15 अगस्त 1947 की वो रात, रजवाड़ों-रियासतों के नवाबों की उड़ गई थीं नीद, लेकिन...

मार्च 1947 के वे दिन! मौसम सर्दी-गर्मी की दहलीज पर खड़ा था, पर माहौल खून और पसीने से तर था। देश में दंगे भड़क रहे थे। नए वायसराय आने को थे। मुस्लिम लीग व कांग्रेस के नेता अलग-अलग बैठकें करके रणनीतियां बना रहे थे।

Independence Day 2022: मार्च 1947 के वे दिन! मौसम सर्दी-गर्मी की दहलीज पर खड़ा था, पर माहौल खून और पसीने से तर था। देश में दंगे भड़क रहे थे। नए वायसराय आने को थे। मुस्लिम लीग व कांग्रेस के नेता अलग-अलग बैठकें करके रणनीतियां बना रहे थे। तब कैसी उथल-पुथल मची थी, इसे 1947 के हिन्दुस्तान की जुबानी बता रहे हैं। मार्च आते आते राजे-रजवाड़े-निजामों-नवाबों के चेहरों पर हवाइयां उड़ने लगी थीं, लेकिन उनकी प्रजा के चेहरे पर मुक्ति का उल्लास छलक रहा था।

15 अगस्त 1947 की वो रात, रजवाड़ों-रियासतों के नवाबों की उड़ गई थीं नीद, लेकिन...

अंग्रेज अफसरों से अपनी बेहतरी की आस लगाए बैठे इनमें से कई रजवाड़ों और रियासतों के अलम्बरदारों ने बंटवारे की जद्दोजहद से खुद को अलग कर रखा था। हैदराबाद के निजाम इस जुगत में लगे थे कि किसी भी तरह उनका सिंहासन बचा रहे। हालांकि, दिल्ली, पटना, लखनऊ और कलकत्ता के साथ-साथ मेरे कई शहरों-गांवों में अजीब सी बेचैनी और छटपटाहट बढ़ती जा रही थी। बंगाल के बाद मार्च की शुरुआत में ही बिहार दंगों की आग में जल उठा था और गांधीजी वहां पहुंच गए थे। तारीख थी-5 मार्च 1947, बापू कांग्रेसी नेताओं के रवैए से नाराज थे।

वे चाहते थे कि कांग्रेसी जगह-जगह हो रहे दंगों से खुद को अलग करें। इधर, 20 मार्च 1947 को जयप्रकाश नारायण को साथ लेकर गांधीजी बिहार पुलिस की हड़ताल खत्म करा रहे थे, और उधर इसी वक्त नार्थोल्ट एयरपोर्ट से माउंटबेटेन अपने परिवार के साथ भारत के लिए उड़ान भर रहे थे।

22 मार्च की दोपहर, दिल्ली के पालम हवाई अड्डे पर माउंटबेटेन, उनकी पत्नी एडविना और 17 साल की बेटी पामेला का स्वागत जब जवाहर लाल नेहरू और लियाकत अली खान कर रहे थे, तब होने वाले वायसराय ने शाही अंदाज दिखाने में कोई कोताही नहीं बरती।

24 मार्च का वो दिन मैं कभी नहीं भूल सकता, जब दरबार हाल में देश के अंतिम ब्रिटिश वायसराय माउंटबेटेन को शपथ दिलाई जा रही थी। मेरी रगों में दौड़ते खून की रफ्तार उस वक्त चार गुनी हो गई, जब माउंटबेटेन ने कहा, ब्रिटिश सरकार जून 1948 तक सत्ता से हट जाएगी और भारत आजाद हो जाएगा।

शपथ ग्रहण के तुरंत बाद वायसराय हाउस में नेहरू और माउंटबेटेन के बीच 3 घंटे बैठक चली। बाद में माउंटबेटेन एक-एक करके राष्ट्रीय आंदोलन के दूसरे नेताओं से भी मिले। मगर 31 मार्च 1947 को गांधीजी और माउंटबेटेन की मुलाकात सबसे खास रही। इस मुलाकात में गांधीजी का कहना था कि देश का बंटवारा नहीं होना चाहिए। ठीक तीन दिन बाद माउंटबेटेन ने जिन्ना से भी बातचीत की। जिन्ना ने साफ-साफ कह दिया कि वे हर हाल में बंटवारा चाहते हैं।

For Quick Alerts
ALLOW NOTIFICATIONS  
For Daily Alerts

English summary
Independence Day 2022: On those days of March 1947, the weather stood on the threshold of winter-summer, but the atmosphere was full of blood and sweat. Riots were raging in the country. The new Viceroy was about to arrive. The leaders of the Muslim League and the Congress were framing strategies by holding separate meetings. By the time of March 1947, the winds had started blowing on the faces of the princes-princes-Nizams-Nawabs, but the joy of liberation was spreading on the faces of their subjects.
--Or--
Select a Field of Study
Select a Course
Select UPSC Exam
Select IBPS Exam
Select Entrance Exam
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
Gender
Select your Gender
  • Male
  • Female
  • Others
Age
Select your Age Range
  • Under 18
  • 18 to 25
  • 26 to 35
  • 36 to 45
  • 45 to 55
  • 55+