भारत इस वर्ष अपना 76वां स्वतंत्रात दिवस मनाने जा रहे है। भारत की आजदी में कई स्वतंत्रता सेनानी ऐसे है जिनका नाम इतिहास के पन्नों में कहीं खो सा गया है। ये वह गुमनाम सेनानी हैं जिन्होंने देश के लिए अपना योगदान दिया। इन लोगों ने कभी भी अपनी जान की परवाह नहीं की इनके लिए सबसे ऊपर भारत की आजादी थी। आज भारत आजादी का अमृत महोत्सव केवल इन्हें के बलिदानों की वजह से मना रहा है। आजदी में जिस प्रकार योगदान पुरुषों ने दिया है उतना ही योगदान महिलाओं ने दिया। महिला स्वतंत्रता सेनानियों ने भी देश की आजादी में बढ़ चढ़ के हिस्सा लिया है। वह किसी भी कार्यों को करने के लिए पीछें नहीं हटी। सभी अन्य सेनानियों के साथ कदम से कदम मिलाकर उन्होंने देस की आजादी का जिम्मा अपने कंधों पर लिया। जहां कहीं महिलाओं को लोग चार दीवारों में कैद करने की सोचते हैं और यह मानते हैं की वह महिलाए कुछ नहीं कर सकती वहीं इन महिलाओं ने सभी कैदों को तोड़ के भारत की आजादी के लिए खुद को समर्पित किया। आज हम आपकों उन्हीं महिला स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में बताने जा रहे हैं। आइए जानते है भारत की स्वतंत्रता में उनके योगदान के बारे में-
1). रानी अब्बक्का चौटा, उल्लाली
रानी अब्बक्का चौटा का जन्म 1525 में हुआ था। वह पहली भारतीय महिला स्वतंत्रता सेनानी हैं जिन्होंने भारत की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी थी। वह उन कुछ स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थी जिन्होंने भारत को उपनिवेशवाद और विदेशियों के राज से मुक्त करवाने का प्रयत्न किया। उन्होंने पुर्तगालियों के खिलाफ युद्ध किया और अपनी मां की हार का बदला लेने का निश्चय किया। इस तरह से रानी अब्बक्का ने पुर्तगालियों को मैंगलोर से बाहर निकालने के लिए बहुत मेहनत की। उनके इस निश्चय को देख कर उन्होंने अपने लोगों का सम्मान प्राप्त किया।
2). रानी वेलु नचियार और कुयली, शिवगंगा
वेलु नचियार का जन्म 3 जनवरी 1730 में हुआ था। वह पहली भारतीय रानी थी जिसने ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ युद्ध की शुरूआत की। उन्हें तमिलों द्वारा वीरमंगई के नाम से भी जाना जाता है।
3). रामगढ़ की रानी अवंती बाई
रानी अवंती बाई का जन्म 16 अगस्त 1831 में हुआ था। वह रामगढ़ मध्य प्रदेश की रानी थी। अवंती बाई को मुख्य तौर पर 1857 में हुई क्रांति में उनके योगदान के लिए जानी जाती है। उनकी पहली लड़ाई ब्रिटिश के खिलाफ केरी गांव में हुई थी। ये गांव मध्य प्रदेश के पास ही स्थित था।
4). कित्तूर की रानी चेन्नम्मा
रानी चेन्नम्मा का जन्म 14 नवंबर 1778 में हुआ था। रानी चेन्नम्मा को मुख्य तौर पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ 1824 की क्रांति के लिए जाना जाता है।
5). फूलो मुर्मू और झानो मुर्मू
फूलो और झानो आदिवासी समाज से थी। ये मुर्मू आदिवासी समुदाय से थी। ये समुदाय शांति के साथ अपना जीवन व्यतीत कर रहा था। लेकिन फीर अचानक ब्रिटिश इंडिया कंपनी ने उनकी जमीन पर कब्जा करना शुरू किया और जमींदारी प्रथा की शुरूआत हुई। फूलो और झानो ने इस जमींदारी प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई। उनकी बड़ी बहन जब 21 ब्रिटिश लोगों को मारा तो उसके बदले में ब्रिटिश सेना के लोगों ने इस आदिवासी समाज के करीब 25000 लोगों को मार दिया।
6). बेलावाड़ी मल्लम्मा
बेलावाड़ी मल्लम्मा, बेलवाड़ी की रानी थी। उन्होंने बेलवाड़ी के ईसप्रभु से विवाह किया। भारत के इतिहास में उन्हें पहली रानी होने का दरजा दिया जाता है। बेलावाड़ी मल्लम्मा ने 17 वीं सदी में एक महिला सेना बनाई और उस सेना को प्रशिक्षण भी दिया। रानी बेलावाड़ी मल्लम्मा ने अपने राज्य की रक्षा करने के लिए शिवाजी से युद्ध किया था।
7). ओनाके ओबाव्वा
ओनाके ओबाव्वा कर्नाटका की हिंदू योद्धा थी। इन्हें मुख्य तौर पर हैदर अली की सेना से अकेले युद्ध करने के लिए जाना जाता है। उन्होंने सैनिकों को एक छेद से किले में आते देखा तो उन्होंने इन सैनिकों से अकेले लड़ना शुरू कर दिया। उन्होंने सैनिकों को मारने के लिए लकड़ी व अन्य चीजों का इस्तेमाल करना शुरू किया। फिर बाकि सैनिकों का ध्यान अपनी ओर खीचे बिना मरे हुए सैनिकों को दूसरे स्थान पर स्थानांनतरित करना शुरू कर दिया। जब उनके पति घर लौटे तो उन्होंने अपनी पत्नी को खुन में सना देखा और आर पास मरे हुए सैनिक पड़े हुए थे। इसी दौरन उनकी भी जान चली गई थी लेकिन उन्होंने किले को सुरक्षित कर लिया था।
8). माता भाग कौरी
मई भागो को माता भाग कौरी के नाम से जाना जाता है। वह एक सिख महिला स्वतंत्रता सेनानी थी। जिन्होंने मुगल सम्राज्य के खिलाफ युद्ध की शुरूआत की थी। उन्होंने 1705 में मुगलों के खिलाफ लड़ाई की थी। वह एक कुशल योद्धा थी। वह मुख्य तौर पर आनंदपुर साहिब की घेराबंदी पर गुरू गोबिंद सिंह को त्यागने और वापस लड़ने के लिए 40 सिखों के रैली को लाने के लिए जानी जाती है। मई भागो ने रागिस्तानियों को एकत्रित किया और गुरु से मिलकर मांफी मांगने के लिए राजी किया। इसके बाद वह तलवंडी गुरु गोबिंद सिंह के साथ रही। वह गुरु के 10 अंगरक्षकों में से एक बनी।
9). लक्ष्मी सहगल
लक्ष्मी सहगल का जन्म 24 अक्टूबर 1914 में हुआ था। वह एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थी और इसी के साथ वह भारतीय नेशनल आर्मी और आजाद हिंद फौज में की मिनिस्ट्री ऑफ वुमन अफेयर्स का हिस्सा थी। उन्हें मुख्य तौर पर कैप्टन लक्ष्मी के नाम से जाना जाता है। वह एक डॉक्टर भी थी। अपने सिंगापुर के निवास के दौरन उन्हें ये पता चला की सुभाष चंद्र बोस एक महिला आर्मी बना रहे है तो उन्होंने बोस से मिलने की इच्छा जताई। बोस से मिलने के बाद वह इस आजाद हिंद फौज का हिस्सा बनी और उनकी काबिलियत को देख कर उन्हें इस सेना का कैप्टन बनया गया। उन्हें झांसी रेजिमेंट की रानी के रूप में भी जाना जाता है।
10). मूलमती: स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति पूर्ण प्रतिबद्धता
मूलमती एक सच्ची देश भक्त। वह राम प्रसाद बिस्मिल की मां थी जो खुद भी एक स्वतंत्रता सेनानी थे। उनके बेटे को स्वतंत्रता का लड़ाई के लिए उन्होंने पूरा समर्थन दिया। वह एक साधारण महिला थी लेकिन एक सच्ची देश भक्त। राम प्रसाद बिस्मिल की मृत्यु के बाद हुई एक बैठक में उन्होंने स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए अपने दूसरे बेटे का हाथ उठाया। उनके पुत्रों में देश के लिए प्रेम की भावना उनकी मां से ही आई। मूलमती स्वतंत्रता आंदोलन के पूर्ण रूप से प्रतिबद्धता थी।