर्णता ही स्वास्थ्य है। इस विषय पर विचार विमर्श होना आवश्यक है।

Opinion: विश्व स्वास्थ्य दिवस 2023: मानसिक, शारीरिक और सामाजिक स्वास्थ्य की भूमिका

डॉक्टर और जनसंख्या के बीच का अनुपात, दवा वितरण प्रणाली, बाजारीकरण में औषधियों का महंगा होना ही स्वास्थ्य का विषय नहीं है, बल्कि आज विश्व में नए खोंज करने वाला और प्रौद्योगिकी एव तकनीकी क्षेत्र में आसमान छू लेने वाला व्यक्ति भी स्वास्थ्य के विषय पर खुद को कमजोर पाता है। इसका उदाहरण हमने कोरोना महामारी काल के दौरान देख लिया था। किस प्रकार कोरोना महामारी के फैलते ही इसने पूरे विश्व को घुठनों पर लाकर खड़ा कर दिया था। इस दौरान लोगों में न केवल शारीरिक स्वास्थ्य बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के ऊपर भी काफी बुरा प्रभाव डाला। विश्व के सभी देशों को आज मानसिक, शारीरिक और सामाजिक स्वास्थ्य की भूमिका पर चिंतन की आवश्यकता है।

वर्तमान परिस्थिति पर गौर करें तो मनुष्य अपने आने वाले कल को लेकर उतना ही सशंकित है, जितना कि वह विकास के क्रम में इस मानव की उद्विकास पीढ़ी का सबसे पहला मानव ऑस्ट्रेलोपीथिकस रहा होगा। भारतीय सुरक्षा और संरक्षा को लेकर मानव ने संस्कृति का निर्माण किया। वही संस्कृति आज मानव को अस्तित्व के निर्धारण में वहां ले जाकर खड़ा कर चुकी है, जहां पर एक मानव दूसरे मानव से ही श्रेष्ठता साबित करने में पर्यावरण असंतुलन पैदा कर रहा है। विश्व युद्ध के कारण वायु प्रदूषण की उस सीमा तक पहुंच चुका है, जहां मनुष्य और पृथ्वी के किसी भी प्राणी के लिए सांस लेना दूभर हो रहा है।

स्वास्थ्य के साथ मानसिक आरोग्यता

नित-नए वैज्ञानिक आविष्कारों ने व्यक्ति के अंदर शारीरिक सुख और जैविक शरीर के प्रति लोलुपता को इस कदर बढ़ा दिया है कि प्रकृति के साथ रहने वाला शरीर विज्ञान के साथ रहकर बहुत अप्राकृतिक हो गया है। तेज भाग-दौड़ और प्रतियोगिता के कारण लोग अब मानसिक रूप से अधिक अस्वस्थ रहने लगे हैं। मानसिक आरोग्यता अब एक दिवास्वप्न हो चुका है। पूरी पृथ्वी को अपनी मुट्ठी में समेट लेने और अपनी आकांक्षाओं को पूरा न कर पाने के लिए व्यक्ति के दिमाग में जो द्वंद पैदा हुआ है, उससे उसके मस्तिष्क को संक्रमित कर दिया है। वह हीन भावना से ग्रस्त रहने लगा है। आज अवसाद, कुंठा और निराशा मनुष्य के जीवन का एक बड़ा हिस्सा बन गया है। वह तंजानिया के सेरेंगीति जंगल में रहने वाले उन जानवरों से भी अपने को हीन समझने लगा है जो मौसम बदलने के साथ-साथ अपने आवास स्थल को बदल कर अपने जीवन के स्थायित्व को व्यवस्थित करते हैं। मानव परिवर्तन के अनुसार अपनी मूल स्थिति और अस्तित्व को बनाए रखने की बात से ज्यादा अब इस बात पर ध्यान देता है कि कितने परिवर्तन भौतिक संस्कृति में उसके चारों तरफ हो रहे हैं और वह सभी कुछ उसके मुट्ठी में क्यों नहीं है। इन सब कारणों से ही मानसिक अशांति ने आज मनुष्य जाति को घेर लिया है। स्वास्थ्य का तात्पर्य केवल शारीरिक स्वास्थ्य से नहीं होता बल्कि मनुष्य के मानसिक स्वास्थ्य से भी होता है। धर्म के मनोविज्ञान को उसने तर्क के साथ जोड़कर उस अलौकिक शक्ति को भी सिर्फ एक परंपरा का विषय मानकर स्वयं के अस्तित्व को ही सर्वोच्चता प्रदान कर दिया है जिसके कारण मानव ना सिर्फ अकेला हो गया है बल्कि उसका जीवन इकांगी हो गया है। इसका परिणाम मानसिक रुग्णता के रूप में हमारे सामने है और इस विषय पर बात करने की आवश्यकता है।

शारीरिक आरोग्यता और स्वास्थ्य की परिभाषा

स्वास्थ्य की परिभाषा के शारीरिक आरोग्यता दूसरा और महत्वपूर्ण विषय है। आज यह इतना गंभीर हो चुका है कि भौतिक संस्कृति में आकंठ तक डूबा हुआ मानव इसके प्रभावों को समझने के लिए तैयार नहीं है। मानव इस बात को समझने के लिए तैयार नहीं है कि पेड़ों के काटने से पृथ्वी के तापमान बढ़ने तक अंधाधुंध स्वीकृति से उसके जैविक शरीर पर क्या असर पड़ रहा है। वह इस बात को सुनने के लिए तैयार ही नहीं है कि 20 डिग्री सेंटीग्रेड पर ही यूरिक एसिड शरीर में न रुक कर बाहर निकल जाता है। मनुष्य वातानुकूलित वातावरण में रहने के लिए इस तापमान की अनियमितता को स्वीकार कर रहा है। वह यह समझना ही नहीं चाहता कि हरी सब्जियों में कोलेस्ट्रॉल बिल्कुल नहीं पाया जाता। कई अध्ययनों में यह पाया गया है कि आज जिस प्रकार जंतु वसा और मांस का असीमित स्तर पर उपभोग किया जा रहा है, उससे दृदय रोग और लीवर संबंधी रोग बढ़ रहे हैं। मनुष्य आज अपने जैविक शरीर से ज्यादा इस बात पर विमर्श करना चाहता है कि अस्पतालों में पर्याप्त संख्या में डॉक्टर क्यों नहीं है और सरकार इसकी अनदेखी क्यों कर रही है। इसके अलावा भारत में औषधि वितरण में असंतुलन क्यों है। मनुष्य अपने शरीर को सर्वोच्चता प्रदान करके उन स्थितियों को स्वीकार नहीं करना चाहता है, जिनको स्वीकार करके वह चंदन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग वाली स्थिति में अपने जैविक शरीर को एक उन्नत स्थिति में रख सकता है।

तीसरे और अंतिम तथ्य अर्थात सामाजिक आरोग्यता के संदर्भ में सबसे बड़ी बहस होनी चाहिए, क्योंकि मानव जाति ने संस्कृति बनाकर जिस आदर्श की परिकल्पना करके मानव जीवन में विवाह, परिवार, नातेदारी, राजनीतिक संस्थाएं, आर्थिक संस्थाएं, धर्म आदि को स्थापित किया था, वह सभी मानव जीवन को प्रभावित कर रहे हैं। यह इस तरह से प्रभावित कर रहे हैं कि उनका जीवन नकारात्मक हुआ जा रहा है। जनसंख्या और संसाधनों के बीच उत्पन्न असंतुलन मौद्रिक जीवन आधारित असंतुलन इस स्थिति में पहुंच गया है कि मानव, मानव के ऊपर परजीवी के रूप में रहना चाहता है। अब वह संबंधों से ज्यादा मौद्रिक संस्कृति पर विश्वास रखता है, जिस तरह से संबंधों में बिखराव आया है, जिस तरह से विवाह परिवार के प्रति लोगों ने अविश्वास दिखाना शुरू किया है। व्यक्तिगत जीवन को सर्वोच्चता प्रदान कर उसने घर के अंदर और घर के बाहर एक तनाव कलह और अस्तित्व के संघर्ष को फैला दिया है। यह फैलाव इस कदर है कि आदमी घर जाने से भी डरने लगा है और घर से बाहर निकलने में भी डरने लगा है। यह उनके सामाजिक संबंधों के क्षीण होने के कारण हो रहा है, जो सामाजिक रुग्णता का सीधा-सीधा प्रहार है। आज संस्कृति में संबंधों के विघटन स्थानीय स्तर, परिवारिक स्तर, और वैश्विक स्तर पर खत्म हो रहे हैं। इसके कारण मानव फिर से प्रकृति के साथ जंगल में रहने वाले मानव की तरह ही एक अकेलेपन के दौर से गुजर रहा है और यही अकेलापन इस बात को स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त है कि मानव बीमार है। वह अंदर से खोखला हो चुका है और इस सामाजिक बीमारी पर भी गंभीरता पूर्वक गहराई से विमर्श की आवश्यकता है।

इस तथ्य को विश्व स्वास्थ्य संगठन को भी समझना होगा कि केवल डॉक्टरों की लंबी लाइन और दवाओं के वितरण से ही पूर्ण स्वास्थ्य की कल्पना नहीं की जा सकती। बल्कि संबंधों के दायरे में मनुष्य कितना खोखला और अकेला होता जा रहा है और उसके कारण जो रुग्णता का संसार बन रहा है, उस पर भी ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। यही विश्व स्वास्थ्य दिवस की सबसे बड़ी बहस होनी चाहिए।

डॉ आलोक चांटिया, अखिल भारतीय अधिकार संगठन लेखक, विगत दो दशक से मानवाधिकार जागरूकता का कार्यक्रम चला रहे हैं।

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English summary
World Health Day 2023: After the establishment of the World Health Organization in the year 1948, every year on 07 April 1948 is celebrated as World Health Day with the aim of giving importance to the importance of health and the contributions of physicians around the world. World Health Day is celebrated worldwide by the World Health Organization, a subsidiary of the United Nations, since 1948. In today's current global situation, it is very important to know what is the definition of health given by the World Health Organization in its 1948 constitution. According to this, being healthy is not the absence of physical illness and weakness, but the completeness of mental, physical and social well-being is health. It is necessary to have a discussion on this topic.
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