हिंदी दिवस विशेष: हिंदी की विकास यात्रा पर आलेख

भाषा–साहित्य की हजार वर्षों की गौरवशाली परंपरा रही है। इन हजार वर्षों में लगभग डेढ़–दो सौ वर्ष का कालखंड आज की आधुनिक हिन्दी का है। इस अवधि में भी हिन्दी का साहित्यिक लेखन समृद्धि के नए सोपानों को गढ़ते हुए आगे बढ़ा है।

भाषा-साहित्य की हजार वर्षों की गौरवशाली परंपरा रही है। इन हजार वर्षों में लगभग डेढ़-दो सौ वर्ष का कालखंड आज की आधुनिक हिन्दी का है। इस अवधि में भी हिन्दी का साहित्यिक लेखन समृद्धि के नए सोपानों को गढ़ते हुए आगे बढ़ा है‚ लेकिन हिन्दी की इस साहित्यिक परंपरा के गौरव-बोध में अक्सर इस बात को अनदेखा कर दिया जाता है कि हिन्दी का एक प्रयोजनमूलक स्वरूप भी है‚ जो इसके साहित्यिक स्वरूप की समृद्धि के बरक्स कहीं नहीं ठहरता। यह ठीक है कि परतंत्रता के दौर में हिन्दी के शासन-प्रशासन की भाषा न होने के कारण इसका प्रयोजनमूलक स्वरूप विकसित नहीं हो पाया‚ लेकिन आज जब देश स्वतंत्रता के पचहत्तर वर्ष पूरे कर चुका है तथा हिन्दी को देश की राजभाषा बने भी सात दशक से अधिक हो चुके हैं‚ तब भी यदि इसका प्रयोजनमूलक स्वरूप समृद्ध स्थिति में नहीं आ सका है‚ तो क्या यह हिन्दी जगत के लिए चिंता की बात नहीं होनी चाहिएॽ स्मरण रहे कि किसी भी भाषा की समृद्धि का निर्धारण केवल उसके साहित्यिक लेखन के आधार पर नहीं होता अपितु यह भी देखा जाता है कि संबंधित भाषा का प्रयोजनमूलक स्वरूप कितना समृद्ध है।

हिंदी दिवस विशेष: हिंदी की विकास यात्रा पर आलेख

प्रत्येक भाषा का साहित्यिक लेखन जहां जीवन के सौंदर्यपरक पक्षों के प्रकटीकरण से पाठकों में आनंद का सृजन करता है‚ वहीं प्रयोजनमूलक स्वरूप जीवन की आवश्यकताओं के प्रति भाषा को सज्ज करते हुए आकार लेता है। अतः इन दोनों का बराबर महkव है। 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा द्वारा देवनागरी लिपि के साथ हिन्दी को राजभाषा घोषित किया गया था। यहां से एक प्रकार से‚ हिन्दी के प्रयोजनमूलक प्रयोग का आरंभ माना जा सकता है। यद्यपि देश में प्रयोजनमूलक हिन्दी की संकल्पना के प्रवर्तक‚ हिन्दी को राजभाषा के रूप में मान्यता दिलाने में महkवपूर्ण भूमिका निभाने वाले प्रसिद्ध भाषाविद डॉ मोटूरि सत्यनारायण हैं। आजादी के बाद सत्तर का दशक बीतने तक भारत के विश्वविद्यालयों के हिन्दी विभागों के अंतर्गत स्नातकोत्तर स्तर पर मुख्य रूप से हिन्दी साहित्य एवं आठ प्रश्नपत्रों में से केवल एक प्रश्नपत्र में भाषाविज्ञान के सामान्य सिद्धांतों तथा हिन्दी भाषा के ऐतिहासिक विकास की पढ़ाई हो रही थी।

1972 में मोटूरी सत्यनारायण जब दूसरी बार केंद्रीय हिन्दी शिक्षण मंडल के अध्यक्ष बने तो उन्होंनेसंस्थान के निदेशक तथा अध्यापकों के समक्ष प्रयोजनमूलक हिन्दी के अध्ययन-अध्यापन का विषय रखा। उनकी चिंता यह थी कि हिन्दी कहीं केवल साहित्य की भाषा बनकर न रह जाए। इसलिए उन्होंने साहित्य एवं प्रशासन के क्षेत्रों के अलावा अन्य विभिन्न क्षेत्रों के प्रयोजनों की पूÌत के लिए जिन भाषा रूपों का प्रयोग एवं व्यवहार होता है‚ उनके अध्ययन और अध्यापन की आवश्यकता पर बल दिया। गौर करें तो संघ की राजभाषा के रूप में मान्यता मिलने के बाद बीते सात दशकों में हिन्दी जीवन के कुछ क्षेत्रों में अवश्य ही प्रयोजन-सिद्धि का माध्यम बनी है‚ लेकिन इसके साथ ही यह भी सच है कि जीवन के कई क्षेत्र अब भी पूरी तरह से इसकी पहुंच में नजर नहीं आते।

आज सरकारी कामकाज में हिन्दी प्रयुक्त हो रही है‚ लेकिन साथ में अंग्रेजी भी बनी हुई है। 1960 में गठित वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग द्वारा हिन्दी का पारिभाषिक शब्दकोष तैयार किया गया है। विभिन्न प्रयोजनमूलक विषयों से संबंधित हिन्दी के पारिभाषिक शब्द उपलब्ध हैं। जनसंचार एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में हिन्दी ने अवश्य ही अपना एक बड़ा मुकाम बनाया है। मनोरंजन जगत‚ यथा टीवी और सिनेमा के क्षेत्र में हिन्दी का बड़ा बाजार खड़ा हुआ है। यह हिन्दी के प्रयोजनमूलक स्वरूप की उपलब्धियां हैं‚ लेकिन हिन्दी के प्रयोजनात्मक स्वरूप को लेकर सबसे बड़ी चिंता शिक्षा के क्षेत्र से जुड़ी हुई है। विज्ञान‚ वाणिज्य एवं प्रबंधन‚ चिकित्सा‚ अभियांत्रिकी‚ प्रौद्योगिकी‚ न्याय आदि से जुड़े विषयों की उच्च शिक्षा आज भी हिन्दी में या तो उपलब्ध ही नहीं है और जो उपलब्ध भी है तो उसकी गुणवत्ता ठीक नहीं है। वास्तव में‚ इन विषयों से संबंधित मौलिक अध्ययन सामग्री तैयार करने के लिए हिन्दी में संभवतः कभी ठोस ढंग से काम ही नहीं हुआ।

जिस स्तर पर देश में साहित्य लेखन हुआ है‚ उसके सापेक्ष इस तरह के प्रयोजनात्मक विषयों पर हिन्दी लेखन की मात्रा न के बराबर ही कही जा सकती है। इन विषयों से जुड़ी जो कुछ सामग्री हिन्दी में उपलब्ध होती है‚ उसमें अनुवाद की मात्रा अधिक है। यही कारण है कि इन विषयों के छात्र प्रायः उच्च शिक्षा में अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई करने लगते हैं। अभियांत्रिकी‚ प्रौद्योगिकी और चिकित्सा जैसे विषयों की पढ़ाई तो अंग्रेजी में ही होती है। जब इन विषयों की शिक्षा हिन्दी में नहीं हो रही‚ फिर इनका कामकाज हिन्दी में कैसे हो सकता हैॽ इसका सबसे बड़ा उदाहरण चिकित्सकों को मान सकते हैं‚ जो शिक्षित-अशिक्षित हर मरीज को दवा की पर्ची से लेकर उसकी जांच रिपोर्ट तक अंग्रेजी में ही देते हैं।

शैक्षिक स्तर पर हिन्दी की हालत को इस उदाहरण से भी समझ सकते हैं कि बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं जिनके प्रश्नपत्र हिन्दी -अंग्रेजी दोनों भाषाओं में होते हैं‚ उनमें स्पष्ट निर्देश होता है कि यदि प्रश्नपत्र के हिन्दी -अंग्रेजी रूपों में कोई अंतर होता है तो ऐसे में अंग्रेजी रूप ही मान्य होगा। कारण कि हिन्दी प्रश्नपत्र अनूदित होता है‚ मूल तो अंग्रेजी प्रश्नपत्र होता है। इन सब बातों के आलोक में यह कहना शायद अनुचित नहीं होगा कि शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोजनमूलक हिन्दी की स्थिति अनुवाद की भाषा जैसी होकर ही रह गई है।

संतोषजनक यह है कि केंद्र की मोदी सरकार द्वारा शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों में भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने के प्रयास किए जा रहे हैं। ॥ नई शिक्षा नीति में स्थानीय भाषाओं में अभियांत्रिकी आदि विषयों की पढ़ाई की व्यवस्था होने से इस तरह की पहलों की शुरु आत हुई है। यद्यपि यह पहले अभी बहुत छोटे स्तर पर हैं‚ लेकिन इनसे यह उम्मीद तो अवश्य जगती है कि आने वाले समय में विज्ञान-तकनीक-चिकित्सा आदि क्षेत्रों में हिन्दी व अन्य भारतीय भाषाओं के लिए संभावनाओं के द्वार खुलेंगे। वस्तुतः इन सब क्षेत्रों में प्रयोजनमूलक हिन्दी का विकास ही उसके व्यावसायिक सशक्तिकरण की राह खोलेगा। आगे की राह यही है।

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English summary
Hindi Divas is celebrated every year in India on 14 September. The Constituent Assembly of India gave Hindi the status of official official language on 14 September 1949, two years after India got independence from the British rule. After which Rashtrabhasha Prachar Samiti, Wardha decided to celebrate 14 September every year as Hindi Diwas in India in the year 1953. Since then every year 14 September is celebrated as Hindi Diwas.
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