सिखों के पहले गुरु और संस्थापक गुरु नानक देव की जयंती को हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुरु पर्व या प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है। वह सत्य को ही एक ईश्वर के रुप में मानते थे और फॉलों करते थें। उन्होंने अपना जीवन मानवता की सेवा के लिए समर्पित किया था। उनके द्वारा दिए गए उपदेशों को एक ग्रंथ में एकत्रित किया गया है। हर साल उनकी जयंती पर उनके द्वारा दिए उपदेशों का पाठ किया जाता है। इस साल गुरु नानक जी की 553वीं जयंती मनाई जा रही है। गुरु नानक जी के बाद सिखों के 10 गुरु रहे हैं जिन्हों शिक्षा, समानता और मानवता के लिए कार्य किया है। आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से सिखों के 10 गुरुओं के बारे में बताएंगे। आइए जानते हैं।
पहले गुरु के बाद सिखों के 9 गुरु और बने लेकिन उसके बाद किसी को भी 11 मानव गुरु नहीं बनाया गया। सिखों के दसवें और अंतिम गुरु गोबिंद सिंह का जन्म 22 दिसंबर को पटना में हुआ था और वह नौवें गुरु तेग बहादुर के पुत्र थें। गोविंद सिंह मानव गुरुओं में अंतिम गुरु थें। उनकी मृत्यु 7 अक्टूबर 1708 में मुगलों द्वारा की गई थी। अपनी मृत्यु से पहले ही उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब को सिख ग्रंथ के रुप में घोषित किया था।
गुरु नानक जी
गुरु नानक जी सिखों के पहल गुरु और सिख समुदाय के संस्थापक थें। उनका जन्म 15 अप्रैल 1469 में राय भोई की तलवंडी में हुआ था। जो वर्तमान समय में नानकाना पंजाब, पाकिस्तान का हिस्सा है। उन्होंने किसी के एक धर्म का होने का दावा नहीं किया उनका मानना था की सत्य में विश्वास रखने वाला ही ईश्वर की प्राप्ती कर सकता है वह सत्य को ही ईश्वर मानते थे। हर साल उनका जन्म कार्तिम पूर्णिमा को गुरु पर्व के रूप में मनाया जाता है।
गुरु अंगद
सीखों के दूसरे गुरु अंगद की गुरु नानक जी से मुलाकात के बाद वह सिख बने और उन्हों गुरु नानक जी के साथ कार्य किया और उनकी सेवा की गुरु नानक जी के निधन से पहले उन्होंने अपना उत्तराधिकारी गुरु अंगद जी को बनाया था। उनका जन्म 31 मार्च 1504 में मुक्तसर पंजाब में हुआ था। उन्होंने गुरु नानक के भजनों को संकलित किया और साथ ही अपने 62-63 भजनों से योगदान भी दिया। वह शिक्षा के विश्वास रखते थे इसलिए उन्होनें बच्चों की पढ़ाई के लिए स्कूलों की स्थापना की।
गुरु अमर दास
गुरु अंगद ने तीसरी गुरु के रूप में अपने बेटे की बजाए गुरु अमर दास को उत्तराधिकारी बनाया। गुरु अमर दास का जन्म 5 मई 1479 में अमृतसर में हुआ था। उन्होंने समाज में सम्मानता के लिए लड़ाई लड़ी थी। वह अमीरी गरीबी के भेद को मिटाने में भरोसा रखते थे। अपने समय काल में उन्होंन गुरु नानक जी के मुफ्त रसोई के विचार को अपनाया और उसका निर्माण किया, जहां सभी लोग चाहें वह गरीब हो या अमीर हो सब साथ बैठ के भोजन करें। जिसे आज भी गुरुद्वारों में देखा जाता है।
गुरु राम दास
सिखों के चौथे गुरु राम दास का जन्म 24 सितंबर 1534 में लाहौर, पाकिस्तान में जेठा के नाम से हुआ था। उन्हें राम दास का नाम गुरु अमर दास द्वारा दिया गया था। 12 वर्ष की आयु में उनकी मुलाकात अमर दास से हुई थी। और उन्होंने गुरु अमर दास को अपने गुरु की तरह स्वीकार किया। गुरु अमर दास ने अपने स्वंय के बेटे कि बजाय जेठा को उत्तराधिकारी चुना और नाम बदल कर गुरु राम दास किया।
गुरु राम दास ने अमृतसर ने स्वर्ण मंदिर की निर्माण शुरु किया था। जो सिख समुदाय के लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान है।
गुरु अर्जन
गुरु अर्जन का जन्म 15 अप्रैल 1563 में हुआ था। उन्होंने सिखों के ग्रंथ को संकलित किया जिसे आदि ग्रंथ के रूप में जाना जाता है। इसी के साथ तीसरे गुरु के समय शुरु हुए स्वर्ण मंदिर के निर्माण को उन्होंने पूरा करवाया। उन्होंने मुस्लिम संतों कों भी अपने ग्रंथ में शामिल किया था जिसके कारण उन्हें मुस्लिम सम्राट जहांगीरी द्वारा निष्पादीत (फांसी) करने के आदेश दिये थे।
गुरु हरगोबिंद
गुरु हरगोबिंद सिखों के छठें गुरु थें, और पांचवे गुरु अर्जन के बेटें भी थें। उनका जन्म 19 जून 1595 में अमृतसर में हुआ था। उनका मानना था की कभी-कभी विश्वास की रक्षा के लिए हथियार उठाना और युद्ध करना आवश्यक होता है। साथ ही वह ये भी कहते थे की इसके माध्यम से कमजोरों की रक्षा करी जा सकती है। अपने इस विश्वास के लिए उन्होंने एक छोटी सी सेना बनाई।
गुरु हर राय
सिखों के सातवें गुरु का जन्म 16 जनवरी 1630 में हुआ था। वह छठे गुरु हरगोबिंद पौत्र थें। उन्होंने गुरु नानक की शिक्षा को फैलान का कार्य किया। उन्होंने अपने दादा जी की बनाई सेना को समाप्त नहीं किया लेकिन उसका कभी प्रयोग भी नहीं किया और उससे दूरी बनाई रखी।
गुरु हर कृष्ण
सिखों के आठवें गुरु का जन्म 7 जुलाई 1656 में कीरतपुर साहिब में हुआ था। वह पांच साल की उम्र में सिखों के सबसे छोटी उम्र के गुरु बने थें। लेकिन 8 साल की उम्र में उनका निधन हो गया था। वह एक मानवतावादी थें जिन्होंने लोगों की सहायता की। उन्होंने चेचक की महामारी से लोगों को ठीक करने में सहायता की और उसी दौरान हुए चेचक से उनकी निधन हो गया।
गुरु तेग बहादुर
सिखों के नौवे गुरु तेग बहादुर का जन्म 1 अप्रैल 1621 में अमृतसर में हुआ था। वह छठे गुरु हरगोबिंद जी के सबसे छोटे पुत्र थें। वह एक आध्यात्मिक विद्वान और कवि भी थें। उनके 115 भजनों को गुरु ग्रंथ साहिब के मु्ख्य पाठों में सम्मलित किया गया है। उन्हों लोगों को जिस धर्म को चाहे पूजा करने का अधिकार दिया था। हिंदुओं का जबरन इस्लाम में परिवर्तन होने से रोका और उनके बचाव के लिए कार्य कियें। जब उन्होंने भी इस्लाम में परिवर्तित होने से इंकार किया तो उन्हें फांसी देने के आदेश दिए गए। ये आदेश मुगल सम्राट औरंगजेब द्वारा दिए गए थे।
गुरु गोबिंद सिंह
सिखों के अंतिम गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म 1666 में शुक्ल पक्ष की सप्तमी को पटना में हुआ था। हर साल शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन उनकी जयंती मनाई जाती है। उन्हें सिखों का अंतिम गुरु इसलिए भी माना जाता है क्योंकि उन्हें अपनी मृत्यु से पहले गुरु ग्रंथ साहिब को अंतिम गुरु के रूप में स्थापित किया था। उनके पिता गुरु तेग बाहुदर की मृत्यु के बाद नौ वर्ष की आयु में उन्हें गुरु की उपाधी प्राप्त हुई। गुरु गेबिंद सिंह एक आध्यात्मिक गुरु होने के साथ-साथ एक कवि, योद्धा, और दार्शनिक भी थें। आज उनकी 366 वीं जयंती मनाई जा रही है। सिख समुदाय के लोगों के लिए ये बहुत महत्वपूर्ण पर्व है।