भारत के उत्तर पू्र्व में स्थित राज्य उसकी खूबसूरती, प्राकृतिक सुंदरता और अपनी ससंकृति के लिए जाने जाते हैं। भारत विविधताओं से भरा देश है और यहा हर राज्य की अपनी संस्कृती के लिए जाने जाते हैं। हर राज्य की अपनी अलग ही पहचान है जो उसे एक दूसरे से अलग तो करती है, लेकिन फिर भी ये सभी एक हैं क्योंकि ये सभी राज्य भारत के अभिन्न अंग हैं। भारत में हर संस्कृती का अपना महत्व है और उसे किसी भी प्रकार से कम नहीं समझा जाता। भारत में सबसे ज्यादा घुमने वाले राज्यों में से एक है उत्तर पूर्वी यानी नॉर्थ ईस्ट के राज्य।
भारत के उत्तर पूर्व के राज्यों में अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा शामिल हैं। इनमें से कुछ राज्य किसी अन्य राज्य से अपनी संस्कृति की वजह से एक अलग राज्य बने हैं, तो कुछ राज्यों ने भारत में विलय किया है। लेकिन फिर भी स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इन सभी राज्यों ने अपना पूरा योगदान दिया। इन राज्यों से कई स्वतंत्रता सेनानी आए जिन्होंने देश के नाम खुद को समर्पित किया। लेकिन आज इन सेनानियों का नाम इतिहास के किसी कोने में कहीं खो सा गया है। जिसको याद करना और आने वाली जनरेशन को बताना अतिआवश्यक है। ये वही राज्य हैं जिनके योगदान को अन्य भारतीय राज्यों के योगदान की तरह ही भूलाया नहीं जा सकता है। भारत आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा और ये मुमकिन ही इसलिए हुआ है क्योंकि इन सभी सेनानियों ने अपने आपको भारत की स्वतंत्रता के लिए समर्पित किया। भारत इस वर्ष अपना 76 वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है जिसके महाउपलक्ष में इन सभी सेनानियों को याद करना और भी आवश्यक हो जाता है। आईए इस स्वतंत्रता दिवस पर भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों के स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जाने।
1). मनीराम दीवान
मनीराम दत्ता दीवान का जन्म 17 अप्रैल 1806 में हुआ था। वह असम के मूल निवासी थें जो भारत के उत्तर पूर्व में स्थित है। इन्हें ऊपरी असम के लोगों में कलिता राजा के नाम से जाना जाता है। अपने जीवन के शुरूआती समय में तो ये ब्रिटिश सरकार के लिए काफि निष्ठावान थे, लेकिन बाद के समय में उन्हें 1857 की क्रांति के षड्यंत्र के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा फांसी पर लटका दिया गया था। वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने असम में चाय के बगान कि स्थापना की थी।
2). किआंग नंगबाह (यू कियांग नंगबाह)
भारत की स्वतंत्रता संग्राम में योगदान देने वाले किआंग नंगबाह का जन्म मेघालय में हुआ था। ब्रिटिश सरकार से खिलाफ इन्होंने अवाज उठाई जिसके चलते ब्रिटिश सरकार ने 30 दिसंबर 1862 में फांसी पर लटकाया गया।
3). ताजी मिडेरेन
ताजी मिडेरेन का जन्म असम में हुआ था। इन्होंने मिशमी नेतृत्व की शुरूआत की थी ताकि ब्रिटिश शासन के विस्तार को रोका जा सके। उनके इस अभियान की वजह से उन्हें अंग्रेजों ने गिरफ्तार किया और उन्हें 1917 में फांसी की सजा दी गई।
4). रानी गाइदिनल्यू
गाइदिनल्यू पैसे के नाम से जाने जाने वाली रानी गाइदिनल्यू का जन्म 26 जनवरी 1915 में मणिपुर में हुआ था। रानी गाइदिनल्यू को रानी की उपाधि नेहरू जी द्वारा दी गई थी। उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठाई थी। उन्होंने 13 साल की उम्र से अभियानों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था। वह 16 साल की थी जब उन्हें ब्रिटिश सेना द्वारा गिरफ्तार किया गया। भारत की आजादी के बाद भी वह अपने लोगों के हितो के लिए अग्रसर रहीं।
5). शूरवीर पसलथा
शूरवीर पसलथा का जन्म मिजोरम में हुआ था। वह मिजोरम के पहले स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने अपने क्षेत्र और लोगों को ब्रिटिश शासन से बचाने के लिए अपनी जान तक न्योछावर कर दी।
6). हेम बरुआ
हेम बरुआ को त्यागबीर के नाम से भी जाना जाता है। हेम बरुआ को त्यागबीर का नाम असम के लोगों के लिए किए उनके योगदान के लिए दिया गया। वह एक स्वतंत्रता सेनानी, समाजिक कार्यकर्ता और लेखक थें। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने के लिए अपनी पढ़ाई भी छोड़ दी।
7). भोगेश्वरी फुकानानी
भारतीय स्वतंत्रता सेनानी भोगेश्वरी फुकानानी का जन्म 1885 में असम में हुआ था। उन्होंने ब्रिटिश राज के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने मुख्य तौर पर भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया और इसी के साथ उन्होंने अहिंस मार्च में हिस्सा लिया।
8). चेंगजापाओ कुकी (डौंगेल)
चेंगजापाओ कुकी का जन्म मणिपुर में हुआ था। वह एक स्वतंत्रता सेनानी थें। जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता के दौरान अपना योगदान दिया था। वह इंडियन नेशनल कांग्रेस का हिस्सा थी। उन्होंने कुकी समुदाय का ब्रिटिश राज के खिलाफ नेतृत्व किया।
9). मैटमोर जैमोरो
मैटमोर जैमोरो का जन्म अरुणाचल प्रदेश में हुआ था। वह एक क्रांतिकारी थे जो ब्रिटिश शासन के पूर्णता खिलाफ थें। मैटमोर जैमोरो एक अदी योद्धा थे। जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठाई थी। उनके अभियानों की वजह से ब्रिटिश सरकार ने उन्हें गिरफ्तार किया और उम्र कैद की सजा सुनाई।
10). कनकलता बरुआ
कनकलता बरुआ का जन्म असम में 22 दिसंबर 1924 में हुआ था। उन्हें बीरबाला और शहीद के नाम से भी जाना जात है। कनकलता बरुआ एआईएसएफ की प्रमुख नेता थी। वे भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान राष्ट्रध्वज को लेके आगे बढ़ रही थीं। उन्हें रोकने के लिए ब्रिटिश सेना ने उन पर गोली चलाई। उन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी। वह केवल 17 वर्ष की थी जब वह शहीद हुई।
11). बीर टिकेंद्र जित सिंह
बीर टिकेंद्र जित सिंह का जन्म 29 दिसंबर 1856 में मणिपुर में हुआ था। वह मणिपुर के राजकुमा थें और आर्मी के कंमाडर भी थें। 1891 में एंग्लों-मणिपुरी युद्ध के दौरान अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ लिया और इसके बाद उन्हें सबके सामने फांसी की सजा दी।