1999 में हुई कारगिल युद्ध के दौरान कई वीर जवानों ने भारत के नाम अपनी जान न्यौछावर की है। और ये वो योद्धा हैं जिन्होंने दुश्मनों को धुल चटा दी थी। 1999 में कारगिल में लगातार बढ़ती पाकिस्तानियों की गतिविधियों को देखते हुए भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय लॉन्च किया था। जिसमें कई जवानों को जम्मू और कश्मीर के लिए तुरंत रवाना होने के आदेश दिए गए। कारगिल युद्ध के दौरन भारतीय जमीन पर पाकिस्तान से वापस अपनी कब्जा लेने के लिए ऑपरेशन विजय शुरू किया गया और इसके तहत कई सैनिंकों ने टीम वर्क में काम कर के पाकिस्तान पर लगातार हमला कर सभी हिस्सों पर वापस भारत का कब्जा हासिल किया। 26 जुलाई को आधिकारिक तौर पर युद्ध समाप्त होने की घोषणा की। तभी से आज तक 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मानाया जाता है। इस दिवस पर कारगिल युद्ध में शहीद हुए सैनिकों को याद में किया जाता है और भारत में उनके योगदान के लिए देश उन्हें नमन करता है। इन सभी महानायकों में एक नाम है अनुज नायर का। अनुज नायर और कैप्टन बत्रा दोनों के कंधों पर प्वाइंट 4875 पर कब्जा करने का जिम्मा दिया गया था। इस अभियान पर ये दोनों नायक वीरगति को प्राप्त हुए। अनुज नायर 17 बटालियन जाट रेजीमेंट से थे और कारगिल में उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें भारत के दुसरे उच्च वीरता सम्मान महा वीर चक्र से सम्मानित किया गया। ये सम्मान उन्हें मरणोपरांत दिया गया था। आइए जाने अनुज नायर के जीवन के बारे में। उस नायक के बारे में जिसने विक्रम बत्रा के साथ प्वाइंट 4875 को वापस कब्जा लेने के लिए बराबर का योगदान दिया।
अनुज नायर का प्रारंभिक जीवन
अनुज नायर का जन्म 28 अगस्त 1975 में दिल्ली में हुआ था। उनके पिता एस के नायर दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में वजिटिंग प्रोफेसर थे और उनकी मां मीना नायर लाइब्रेरियन के दिल्ली के साउथ कैंपस में काम करती थी।
अनुज ने अपनी शुरूआती शिक्षा धौला कुआं नई दिल्ली के आर्मी पब्लिक स्कूल से प्राप्त की। वह पढाई में काफी अच्छे थे। इतनी ही नहीं अनुज पढ़ाई के साथ-साथ खेल में भी वह अच्छे थे। उन्हें वॉलीबॉल खेला करते थे और लॉन्ग डिस्टेंस रनिंग भी करते थे। आपने अक्सर ही सुना होगा की हर सैनिक बचपन से ही आर्मी में जानने का सपना देखता है। उसी तरह से अनुज में बचपन से भी देश भक्ति की भावना इस प्राकर की थी कि उन्होंने बचपन में ही ये तय कर लिया था की वह आर्मी में जाकर देश की सेवा करने चाहते हैं। और उन्होंने अपना ये सपना पूरा भी किया। अनुज के स्कूल के टीचर उन्हें बंडल ऑफ एनर्जी कहा करते थे।
अनुज के बार में उनके पिता ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया था कि वह अनुज को अक्सर बॉलीबॉल खेलने को मना किया करते थे। क्योंकी वह अपनी टी-शर्ट बर्बाद कर देते थे। लेकिन अनुज को वॉलीबॉल इतना पसंद है था कि वह शर्ट उतार के खेलते थे। अनुज वॉलीबॉल के बेस्ट पलेयर थे।
अपनी पढ़ाई पूरी कर इंडियन मिलिट्री एकेडमी ज्वाइन किया ताकि वह आर्मी में जाने का अपनी सपना पूरा कर सकें। 1997 में अनुज आईएमए से ग्रेजुएट हुए और उन्हें 17 बटालियन जाट रेजिमेंट में कमीशन किया गया।
मिलिट्री करियर
इंडियन मिलिट्री एकेडमी से ग्रेजुएट होने के बाद 17 बटालियन जाट रेजिमेंट में जुनियर ऑफिसर के पद पर उन्हें कारगिल जम्मू और कश्मीर में पोस्टिंग मिली।
फिर समय आया कारगिल युद्ध का जिसकी शुरूआत हुई 1999 में।
अनुज नायर का कारगिल युद्ध में योगदान
अनुज नायर की पोस्टिंग उस दौरान कारगिल में ही थी। 1999 में पाकिस्तानियों की लगातार भारत के कारगिल में गतिविधियां बढ़ने लगी थी। स्थिति के बिगड़ने की जानकारी मिलते ही भारत सरकार ने ऑपरेशन विजय लॉन्च किया ताकि जल्द से जल्द पाकिस्तानियों की भारत की सीमा से खदेड़ा जा सकें।
अनुज नायर जो उस समय 17 जाट रेजिमेंट के जुनियर कमांडर थे 5,00,000 अन्य भारतीय सैनिकों के साथ कारगिल युद्ध क्षेत्र की ओर प्रास्थान के लिए आगे बढ़े।
अनुज नायर सबसे बढ़ ऑपरेशन प्वाइंट 4875 पर भारत का वापस कब्जा हासिल करना था। प्वाइंट 4875 पर कब्जा करना उसकी स्ट्रैटेजिक लोकेशन की वजह से सबसे महत्वपूर्ण था। जिसपर कब्जा करने के लिए विक्रम बत्रा को भी भेजा गया था। टाइगर हिल पर वापस भारत का कब्जा पूरी तरह से कायम करने के लिए प्वाइंट 4875 पर भारत का कब्जा हासिल करना जरूरी था।
प्वाइंट 4875 पर चार्ली कंपनी पर कब्जे का जिम्मा था। इस अभियान पर चार्ली कंपनी के कमांड़र के घायल होने के कारण इस की कमांड विक्रम बत्रा और अनुज नायर के हाथ आई। इन्होंने टीम को दो हिस्सों में विभाजित किया और हमले की प्लैलिंग की।
प्वाइंट 4875 पाकिस्तानि घुसपैठियों के कई बंकर थे जिन्हें नष्ट करना अतिआवश्यक था। अनुज नायर की टीम ने अभियान के लिए आग बढ़ने लगे लेकिन लगातार पाकिस्तानि घुसपैठियों की तरफ से भारी गोलाबारी हो रही थी। जिसकी जिसके लिए अनुय नायर की टीम ने काउंटर अटैक किया। उनकी इस काउंटर अटैक ने पाकिस्तानियों को पीछे हटने पर मजबूर किया।
अपने इस अटैक के दौरान अनुज नायर ने 9 पाकिस्तानियों को मार गिराया और 3 मशीन गन बंकरों को भी नष्ट किया। अनुज नायर के टीम ने 4 में से 3 बंकरो को सफलतापूर्वक तबाह कर दिया लेकिन 4 बंकर को नष्ट करने के दौरान दुश्मनों की तरफ से दागे गए ग्रेनेड से अनुज नायर को टक्कर लगी। गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी उन्होंने अपनी बची हुई टीम के साथ हमला जारी रखा। अनुज नयार की टीम का कोई सदस्य इस अभियान में नहीं बच पाया और कैप्टन अनुज नायर भी वीरगती को प्राप्त हुए। लेकि दो दिन बाद ही प्वाइंट 4875 पर चार्ली कंपनी की विक्रम बत्रा के नेतृत्व वाली टीम ने भारत का वापस कब्जा हासिल किया।
कैप्टन अनुज नायर के प्वाइंट 4875 पर भारत के वापस कब्जे के अभूतपूर्व योगदान को भारत कभी नहीं भूला पाएगा। 24 साल की उम्र में कैप्टन अनुज नायर ने दुश्मनों के सामने अत्यधिक साहस और धैर्य का परिचय दिया जिसे भारत नमन करता है। उनके इस योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया।