अरुणा आसफ अली एक शिक्षक और राजनीतिक कार्यकर्ता थीं। उन्होंने भारतीय आंदोलनों में अपना बहुत बड़ा योगदान दिया है। वह एक स्वतंत्रता सेनानी थीं। वह स्वतंत्राता संग्राम में बहुत सक्रिय रूप से जुड़ी हुई थीं। मुख्य तौर पर अरुणा आसफ अली को भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान गोवालिया टैंक मैदान बॉम्बे में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए याद किया जाता है। भारत के स्वतंत्र होने के बाद अरुणा ने राजनीति में सक्रिया रूप से भूमिका निभाई और दिल्ली की पहली मेयर बनी। अरुणा का जन्म 16 जुलाई 1909 कालका हरियाणा में हुआ था। उन्होंने भारत की आजादी में बहुत योगदान दिया था। अरुणा आसाफ अली के नाम पर भारत में कई चीजे बनाई गई है। अरुणा आसफ ने अपने माता-पिता के खिलाफ जाकर आसफ अली से शादी की जो की उनसे उम्र में भी बढ़ें थें। उन्होंने नारायणन के साथ मिलकर एक पत्रिका की शुरूआत की।
हर साल भारत में स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को मनाया जाता है। हर साल भारत स्वतंत्रा दिवस मानाते हुए उन सभी शूरवीरों को याद करता है। उसी तरह इस साल भी हम सभी भारत के उन शूरवीरों को याद कर रहे है जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए योगदान दिया है। आपातकाल के बाद भी कई आपत्तियों का सामना करते हुए भी वह इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के काफी करीब रहीं। अरुणा आसफ अली ने 29 जुलाई 1996 को 87 वर्ष की आयु में आखिरी सांस ली।
अरुणा आसफ अली का प्रारंभिक जीवन
अरुणा आसफ अली का जन्म 16 जुलाई 1909 कालका हरियाणा ब्रिटिश इंडिया में बंगाली ब्राहमिण परिवार में हुआ। उनके पिता का उपेंद्रनाथ गुगाली पूर्वी बंगाल के बरीसाल जिले से थे जो की आज की तिथि में बांगलादेश में स्थित है। उनके पिता एक रेस्टोरेंट के मालिक थे। उनकी मां का नाम अंबालिका देवी था। जो प्रसिद्ध ब्रोह्मो नेता त्रैलोक्यनाथ सान्याल की बेटी थी। जिन्होंने कई भजन भी लिखे थे। उनके चाचा धीरेंद्रनाथ गांगुली फिल्म निर्देशकों में से एक थे। उनके अन्य चाचा एक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर थे। अरुणा के दूसरें चाचा नागेंद्रनाथ जो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर थे उनकी शादी नोबल पुस्करा विजेता रवींद्रनाथ टैगोर की बेटी मीरा देवी से हुई थी।
अरुणा की शिक्षा की बात करें तो उनकी प्रारंभिक शिक्षा की सेक्रेज हार्ट कॉन्वेंट और नैनीताल के ऑल सेंट्स कॉलेज से हुई। बीए की डिग्री प्राप्त करने के बाद उन्होंने कलकत्ता के गोखले मेमोरियल स्कूल में एक शिक्षिका के तौर पर काम किया था। उसके बाद उनकी मुलाकात आसफ अली से हुई। जो इलाहाबाद में कांग्रेस पार्टी के नेता थे। अरुणा ने आसफ अली से शादी करने की इच्छा जताई। धर्म और उम्र में 20 साल का फर्क होने की वजह से उनके माता-पिता इस शादी के खिलाफ थे। लेकिन फिर भी माता-पिता के खिलाफ जाके उन्होंने आसाफ अली से शादी की है। उन दोनों ने 1928 में शादी की।
भारत छोड़ों आन्दोलन के दौरान
साल 1942 में 8 अगस्त को आल इंडिया कांग्रस कमेटी ने भारत छोड़ो आन्दोलन का प्रस्ताव बॉम्बे अधिवेशन में पारित किया। ब्रीटिश सरकार ने कांग्रेस के सदस्यों को गिरफ्तार करके आंदोलन को सफल होने से रोकाने का प्रयत्न करने का प्रयास किया। अरुणा आसफ अली 9 अगस्त को गोवालिया टैंक मैदान में काग्रेंस का झंडा फहराया। उनके इस कदम ने इस आन्दोलन की शुरूआत को मार्क किया। 1942 के आन्दोलन के दौरान उनकी बाहदुरी के लिए उन्हें नायिका का दरजा दिया गया। इस आन्दोलनों के बाद स्वतंत्रता आन्दोलन में उन्हें ग्रैंड ओल्ड लेडी के नाम से संबोधित किया गया। उस दौरन प्रत्यक्ष नेतृत्व की कमी के बावजुद भी युवाओं ने भारत को स्वतंत्र बनाने के लिए द्दढ़ निश्चय किया। उनके द्दढ़ निश्चय ने पूरे देश में विरोध प्रदर्शन किए। इन घटनाओं को देखते हुए उनके नाम पर गिरफ्तारी का वारंट निकाला गया। लेकिन उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया। क्योंकी वह अंडरग्राउंड हो गई थी।
भूमिगत आंदोलन के समय
1942 में भूमिगत आंदोलन चलाया गया। उसी दौरान उन्होंने राम मनोहर लोहिया के साथ कांग्रेस पार्टी की मासिक पत्रिका जिसका नाम "इंकबाल" था का संपादन किया। इस पत्रिका के एक अंक (एडिशन) जो 1944 में आया था उसमें उन्होंने देश के युवाओं से हिंसा और अहिंसा की बातों को भूला कर क्रांति में शामिल होने को लेकर गुजारिश की।
अरुणा आसफ अली और जयप्रकाश नारायण जैसे नेताओं को गांधी के राजनीतिक बच्चे, लेकिन कार्ल मार्क्स के हालिया छात्र के तौर पर देखा जाता था। इन स्थिति और आन्दोलनों से परेशान होकर ब्रीटिश सरकार ने उन्हें पकड़ने के लिए 5000 रुपये का इनाम तक रखा गया था। उसके कुछ समय बाद ही अरुणा बीमार पड़ गई। जिसकी वजह से उन्हें कोरल बाद के अस्पातल में भर्ती किया गया। उनके बीमार होने की खबर को सुनकर महात्मा गांधी ने अपने हाथों से लिखा हुआ खत भेजा। महात्मा गांधी जी एक द्वारा भेजे हुए इस खत को उन्होंने अपने ड्राइंग रूम में संजो के रखा। लेकिन ऐसा नहीं है कि उन्हें गांधी जी की आलोचना का सामना करना पड़ा है। इंडियन नेवी विद्रोह के समर्थन के लिए गांधी जी से अरुणा की आलोचना की थी।
स्वतंत्रता के बाद रोल
अरुणा आसफ अली कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्दस्या थी। समाजवाद पर कांग्रेस पार्टी की प्रगति से निराश होने की वजह से उन्होंने 1948 में सोशलिस्ट पार्टी में शामिल होने का फैसाला लिया और शामिल भी हुई। ये बात अलग है कि उन्होंने कुछ समय बाद इस पार्टी को भी छोड़ा दिया। उसके बाद अरुणा आसफ अली रजनी पाल्मे दत्त के साथ मास्को गए थें।
वर्ष 1950 के शुरूआती समय में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हुईं। 1953 अरुणा के पति आसफ अली की मृत्यु हो गई। 1954 में उन्होंने भाकपा की महिला शाखा और भारतीय राष्ट्रीय संघ बनाने के लिए स्टालिन को त्यागने के बाद 1956 में पार्टी छोड़ दी।
वर्ष 1958 में अरुणा दिल्ली की पहली मेयर चुनी गईं। इसी के साथ वह दिल्ली में सामाजिक कल्याण और विकास के लिए कृष्णा मेनन, विमला कपूर, गुरु राधा किशन, प्रेमसागर गुप्ता, रजनी पाल्मे जोती, सरला शर्मा और सुभद्रा जोशी जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं और धर्मनिरपेक्षतावादियों के साथ निकटता से जुड़ी हुई थीं।
पब्लिशिंग हाउस की शुरूआत
अरुणा आसफ अली और नारायणन ने आगे चल कर एक पब्लिशिंग हाउस शुरू किया। जिस वर्ष उन्होंने पब्लिशिंग हाउस खोला उसी वर्ष एक दैनिक समाचार पत्र, पैट्रियट और एक साप्ताहिक, लिंक प्रकाशित किया गया।
इसकी के साथ जवाहरलाल नेहरू, कृष्ण मेनन और बीजू पटनायक जैसे नेताओं के संरक्षण के कारण उनका प्रकाशन प्रतिष्ठित हुआ। लेकिन लगातार होती इंटरनल राजनीति के कारण पब्लिशिंग हाउस को छोड़ कर बाहर जाने का फैसला लिया।
1975 के आपातकाल के दौरान कई आपत्तियों के बावजूद भी वह इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के करीब रही। इतने लंबे समय के अपने कार्यकाल के बाद अरुणा आसफ अली ने 29 जुलाई 1996 को 87 वर्ष की आयु में आखिरी सांस ली।
ग्रैंड ओल्ड लेडी के नाम से प्रसिद्ध हुई अरुणा आसफ अली ने भारत की आजादी में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए अपना पूरा जीवन भारत के लिए और मानवीय कार्यों के लिए समर्पित किया।