गोगिनेनी रंगा नायकुलु जिन्हें एन.जी रंगा के नाम से जाना जाता है एक शिक्षक, इकोनॉमिस्ट, किसान नेता, स्वतंत्रता सेनानी और लेखक भी थे। उन्होंने अपनी पत्नी के साथ भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया था। रंगा भारत ने स्वतंत्रता में अपनी भागीदारी के साथ किसानों के कल्याण के लिए भी काम किए थे । जिससे वह एक मजबूत किसान नेता के रूप में उभरे। उन्होंने किसानो में राजनीति को लेकर जागरूकता पैदा करने के लिए अपने पैतृक स्थान पर आंध्र किसान स्कूल की स्थापना भी की। इस तरह से उन्होंने किसानों के लिए कल्याण में अपना योगदान दिया।
भारत की स्वतंत्रता के बाद उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत 1950 से की और प्रजा पार्टी और लोक पार्टी की स्थापना की। उन्हें नेहरू के मंत्रीमंडल में शामिल होने का भी मौका मिला जिसके लिए उन्होंने साफ इंकार कर दिया। वह नेहरू की कई नीतियों के खिलाफ थे और दोनों के बीच कुछ खास अच्छे संबंध नहीं थे। रंगा को लेखन का भी काफी शौक था उन्होंने अपने जीवन काल में लगभग 65 किताबे लिखी। उसमें से एक "बापू आशिर्वाद" है जो गांधी के साथ हुए विचा विर्मश पर लिखी गई है। आइए उनके जीवन के बारे में विस्तार से जाने।
गोगिनेनी रंगा नायकुलु
एन.जी रंगा का पूरा नाम गोगिनेनी रंगा नायकुलु है। इनका जन्म 7 नवंबर 1900 को आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने क्षेत्र में स्कूल से ली। स्कूली शिक्षा के बाद उन्होंने आंध्र क्रिश्चियन कॉलेज गुंटूर से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। आगे की पढ़ाई के लिए वह इंग्लैंड के ऑक्सफोर्ड विशवविद्यालय गए। जहां से उन्होंने बीलिट में इकोनॉमिक्स की पढ़ाई की। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वह भारत वापस आई और पचैयाप्रा कॉलेज, मद्रास में इकोनॉमिक्स के बतौर प्रोफेसर के रूप में सर्वाना देने लगी.
अपनी ऑक्सफर्ड की पढ़ाई के दौरान वह वह एचजी वेल्स, सिडनी वेब, बर्ट्रेंड रसेल और जॉन स्टुअर्ट मिल के कार्यों से बहुत प्रभावित थे। यूरोप में समाजवाद को आकर्षित करने के लिए उन्होंने यूएसएसआर की प्रगती ने मार्क्सवादी में बदल दिया।
किसान नेता रंगा
रंगा की मुलाकात गांधी जी से मद्रास में हुई। वह गांधी जी से बहुत प्रभावित हुए और 1929 में चले सविनय अवज्ञा आंदोलन का हिस्सा बने। इसी के साथ उन्होंने 1933 में रैयत आंदोलन का भी नेतृत्व किया। इस आंदोलन में वेंकटगिरी में जमींदारी उत्पीड़न के खिलाफ किसानों को अपना समर्थन दिया। इस किसान आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए कई कांग्रेस नेताओं के विरोध के बावजुद भी उन्होंने गांधी जो को आंदोलन के लिए राजी किया। रंगा द्वारा चलाए गए इस किसान आंदोलन ने गति पकड़नी शुरू की और धीरे धीरे आंदोलन पूरे भारत में फैल गया। उन्होंने किसानों को राजनीतिक रूप से जागरूक करने के लिए जंगा ने अपने पैतृक गांव में साल 1934 में आंध्र किसान स्कूल की स्थापना की।
1936 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस लखनऊ अधिवेशन के दौरान इस क्रांतिकारी घटना को देखते हुए अखिल भारतीय किसान सभा का गठन हुआ। जिसका महासचिव रंगा को बनाया गया। इसी वर्ष जारी किसान घोषणा पत्र से जम्मींदारी प्रथा और ग्रामीण ऋणों को समाप्त करने की मांग की गई थी ।
इन घटनाओं और लगातार किसानों के लिए अपनी अवाज उठाने के कारण वह एक किसान नेता के रूप में उभरे।
भारत की स्वतंत्रता में योगदान
1940 में रंगा ने अपनी पत्नी भारती देवी के साथ और संगठित किसानों के साथ सत्याग्रह और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया। इसी के साथ उन्होंने किसानों को किसानों को राष्ट्रिय मुक्ति आंदोलन में जोड़ने में एक निर्णायक भूमिका भी निभाई। 946 में उन्हें संविधान सभा के सदस्य के रूप में चुना गया और वह भारत के अनंतिम संसद के सदस्य बने।
राजनीतिक करियर
भारत के आजद होने के बाद रंगा का पॉलिटिकर सफर शुरू हुआ। 1951 में रंगा आंध्र प्रदेश कांग्रेक कमेटी के अध्यक्ष के चुनाव में खड़े हुए लेकिन नीलम संजीव रेड्डी के सामने नहीं जीत पाए। विचारों के मतभेद के कारण रंगा ने कांग्रेस पार्टी को छोड़ने का फैसला लिया और हैदराबाद राज्य प्रजा पार्टी का गठन किया। उसके बाद रंगा के नेतृत्व में इस पार्टी को किसानों के लिए कृषक पार्टी में विभाजित किया गया।
कृषक लोक पार्टी ने 1951 में लोकसभा का चुनाव लड़ा और एक सीट अपने नाम की। इसके बाद 1952 में विधान सभा के चुनाव में इस पार्टी ने 15 सीट हासिल की। 1955 में आंध्र विधान सभा चुनाव में कृषक लोक पार्टी, कांग्रेस और प्रजा पार्टी ने आपस में गठबंधन किया और चुनाव में कृषक लोक पार्टी ने 22 सीटें अपने नाम की। इस चुनाव के बाद नेहरू के अनुरोध पर कृषक लोक पार्टी का विलय कांग्रेस पार्टी के साथ किया गया।
नेहरू के साथ रंगा के संबंध
रंगा और नेहरू के संबंध कुछ खास अच्छे नहीं थे। रंगा ने कई स्थानों पर नेहरू की नीतियों का विरोध किया था। रंगा ने पंचवर्षीय योजना और साथ में योजना आयोग के समाजवादी तंत्र का विरोध किया। इतना ही नहीं उन्होंने नेहरू के मंत्रिमंडल में शामिल होने से भी माना कर दिया। नेहरू ने सहकारी खेती की वकालत की तब रंगा ने राज्य संपत्ति अधिकारों के उन्मूलन का विरोध किया और विरोध को दर्शाने के लिए मछलीपट्टनम में लाखों किसानों एक साथ किया।
तेजी से बढ़ते समाजवादी भारत में संपत्ति के अधिकारों के खतरें ने कांग्रेस के सभी विरोधी नेताओं को एक जुट किया और इन सभी ने मिलकर स्वतंत्र पार्टी बनाई। इस पार्टी के सबसे पहला अध्यक्ष रंगा को बनाया गया।