Navratri 2024 Shailputri Mata : नवरात्रि का त्योहार हिंदू धर्म में सबसे खास त्योहारों में से एक है। देवी शक्ति की अराधना में नवरात्रि वर्ष में दो बार मनाई जाती है। चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि। भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म में शारदीय नवरात्रि का पर्व विशेष महत्व रखता है। नवरात्रि के दौरान देवी दुर्गा के नौ अलग अलग रूपों की अराधना की जाती है।
देवी दुर्गा के इन नौ स्वरूपों में सम्मिलित रूप से नवदुर्गा के नाम से भी जाना जाता है। शारदीय अमावस्या के साथ पितृ पक्ष की समाप्ति के बाद आश्विन महीने के शुल्क पक्ष की प्रतिपदा तिथि में नवरात्रि की शुरुआत होती है। इस वर्ष नवरात्रि का त्योहार 3 अक्टूबर 2024 अर्थात आज से शुरू हो रहा है। नवरात्रि के पहले दिन देवी शक्ति के पहले स्वरूप अर्थात माता शैलपुत्री की पूजा-अर्चना की जाती है। नवरात्रि के इस पावन अवसर पर करियर इंडिया हिंदी द्वारा अपने पाठकों को पढ़ाई के साथ ही साथ हिंदू धर्म से जुड़ी कुछ पौराणिक कहानियां भी बताई जायेंगी।
ये लेख संपूर्ण रूप से नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों के बारे में शिक्षा प्रदान करने और स्कूली छात्र-छात्राओं में नवरात्रि के त्योहार को समझने के उद्देश्य से प्रस्तुत किया जा रहा है। इस सीरिज में हम नवरात्रि के नौ दिनों तक देवी दुर्गा के नौ रूपों के बारे में विस्तार से बतायेंगे। कई बार प्रतियोगी परीक्षाओं में हिंदू धर्म और नवरात्रि के त्योहार पर प्रश्न पूछे जाते हैं। परीक्षाओं में पूछे जाने वाले इन प्रश्नों की बेहतर तैयारी के लिए आप हमारे इस सीरिज से संदर्भ ले सकते हैं।
आज के इस लेख में हम आपको बता रहे हैं कि कौन हैं माता शैलपुत्री? नवरात्रि के पहले दिन क्यों की जाती है मां शैलपुत्री की पूजा अर्चना? स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे मां दुर्गा ने नौ स्वरूपों के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री पर निंबध लिखने के लिए इस लेख से मदद ले सकते हैं। आइए जानते हैं नवरात्रि का पहला दिन शैलपुत्री माता के बारे।
कौन हैं माता शैलपुत्री?
मां शैलपुत्री का नाम संस्कृत शब्द "शैल" से लिया गया है। इसका अर्थ है पहाड़, और "पुत्री" का शाब्दिक अर्थ बेटी है। इस प्रकार शैलपुत्री का अर्थ है पर्वतराज हिमालय की पुत्री। हिंदू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माता शैलपुत्री को पर्वतराज हिमालय की पुत्री माना जाता है और इन्हें मां दुर्गा का पहला रूप कहा जाता है।
पुराणों के अनुसार, मां शैलपुत्री पूर्व जन्म में सती थीं। सती का विवाह भगवान शिव के साथ हुआ था और वे भगवान शिव की पत्नी थीं। जब सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव के अपमान के कारण आत्मदाह कर लिया था, तब अगले जन्म में वे पर्वतराज हिमालय के घर में पुत्री के रूप में जन्मीं और इस कारण उनका नाम शैलपुत्री पड़ा।
मां शैलपुत्री का स्वरूप कैसा है?
पुराणों के अनुसार, मां शैलपुत्री के एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल का फूल होता है। वे वृषभ (बैल) पर सवार रहती हैं। उनका यह रूप शक्ति और साहस का प्रतीक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता शैलपुत्री हिमालय पर्वत पर विराजमान हैं।
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा क्यों की जाती है?
कई बार आपके मन में भी यह प्रश्न अवश्य आया होगा कि आखिर नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा क्यों की जाती है? नवरात्रि का प्रथम दिन आध्यात्मिक साधना का प्रारंभ है। मां शैलपुत्री की पूजा से व्यक्ति को मानसिक शांति, धैर्य और साहस मिलता है। यह दिन व्यक्ति को उसकी आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत करने के लिए प्रेरित करता है। मां शैलपुत्री को प्रकृति और पर्यावरण का प्रतीक भी माना जाता है। उनकी पूजा करने से हमें यह संदेश मिलता है कि हमें प्रकृति से प्रेम और उसका संरक्षण करना चाहिये।
छात्रों को क्यों करनी चाहिये मां शैलपुत्री की पूजा, क्या महत्व है?
छात्रों के लिए नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा करना बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। मां शैलपुत्री मन और मस्तिष्क को दृढ़ इच्छा शक्ति के लिए ऊर्जा प्रदान करती हैं। उनकी आराधना करने से मन के भीतर शुद्धता और पवित्रता का संचार होता है। मां शैलपुत्री की पूजा अर्चना और उनकी अराधना से मन के बल को पहचानने और जीवन में आगे बढ़ने में मदद मिलती है।
शास्त्रों के जानकार सुशांत बनर्जी बताते हैं कि मां शैलपुत्री जीवन में आने वाली कठिनाइयों का सामना करने और अपने संकल्पों पर अडिग रहने की प्रेरणा देती हैं। जीवन में उन्नति और दृढ़ संकल्प के लिए छात्रों को नवरात्रि के पहले दिन शैलपुत्री की पूजा करनी चाहिये। मां शैलपुत्री की विधिवत पूजा से जीवन में धैर्य, साहस, करुणा और शक्ति का समन्वय बना रहता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां शैलपुत्री का जन्म पर्वतराज के घर में हुआ। यह उनके धैर्य का प्रतीक माना जाता है। इससे हमें यह सीख मिलती है कि चाहे जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएं, हमें धैर्य और संयम बनाए रखना चाहिये। जीवन में धैर्य ही वह गुण है, जो हमें सफलता तक पहुंचने में मदद करता है। देवी शैलपुत्री का अवतार हमें अपनी स्वतंत्रता और आत्मसम्मान को बनाए रखने का भी संदेश देता है। उनके नाम में 'शैल' का अर्थ पर्वत है। यह उनकी दृढ़ता और आत्मविश्वास का प्रतीक है। हमें भी जीवन में अपने सिद्धांतों पर अडिग रहना चाहिये और कभी किसी अन्याय के आगे झुकना नहीं चाहिये।
मां शैलपुत्री की पूजा विधि
मां शैलपुत्री की पूजा में शुद्धता का विशेष महत्व होता है। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की विधिवत पूजा करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण पूजा सामग्रियों की आवश्यकता होती है। इनमें शुद्ध जल, दुर्गा सप्तशती का पाठ, धूप-दीप, और सफेद फूलों का विशेष महत्व होता है। माता शैलपुत्री की पूजा करते समय भक्त उनकी कृपा से मानसिक शांति और आत्मविश्वास की प्राप्ति की कामना करते हैं। मां शैलपुत्री की कृपा से जीवन में आने वाली सभी बाधाओं से मुक्ति मिलती है और उसके जीवन में नई ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार होता है।
मां शैलपुत्री मंत्र
ऊँ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥
वन्दे वंछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढाम् शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
नवरात्रि के पहले दिन का रंग
मां शैलपुत्री को लाल रंग अत्यंत प्रिय है। इसलिए नवरात्रि के पहले दिन का रंग लाल माना जाता है। मां शैलपुत्री की पूजा के दौरान स्नान आदि के बाद लाल रंग के वस्त्र पहन कर पूजा कर सकते हैं।