Explained: क्या शास्त्री जी नेहरू की छाया थे, जानिए पूरी कहानी

भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री एक महान राजनीतिज्ञ थे। उन्होंने भारत के निर्माण में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 1921 से 1945 के दौरान उन्होंने गांधी जी के साथ मिलकर भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी है तो आजादी के बाद जब वह भारत के 6वें गृह मंत्री के पद पर आसीन थे उस दौरान उन्हें श्वेत क्रांति की शुरुआत की। श्वेत क्रांति के माध्यम से दुग्ध की अपूर्ति और उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए अमूल दुग्ध सरकारी समिति के समर्थन से राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड का निर्माण किया।

इसके बाद 1964 में दूसरे प्रधानमंत्री के रूप में चुने जाने के बाद उन्होंने 1965 के दौरान हरित क्रांति को बढ़ावा दिया ताकि खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि की जा सके। शास्त्री को श्वेत और हरित क्रांति के जनक के रूप में भी जाना जाता है। 1965 में भारत पाक युद्ध के दौरान उनके द्वारा दिए गए जय जवान जय किसान का स्लोगन भी बहुत अधिक प्रसिद्ध हुआ। आपको बता दें कि अपने पूरा जीवन काल में प्राप्त सभी पदों के कार्य उन्होंने पूर्ण इमांदारी के साथ निभाया है और देश के लिए समर्पण दिया है।

आज 11 जनवरी को उनकी 57वीं पुणंयतिथि पर भारत उनके द्वारा किए सभी योगदानों का याद कर रहा। 11 जनवरी 1966 में ताशकंद समझौता के बाद शास्त्री जी का निधन हो गया था। भारत के लिए उनके द्वारा किए योगदानों को ध्यान में रखते हुए 1966 में मरणोपरांत उन्हें भारत रत्न सम्मानित किया गया।

Explained: क्या शास्त्री जी नेहरू की छाया थे, जानिए पूरी कहानी

भारत के निर्माण में शास्त्री का नाम शामिल क्यों नहीं

अपने पूरे जीवन काल को देश को समर्पित करने वाले शास्त्री को के बारे में जानकारी प्राप्त करने की कोशिश करने पर आपको उनसे संबंधित अधिक जानकारी प्राप्त नहीं होती है। कई सालों तक तो स्थिति ये भी रही है कि लोगों को ये तक नहीं पता था कि उनकी और गांधी जी की जयंती एक ही दिन होती है। इतने कार्य और भारत के निर्माण में योगदान के बाद भी उनके बारे में ज्यादा चर्चा नहीं की जाती है। अभी हाल के कुछ सालों से ही आपको उनके बारे में अधिक सुनने और जानने को मिल रहा है। तो सोचिए पहले की लिखी कितनी पुस्तकें होंगी जिसमें उनके बारे में जानकारी नहीं दी गई है या बहुत संक्षिप जानकारी के साथ अध्यायों को खत्म कर दिया गया है। अक्सर ही लेखकों द्वारा याय पत्रकारों द्वारा उन्हें नेहरू की एक छाया के रूप में माना गया है, जबकि वह उससे कई अधिक थें। यदि आप दखेंगे रामचंद्र गुहा की मेकर्स ऑफ मॉर्डन इंडिया तब आपको पता लगेगा कि इस पुस्तक में शास्त्री के बारे में कुछ नहीं दिया गया है, साथ ही वी.कृष्णा की इंडिया सिंस इंडिपेंडेंस में उन्हें आठ पैराग्राफ प्राप्त हुए हैं तो वहीं मेघनाद देसाई की रिडिस्कवरी ऑफ इंडिया में उन्हें तीन पेज मिलते हैं। इस तरह के योगदान के बाद भी जब उनका नाम कहीं शामिल नहीं किया जाता है। कुलदीप की पुस्तक बिटवीन द लाइन्स एंड बियॉन्ड द लाइन्स एक लौती है ऐसी पुस्तक है जहां शास्त्री जी के नाम पर 3 अध्यायन समर्पित हैं।

कुलदीप नैय्यर और संदीप शास्त्री की पुस्तक में शास्त्री

जैसा की आपको बताया की अन्य सभी लेखकों में केवल कुलदीप नैय्यर ही हैं जिन्होंने लाल बहादुर शास्त्री द्वारा किए उनके कार्यों को निष्पक्ष और स्पष्ट मूल्यांकल दिया है। जिसमें उन्हों शास्त्री को नेहरू की छाया से अधिक दिखा कर वर्णित किया है। कुलदीप नैय्यर ने अपनी पुस्तक के माध्य्म से ये बताने की कोशिश की है कि अन्य अंग्रेजी भाषा के पत्रकार चाहें वह विदेशी हो या भारतीय सभी ने शास्त्री को केवल नेहरू की छाया के रूप में दिखाने का प्रयत्न किया है। शास्त्री नेहरू को अपने गुरू की मनान करते थे। जो एक कारण हो सकता है शास्त्री को नेहरू की छाया मनाने का। लेकिन इसके चलते किसी के द्वारा किए कार्यों को नजरअंदाज भी नहीं किया जाना चाहिए।

उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान कई सिविल सेवकों के साथ कार्य किया हैं, जिसमें सी.पी. श्रीवास्तव, राजेश्वर प्रसादन और एल.पी. सिहं भी शामिल थे। इन्होंने शास्त्री की कार्यशैली को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करने का प्रयत्न किया है। वहीं आगर बात करें तो आज से कुछ साल पहले एक लेखक जिसका नाम संदीप शास्त्री है, द्वारा शास्त्री पर एक खंड (वॉल्यूम) लिखा जिसका नाम है लाल बहादुर शास्त्री: पॉलिटिक्स एंड बियॉन्ड। इस संज में शास्त्री के कार्यकाल और कार्य शैली के साथ उनके बारे में कई जानकारी दी गई है। जो शास्त्री जी के बारे में जानने के लिए लाभकारी हैं।

एक शांत व्यक्ति थे लाल बहादुर शास्त्री

शास्त्री के शांत स्वभाव के व्यक्ति थें। एक प्रधानमंत्री के तौर पर उनका कार्यकाल काफी कम समय का रहा है। उन्होंने केवल 18 महीने प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया था और उसी दौरान उनका निधन हुआ था। वह एक प्रधानमंत्री के रूप में अपने व्यापक और सटीक भाषाण के लिए जाने जाते थें न की बतों को घुमाने और भटकाने के लिए। जैसा की सभी जानते हैं और हमने भी इस बात का जिक्र किया कि शास्त्री के शांत स्वभाव और कम बोलने वाले व्यक्तियों में से एक थे। उनके कम बोलने वाले व्यवहार उनकी ताकत भी था और कमजोरी भी। कई बार किसी बात पर उनका न बोलने को लोगों द्वारा स्वीकृती के रूप में भी लिया गया है। जिस कारण इस एक कमजोरी के रूप में भी देखा गया है, लेकिन वह बोलने से ज्यादा करने में विश्वास रखने वाले व्यक्ति थें।

1965 में हुई भारत-पाक युद्ध उनकी दृढ़ता का एक मुख्य उदाहरण है जहां उनके द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करते हुए, पाकिस्तानी सेना को भारत की सीमा के पार करवाते हुए भारतीय सेना लाहौर तक आगे बढ़ी। लाहौर पाकिस्तान की राजधानी है और वहां तक भारतीय सेना का पहुंचना पाकिस्तान के लिए सीधी धमकी थी। इस तरह से उन्हें अपने पूरे कार्यकाल में भारत की सेवा की है। इसलिए उनकी पुणंयतिथि पर उनके बारे में जानना सभी के लिए आवश्यक है।

इस प्रकार सास्त्री ने अपने जीवन काल में और अपने राजनीतिक कार्यकाल में अपना योगदान दिया है। जिसकी जानकारी आपको इतिहास के पन्नें खंगालने में प्राप्त होती है। लेकिन अब समय ऐसा है जहां उनके बारे में लोग जानते हैं और अधिक जानने की इच्छा रखते हैं।

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English summary
Today on January 11, on his 57th death anniversary, India is remembering all the contributions made by him. Shastri ji died on 11 January 1966 after the Tashkent Agreement. Despite his many contributions, he is missing in the pages of history. He has been described by many as Nehru's shadow. But he was much more than that. Let us give you information about them through this article.
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