National Girl Child Day Shayari 2023 Poem: आज 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जा रहा है। गूगल ट्रेंड्स में राष्ट्रीय बालिका दिवस पर शायरी, कविता, मैसेज, शुभकामनाएं संदेश, फोटो, वॉलपेपर, व्हाट्सएप स्टेटस और वीडियो टॉप पर चल रहे हैं। सभी लोग अपनी प्यारी बेटियों को राष्ट्रीय बालिका दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं देने के लिए गूगल सर्च में राष्ट्रीय बालिका दिवस की बेस्ट कविता और शायरी खोज रहे हैं।
ऐसे में यदि आप भी अपनी प्यारी बिटिया को राष्ट्रीय बालिका दिवस की शुभकामनाएं देना चाहते हैं तो हम आपके लिए सबसे बेस्ट राष्ट्रीय बालिका दिवस पर शायरी और टॉप कवियों द्वारा रचित राष्ट्रीय बालिका दिवस पर कविता लेकर आए हैं, जिन्हें आप अपनों के साथ साझा कर सकते हैं और अपनी बिटिया रानी क राष्ट्रीय बालिका दिवस की शुभकामनाएं दे सकते हैं।
राष्ट्रीय बालिका दिवस 2023 शायरी कविता (National Girl Child Day 2023 Shayari Poem)
कब वहां रूकती जहां वो पलती हैं,
जब बेटियां पाज़ेब पहनकर चलती हैं
रौनक़ घर में बेटियों से ही होती है,
मौजूदगी से वो घरों को रोशन करती हैं।
खिलती हुई कलियां होती हैं ये बेटियां,
माँ-बाप का दर्द समझती हैं ये बेटियां,
घर को हमेशा रोशन करती हैं ये बेटियां,
लड़के आज हैं तो आने वाला कल हैं बेटियां।
मैं एक नारी हूं, हर हाल में जीना जानती हूं
बेटी बनूं तो पिता की शान बन जाती हूं,
बहन बनूं तो भाई का अभिमान बन जाती हूं
बीवी बनूं तो पति का भाग्य बन जाती हूं,
मां बनूं तो बच्चों की ढाल बन जाती हूं।
मैं एक नारी हूं, हर हाल में जीना जानती हूं
होए जो पैसा पहन के गहने मैं बहुत इठलाती हूं,
हालात ना हो तो दो जोड़ी कपड़े में ही अपना जीवन बिताती हूं
कभी तो अपनी हर बात में मनवा जाती हूं,
तो कभी चुप घड़ी औरों की बात सुन जाती हूं।
मैं एक नारी हूं, हर हाल में जीना जानती हूं
कभी बनकर की लाडली मैं खूब खिलखिलाती हूं,
तो कभी दरिंदों से अपना दामन बचाती हूं
कभी रख फूलों पर अपने कदम महारानी बन जाती हूं,
तो कभी दे अग्नि परीक्षा अपना अस्तित्व बचा जाती हूं।
मैं एक नारी हूं, हर हाल में जीना जानती हूं
आए मौका खुशी का तो फूलों से नाजुक बन जाती हूं,
आए जो दुखों का तूफान तो चट्टान बन अपनों को बचाती हूं
मिले जो मौका हर क्षेत्र पर अपना हुनर दिखलाती हूं,
जो ना मिले मौका तो चारदीवारी में ही अपना जीवन बिताती हूं।
मैं एक नारी हूं, हर हाल में जीना जानती हूं
उड़ान भर्ती हूं तो चांद तक पहुंच जाती हूं,
मौके पड़ने पर बेटों का फर्ज भी निभा जाती हूं
करके नौकरी पिता का हाथ बटाती हूं,
दे कांधा उन्हें श्मशान भी पहुंचाती हूं।
मैं एक नारी हूं, हर हाल में जीना जानती हूं
आए जो भी चुनौती उसका डट के सामना कर जाती हूं,
मिले जो प्यार तो घर को स्वर्ग सा सजाती हूं,
हुए जो अत्याचार तो बन काली सर्वनाश कर जाती हूं
मैं कोई बोझ नहीं यह हर बार साबित कर जाती हूं
मैं एक नारी हूं, हर हाल में जीना जानती हूं।
(कवि कुलदीप शर्मा)
एक लड़की मां की कौख से जन्म लेती है,
धिक्कारी जाती है, आखिर क्यों ?
जो कभी खुद बेटी बन कर आई दुनिया में,
बेटी ने ही बेटी को दुत्कारा,आखिर क्यों?
जैसे जैसे बड़ी हुई पापा की लाडली बनी,
घर के कामों में लिप्त किया, आखिर क्यों?
दुनियादारी निभाते हुए शिक्षा पाई,
अधूरे सपनों के साथ हुई विदाई, आखिर क्यों?
मां -बाप का दर छूटा साजन के घर आई,
नौकरी के साथ घर भी संभाला, आखिर क्यों?
एक औरत सब फर्ज निभाती रही,
खुद को समय न दे पाई, आखिर क्यों?
मतलब में सबने दो बोल बोले प्यार के,
दिल के हाथों मजबूर रही वो, आखिर क्यों?
वो पिसती रही प्यार से परिवार के लिए,
कुछ नहीं करती ये भी सुना उसने, आखिर क्यों?
नौकरी करतें-करते हर फर्ज निभाया,
रिटायरमेंट का समय आया उसके जीवन में
फिर सबने अपने सपनों की नींव सजाई, आखिर क्यों?
औरत ने भी कुछ अपने कुछ सपने पाले थे
उसके सपनों को भी बलि चढ़ाई,आखिर क्यों ?
इतना करने पर भी उससे सुनना पड़ा,
तू घर पर रहती है करती क्या हैं, आखिर क्यों?
सुना है समाज में औरत, मर्द का समान दर्जा है,
विजयलक्ष्मी को कागजों में नजर आया, आखिर क्यों?
पिसते-पिसते जिस्म से निढाल हो गई,
औरत के दिल की सुनवाई नहीं हुई, आखिर क्यों?
आत्म निर्भर हो कर भी मर्द के हाथों आश्रित रही,
दो घरों की इज्जत के लिए बलि चढ़ गई, आखिर क्यों?...
(विजयलक्ष्मी शिक्षिका हरियाणा)
जन्म लिए जब जग मे जान, पहली माता से हुई पहचान
जब माता ने दूध पिलाया, ममता से मोह पैदा मान
सबसे पहले मै था उसने, ना रखा अपना भी ध्यान
मल मूत्र करता था जब, तुरंत बदलती मेरा स्थान
बोल चाल खाने पीने का, मां ने सब सिखलाया ज्ञान
खतरा कभी नही आने दिया, मेरी माता थी मेरा भगवान
मां से बढकर कुछ ना होता, मां का दर्जा महान
(कवि कुलदीप शर्मा)
राष्ट्रीय बालिका दिवस की शुभकामनाएं