पुरुषोत्तम दास टंडन को उनके समर्पण और लगन की वजह से गांधी जी राजर्षि कहते थे। टंडन केवल भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी भागीदारी से ही नहीं बल्कि कई अन्य कारणों से भी जाने जाते हैं। वह एक समर्पित राजनयिक, कुशल वक्ता, बेबाक पत्रकार, कवि, लेखक, समाज सुधारक और समाज सेवी भी थे। स्वतंत्रता संग्राम में टंडन के अकल्पनीय योगदान को देखते हुए उन्हें भारत के सर्वोच्चय नागरिक पुरस्कार भारत रत्तन से सम्मानित किया गया। भारत के स्वतंत्र होने के बाद सन् 1947 से टंडन राजनीति में पूर्ण रूप से सक्रिय हुए और देश कल्याण कार्य में जुट गए।
पुरुषोत्तम दास टंडन के जीवन से जुडे़ तथ्य
- टंडन भारत के लिए सिर्फ स्वतंत्रता ही नहीं चाहते थे बल्कि उसके लिए पूरी तरह से समर्पित भी थे। पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने कांग्रेस पार्टी को ज्वाइन की और भारत के कल्याण से जुड़े कार्य करने शुरू किए।
- 1906 में वकालत का अभ्यास शुरू करने के बाद उन्होंने इलाहाबाद में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करना शुरू किया।
- 1908 में वह जुनियर के तौर पर प्रमुख वकील तेज बहादुर सप्रू के साथ काम करने लगे और इसके साथ उन्होंने जलियांवाला बाग कांड का अध्ययन करना शुरू किया।
- 1920 में हुए असहयोग आंदोलन में पुरुषोत्तम दास टंडन ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था। 1921 में उन्होंने कानून का अभ्यास छोड़ अपना पूरा ध्यान राजनीति और स्वतंत्रता संग्राम पर केंद्रित कर दिया।
- साल 1930 में सत्याग्रह और असहयोग आंदोलन में अपनी भागदारी के कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
- 1934 में पुरुषोत्तम दास टंडन को बिहार में प्रांतिय किसान अध्यक्ष के तौर पर चुना गया। अध्यक्ष के तौर पर चुने जाने के बाद उन्होंने कई किसान आन्दोलन का नेतृत्व किया।
- 1946 में उन्हें भारतीय संविधान सभा के लिए चुना गया और इसी के साथ वह उत्तर प्रदेश विधानसभा में बतौर अध्यक्ष 13 साल (1947 से 1950) तक बने रहे।
- पुरुषोत्तम दास टंडन ने कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए 1948 में चुनाव लड़ा जिसमें उन्हें पट्टाभी सीतारमैया से हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 1950 में दो साल बाद उन्होंने आचार्य कृपलानी को मात देकर कांग्रेस के नागपुर सत्र का नेतृत्व करने का स्थान हासिल किया।
- पुरुषोत्तम दास टंडन ने 1930 में नो टैक्स अभियान की शुरुआत की थी, जिसकी सरहाना नेहरू जी ने की थी। पुरुषोत्तम दास टंडन कभी सत्ता के भुखे नहीं थे। वह सरदार वल्लभभाई पटेल को सच्चे नायक के तौर पर देखते थे।
- हिंदी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में अपनाने की वकालत की। उन्होंने देवनागरी लिपि पर जोर दिया और उर्दू लिपि के साथ अरबी और फारसी वाले शब्दों को अस्विकार करने की बात पर जोर देते हुए बगावत भी की।
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English summary
Purushottam Das Tandon is one of India's Freedom fighter. Who have studied law and was practicing but he decided to focus on politics and independence. He has been part of the constituency assembly. Purushottam Das Tandon life story in 10 points.