Kasturba Gandhi Memorial Day: महात्मा गांधी की परछाई बन कर पत्नी कस्तुरबा गांधी ने हर कदम पर उनका साथ दिया। केवल इतना ही नहीं निःस्वार्थ भाव से कस्तुरबा गांधी ने अपने पति महात्मा गांधी के साथ स्वतंत्रता संग्राम के हर आंदोलन में हिस्सा लिया। एक सच्चे देश प्रेमी के रूप में उन्होंने देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी।
22 फरवरी 1944 में उनकी मृत्यू (Kasturba Gandhi's Death Anniversary) के बाद से प्रत्येक वर्ष इस दिन को कस्तूरबा गांधी स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाता है। आइए कस्तूरबा गांधी स्मृति दिवस के अवसर पर, हम उस महिला को श्रद्धांजलि अर्पित करें, जिनके जीवन और कार्यों ने इतिहास के पन्नों पर एक अमिट छाप छोड़ी। साथ ही इस लेख के माध्यम से जानते हैं कस्तूरबा गांधी कौन थी, स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका क्या रही आदि विस्तार से। इस लेख की मदद से छात्र कस्तूरबा गांधी पर निबंध एवं स्पीच (Kasturba Gandhi essay speech in hindi) भी तैयार कर सकते हैं।
13 वर्ष की आयु में महात्मा गांधी से विवाह
1869 को पोरबंदर में जन्मी कस्तूरबा गांधी को प्यार से 'बा' कहा जाता है। वे सत्य और अहिंसा के आदर्शों के प्रति अडिग एवं देश के लिए बलिदान और अटूट प्रतिबद्धता का प्रतीक हैं। कस्तूरबा गांधी का जन्म 11 अप्रैल, 1869 को गोकुलदास कपाड़िया और व्रजकुनवेरबा कपाड़िया की बेटी के रूप में हुआ था। वह एक भारतीय राजनीतिक कार्यकर्ता थीं। उन्होंने 1883 में मोहनदास गांधी से शादी की और उनसे बहुत प्रभावित हुईं।
कस्तूरबा की जीवन यात्रा उनके समय के रूढ़िवादी परिवेश में शुरू हुई। महज 13 साल की छोटी सी उम्र में, उनका विवाह मोहनदास करमचंद गांधी के साथ हुआ। औपचारिक शिक्षा के अभाव के बावजूद कस्तूरबा ज्ञान और अनुग्रह की मिसाल बन गईं। महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी की जोड़ी ने एक राष्ट्र के भाग्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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महात्मा गांधी की ताकत बन कर उभरीं कस्तूरबा गांधी
कस्तूरबा गांधी का जीवन (Kasturba Gandhi Biography) स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष की महाकाव्य कथा से जुड़ा हुआ है। जैसे ही महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई का नेतृत्व किया, कस्तूरबा उनकी ताकत बनकर उभरीं। पारंपरिक वैवाहिक रिश्ते की सीमाओं से परे, उनकी साझेदारी साझा मूल्यों और साझा संघर्षों के लिए एक प्रकाशस्तंभ बन गई।
सविनय अवज्ञा आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका
कस्तूरबा इतिहास की केवल साक्षी नहीं बल्कि सक्रिय भागीदार भी रहाीं। एक तरफ जहां उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, वहीं दूसरी ओर नमक मार्च जैसी महत्वपूर्ण घटनाओं के दौरान अपने पति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी रहीं। उनकी प्रतिबद्धता सार्वजनिक क्षेत्र से आगे तक फैली, उन्होंने सामाजिक मानदंडों की बाधाओं से मुक्त होकर महिलाओं के अधिकारों और सामाजिक सुधारों का समर्थन किया।
कस्तूरबा गांधी पहली बार 1904 में दक्षिण अफ्रीका में राजनीति से जुड़ीं, जब उन्होंने अपने पति और अन्य लोगों के साथ डरबन के पास फीनिक्स सेटलमेंट की स्थापना की। 1913 में उन्होंने दक्षिण अफ़्रीका में भारतीय अप्रवासियों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन में भाग लिया।
कस्तूरबा और गांधी ने जुलाई 1914 में दक्षिण अफ्रीका छोड़ दिया और भारत में रहने के लिए लौट आये। कस्तूरबा की पुरानी ब्रोंकाइटिस के बावजूद, उन्होंने पूरे भारत में नागरिक कार्यों और विरोध प्रदर्शनों में भाग लेना जारी रखा और जब उनके पति जेल में थे तो अक्सर उनकी जगह लेती थीं। उनके समय का बड़ा हिस्सा आश्रमों में सेवा करने के लिए समर्पित था। यहाँ, कस्तूरबा को "बा" या माँ के रूप में संदर्भित किया जाता था, क्योंकि उन्होंने भारत में आश्रमों में एक माँ के रूप में कार्य किया था।
सन् 1917 में, कस्तूरबा ने बिहार के चंपारण में महिलाओं के कल्याण पर काम किया, जहां गांधी किसानों के साथ काम कर रहे थे। 1922 में, खराब स्वास्थ्य के बावजूद उन्होंने बोरसाद, गुजरात में एक सत्याग्रह (अहिंसक प्रतिरोध) आंदोलन में भाग लिया। वह कई सविनय अवज्ञा अभियानों और मार्चों में भाग लेती रहीं। परिणामस्वरूप, उसे कई बार गिरफ्तार किया गया और जेल भेजा गया।
बलिदान और कठिनाइयों के रास्ते चली कस्तूरबा
कस्तूरबा जिस रास्ते पर चलीं वह बलिदान और कठिनाइयों का रास्ता था। उनका तपस्यापूर्ण जीवन अपनाना गांधीजी के सिद्धांतों को प्रतिबिंबित करता था, जिसमें सादगी और आत्मनिर्भरता के महत्व पर जोर दिया गया था। साथ मिलकर, उन्होंने गरीबी और कारावास की चुनौतियों का सामना किया और आज़ादी के लिए तरस रहे राष्ट्र के लिए आशा की किरण बनकर उभरे।
महिलाएं स्वतंत्रता की लड़ाई में समान भागीदार
कस्तूरबा गांधी की जीवन यात्रा स्वतंत्रता आंदोलन के संघर्षों से कहीं अधिक हैं। उन्होंने इस विचार का समर्थन किया कि महिलाएं स्वतंत्रता की लड़ाई में समान भागीदार हैं। इतना ही नहीं कस्तूरबा गांधी ने देश की नियति को आकार देने में उनकी सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित किया। उनका जीवन इस विश्वास का प्रमाण था कि सच्ची महानता उपाधियों या पदों में नहीं, बल्कि न्याय और करुणा की शांत, निरंतर खोज में निहित है। कस्तूरबा गांधी स्मृति दिवस मनाने के साथ ही, आइए हम उस महिला को याद करें जिनका जीवन त्याग, साहस और प्रेम का माधुर्य था। स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी हो या महिलाओं के लिए आवाज उठाना हो, बा की भूमिका आज भी इतिहास के गलियारों में गूंजती है। ये हमें याद दिलाती है कि उनका योगदान केवल एक सहायक व्यक्ति होने तक ही सीमित नहीं था, बल्कि उसका एक अभिन्न अंग था जिसने भारत की स्वतंत्रता की यात्रा की रचना की।