भारत आजादी का अमृत महोत्सव माना रहा है। इस अमृत महोत्सव पर भारत के लिए खुद को समर्पित करने वाले सेनानियों को कैसे याद न किया जाए। भारत इस साल 76वां स्वंतंत्रता दिवस केवल मना ही इसलिए रहा क्योंकि इन सभी सेनानियों ने देश की आजादी में अपना अतुलनिय योगदान दिया है। भारत के स्वतंत्रता सेनानियों में एक नाम पोट्टी श्रीरामुलु का भी हैं। पोट्टी श्रीरामुलु देश के एक महान स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी थे। इसी के साथ वह दलितों के विकास और अधिकार के लिए भी कार्य किया करते थे। श्रीरामुलु ने कई बार अपने समाज के लोगों के हक के लिए अनशन किया। उनकी मौत भी अनशन के दौरान कोमा में जाने की वजह से ही हुई थी। वह गांधी जी की अहिंसा की विचारधारा से काफि प्रभावित थे। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्होंने गांधी जी के साथ नजदीकी से काम किया था। इस आंदोलन के दौरान वह गांधी के साथ जेल भी गए थे। उनके उस योगदान के लिए गांधी जी ने एक बार कहा था कि "यदि मेरे पास श्रीरामुलु जैसे ग्यारह और अनुयायी हों, तो मैं एक वर्ष में ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त कर लूंगा।" आइए भारत में पोट्टी श्रीरामुलु के इस योगदान के बारे में और जाने।
पोट्टी श्रीरामुलु का प्रारंभिक जीवन
आंध्रप्रदेश के जनक के नाम से जाने जाने वाले पोट्टी श्रीरामुलु का जन्म 16 मार्च 1901 को मद्रास (चेन्नई) में हुआ था। श्रीरामुलु ने अनपी प्रारंभिक शिक्षा मद्रास के एक हाई स्कूल से की। स्कूली शिक्षा के बाद उन्होंने इंजीनियरिंग करने के लिए बॉम्बे में विक्टोरिया जुबली तकनीकी संस्थान में दाखिल लिया। श्रीरामुलु ने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद ग्रेट इंडियन पेनिन्सुलर रेलवे, बॉम्बे में नौकरी करनी शुरू की। वर्ष 1928 में श्रीरामुलु की पत्नी की बच्चे के जन्म के दौरान जान चली गई और उन्होंने एपनी पत्नी और नवजात बच्चे दोनों को खो दिया। बाद में वह महात्मा गांधी के विचारों से बहुत अधिक प्रभावित हुए। इसके दो साल बाद ही उन्होंने अपनी रेलवे की नौकरी से इस्तीफा दिया और गांधी के साबरमती आश्रम चले गए।
श्रीरामुलु के अनशन
श्रीरामुलु ने मार्च 1946 में दलितों के हक के लिए भी भूख हड़ताल की थी। नेल्लोर के श्री वेणुगोपाल स्वामी मंदिर के साथ सभी पवित्र स्थानों में श्रीरामुलु ने दलितों के लिये प्रवेश की मांग की। इसके मांग को पूरा करने के लिए उन्होंने 23 दिनों का पहला अमरण अनशन शुरू किया। 23 दिनों के इस अनशन के बाद वहां रहने वाले दलितों को मंदिर में प्रवेश किए जाने की अनुमति मिली।
पोट्टि श्रीरामुलु ने आंध्रप्रदेश नामक नव राज्य बनवाने के लिए 58 दिन अनशन किया। अनशन की शुरूआत 19 अक्टूबर 1952 में हुई। अक्टूबर में शुरू हुआ अनशन 58 दिनों तक चला। इतने लंबे समय के अनशन की वजह से वह कोमा में चले गए। कोमा में जाने के बाद उनकी मौत हो गई। श्रीरामुलु के निधन के करीब चार दिन बाद ही आंध्रप्रदेश मद्रास से अलग होकर एक अलग राज्य बना। तभी से इन्हें आंध्रप्रदेश के जनक के रूप जाना गया। इस अनशन के दौरान 15 दिसंबर 1952 में उनकी मृत्यु हो गई।
स्वतंत्रता आंदोलन
गांधी के विचारों से प्रभावित होने के बाद वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा बने। इसके बाद वर्ष 1930 के नमक सत्याग्रह की शुरूआत हुई और श्रीरामुलु भी इस सत्याग्रह में शामिल हुए।
वर्ष 1941 और 1942 के बीच उन्होंने शुरू हुए व्यक्तिगत सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन में भी उन्होंने हिस्सा लिया। इस दौरान उन्हें तीन बार जेल भी हुई। पहली बार उन्हे जेल नगक सत्याग्रह के लिए हुई थी। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान तो उन्हें गांधी जी के साथ जेल हुई।
1943 से 1944 में श्रीरामुलु ने नेल्लोर जिले में रह कर चरखा कपड़ा कताई को अपनाने के लिए वहीं काम करना शुरू किया। वह जाति और धर्म में किसी भी प्रकार का भेद नहीं किया करते थे और सभी के घरों के द्वारा प्रदान किए हुए भोजन को प्राप्त करने के लिए अधिक जाने जाते थे।
महात्मा गांधी के वचन
देश के लिए श्रीरामुलु के समर्पण, योगदान और उपवास को देखते हुए महात्मा गांधी उनकी बारे में बात करत हुए कहा था कि "यदि मेरे पास श्रीरामुलु जैसे ग्यारह और अनुयायी हों, तो मैं एक वर्ष में ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त कर लूंगा।"