के.ई. मैमन भारत के उन स्वतंत्रता सेनानियों में से एक हैं जिनका नाम गुमनामी का शिकार हो गया है। इन्होंने कई समस्याओं का सामना करने के बाद भी खुद को देश के लिए समर्पित कर दिया। देश के स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने के कारण के.ई मैमन को कई शिक्षण संस्थानों से भी निकाला गया था, इसके बाबजूद भी इन्होंने स्वतंत्रा के लिए अपनी लड़ाई जारी रखी. इन्होंने अपने उद्देश्य के आगे कभी किसी चीज को नहीं आने दिया। अपने युवा दिनों में उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया। अन्य सभी स्वतंत्रता सेनानियों की तरह ही मैमन भी गांधी झूठ की विचारधाराओं से प्रभावित थे। मैमन एक स्वतंत्रता सेनानी के साथ-साथ एक सोशल वर्कर भी थे।
के.ई मैमन
के.ई मैमन का जन्म 31 जुलाई 1921 को कंडाथिल परिवार में तिरुवनंतपुरम में हुआ था। उनके पिता का नाम के.सी ईपेन था और वह नेशनल क्विलोन बैंक में मैनेजर के पद पर थे। उनका घर सचिवालय के सामने था। सचिवालय के सामने घर होने के वजह से मममेन अक्सर ही स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा दिए गए भाषणों को सुना करते थे। मैमन गांधी के सच्चे अनुयायी थे कि उन्होंने एक तपस्वी जीवन व्यतीत करने का फैसला लिया और वह पूरी उम्र अविवाहिक रहे।
भारत में उनका योगदान
के.ई मैमन ने कॉलेज ऑफ फाइन आर्ट्स त्रिवेंद्रम में इंटरमीडिएट के छात्र थे। इसी दौरान वह त्रावणकोर छात्र संघ के अध्यक्ष के रूप में चुने गए। इसी समय के दौरान थिरुनक्कारा मे आयोजित जनसभा में उन्होंने छात्रों को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने का अनुरोध किया। इस अनुरोध के लिए उन्हें जेल की सजा हुई। सी. केसवन द्वारा दिए कोझेनचेरी भाषण ने मैमन को सामाजिक कार्य करने के लिए प्रेरित किया।
त्रावणकोर के तत्कालीन दिवान सी.पी रामास्वामी अय्यर ने नेशनल क्विलोन बैंक को बंद कर दिया जिसमें मैमन के पिता कार्य किया करते थे। मैमन के पिता, के.सी. मैमन के भाई यानी मैमन के चाचा, मप्पिल्लई को गिरफ्तार कर लिया गया जहां जेल में उनकी मृत्यु हो गई।
इस घटना के बाद एक बैठक के दौरान मैमन द्वारा दीवान की आलोचना करने के लिए उन्हें कॉलेज से निष्काषित किया गया। यहां से निकाले जाने के बाद उन्होंने महाराजा कॉलेज, एर्नाकुलम में प्रवेश लेने का प्रयत्न किया लेकिन असफल रहे.
इसके बाद उन्हें अपना इंटरमीडिएट पूरा करने का मौका सेंट थॉमस कॉलेज, त्रिशूर से मिला। इंटरमीडिएट के पश्चात 1940 में बैचलर की डिग्री के लिए उन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में प्रवेश लिया। लेकिन भारत छोड़ो आंदोलनमें भागीदारी के कारण उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया। लेकिन एक बात ये थी की कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. एजे बोयड ने मैमन से कहा कि मै तुम्हारी बाहदुरी की और देश भक्ति की इज्जत करता हूं लेकिन मेरे पास तुम्हें निकाले के अलावा और कोई विकल्प नहीं है।
भारत छोड़ो आंदोलन के समय से ही गांधी जी स्वतंत्रता संग्राम में युवाओं से शामिल होने का आह्वान कर रहे थे। इस देख मैमन प्रेरित हुए। इस प्रेरणा के बाद उन्होंने तिरुवल्ला और कोट्टायम के लोगों के बीच रह कर काम करना शुरू किया।
1952 में त्रावणकोर-कोचीन के विधान सभा चुनाव में नई बनी प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में खड़े हुए। और इस चुनाव में वह 500 मतों के साथ दूसरे स्थान पर रहे।
अपने योगदान के लिए उन्हें रामाश्रमम पुरस्कार, लोही विचारवेदी पुरस्कार और टीकेवी फाउंडेशन पुरस्कार सहित कई पुरस्कार मिले।
मैमन ने केरला राज्य में शराब विरोधी अभियानों में भी अहम भूमिका निभाई। 26 जुलाई 2017 में 96 साल की उम्र में उन्होंने आखिरी सांस ली।