Kali Puja Essay in hindi: 100, 300 और 500 शब्‍दों में काली पूजा पर निबंध कैसे लिखें? (Kali Puja 2024)

Kali Puja 2024, Kali Puja Essay in Hindi: भारत के अलग अलग हिस्सों में अलग अलग देवी-देवताओं को पूजा जाता है। एक ही अवसर के दौरान भिन्न भिन्न पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के कारण त्योहारों को बिल्कुल अलग स्वरूप में मनाया जाता है। आज हम ऐसी ही एक त्योहार के बारे में जानकारी दे रहे हैं- वह है काली पूजा।

काली पूजा 2024 पर निबंध

जिस प्रकार नवरात्रि के दौरान देश के कई प्रदेशों में देवी के नौ स्वरूपों की पूजा अर्चना की जाती है, और पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा, बिहार, छत्तीसगढ़ और त्रिपुरा में मां दुर्गा की पूजा की जाती है। ठीक उसी प्रकार उत्तरी भारत में दिवाली के दौरान भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने की खुशियां मनाई जाती है, वहीं पश्चिम बंगाल समेत कुछ अन्य राज्यों में मां काली की अराधना की जाती है।

काली पूजा का त्योहार कब मनाया जाता है?

काली पूजा भारत के कई प्रमुख धार्मिक त्योहारों में से एक है। काली पूजा का त्योहार मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम जैसे पूर्वी राज्यों में मनाया जाता है। इस दिन मां काली की विशेष पूजा की जाती है। हिंदू धर्म में 33 कोटि देवी देवतीओं में से मां काली ,शक्ति और साहस की देवी मानी जाती हैं। काली पूजा का त्योहार विशेष रूप से दिवाली के दिन मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, काली पूजा को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक मानी जाती है। कथाओं में मां काली को क्रोध और विनाश की देवी भी कहा गया है, लेकिन वह अपने भक्तों के लिए दयालु और रक्षक के समान होती हैं।

काली पूजा का त्योहार विशेष महत्व रखता है। काली पूजा के अवसर पर अक्सर स्कूली बच्चों में हिंदू धर्म और त्योहारों के प्रति समझ को बढ़ाने के लिए निंबध लेख प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। इस लेख में हम काली पूजा पर निबंध प्रस्तुत कर रहे हैं। यहां प्रस्तुत काली पूजा पर निबंध प्रारूप मां काली के स्वरूप और उनकी कहानी पर आधारित है। इस लेख में काली पूजा पर 100, 300 और 500 शब्दों में निबंध प्रस्तुत किया जा रहा है। इसे स्कूल के बच्चे आसानी से समझ सकते हैं।

100 शब्दों में काली पूजा पर निबंध

काली पूजा हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है। यह मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल में मनाया जाता है। इस दिन मां काली की पूजा की जाती है। मां काली शक्ति और साहस की देवी मानी जाती हैं। काली पूजा दिवाली के दिन ही होती है। काली पूजा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक मानी जाती है। मां काली का रूप भयावह होता है। लेकिन वह अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। इस दिन भक्त मां काली के मंदिरों में जाते हैं, उन्हें फूल, धूप और प्रसाद अर्पित करते हैं। मां काली की पूजा से लोगों को आत्मविश्वास और साहस मिलता है।

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300 शब्दों में काली पूजा पर निबंध

काली पूजा भारत के पूर्वी राज्यों जैसे पश्चिम बंगाल, असम और ओडिशा में बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। इस दिन मां काली की पूजा की जाती है। मां काली शक्ति, साहस और क्रोध की देवी मानी जाती हैं। मां काली का रूप भयानक होता है। यदि बात उनके स्वरूप की करें तो उनके हाथों में तलवार और राक्षसों के कटे हुए सिर होते हैं, लेकिन यह रूप बुराई का नाश करने और अपने भक्तों की रक्षा करने का प्रतीक है।

काली पूजा दिवाली के दिन मनाई जाती है। यह पर्व रोशनी और ज्ञान का प्रतीक मानी जाती है। इस दिन लोग अपने घरों और मंदिरों में मां काली की मूर्तियों की स्थापना करते हैं और मध्य रात्रि में अमावस्या की तिथि में मां काली की पूजा करते हैं। भक्त इस दौरान पूरी रात दीप जलाते हैं। मां काली की पूजा के दौरान भक्त उन्हें फूल, धूप, नारियल और मिठाइयां अर्पित करते हैं। इसके साथ ही रात को विशेष आरती और मंत्रों का उच्चारण किया जाता है।

काली पूजा का महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। मां काली के पूजा से लोगों को साहस, शक्ति और निडरता मिलती है। यह जीवन की कठिनाइयों का सामना करने में सहायक होती है। यह पर्व हमें सिखाता है कि बुराई का अंत हमेशा होता है और अंत में अच्छाई की जीत होती है।

500 शब्दों में काली पूजा पर निबंध

काली पूजा को 'शक्ति पूजा' भी कहा जाता है। काली पूजा, हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व है। यह मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, असम और ओडिशा में मनाया जाता है। मां काली को शक्ति और साहस की देवी माना जाता है। मां काली अपने भयानक रूप में बुराई का नाश करती हैं और अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। मां काली को पार्वती का ही एक रूप माना जाता है। उन्हें अपने भक्तों के प्रति दयालु और रक्षक के रूप में पूजा जाता है।

काली पूजा का आयोजन दिवाली के दिन होता है। इस दौरान पूरा देश दीपों की रोशनी से जगमगा उठता है। इस दिन लोग मां काली की मूर्तियों को अपने घरों और मंदिरों में स्थापित करते हैं और उनकी विशेष पूजा करते हैं। मां काली का भयावह स्वरूप को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। पौराणिक कथाओं और तस्वीरों में मां काली के स्वरूप के बारे में बताया गया है कि उनके हाथ में तलवार और राक्षसों के कटे हुए सिर होते हैं। मां काली का रूप यह दर्शाता है कि वह बुराई का संहार करने वाली देवी हैं।

काली पूजा के दौरान भक्त मां काली को लाल गुड़हल के फूल, धूप, मिठाइयां और नारियल अर्पित करते हैं। इस दिन विशेष रूप से काली मंदिरों में रातभर पूजा और आरती का आयोजन किया जाता है। भक्त मंदिरों में जाकर मां काली की आराधना करते हैं और उनसे शक्ति और साहस की प्रार्थना करते हैं। मां काली के पूजा में 'काली मंत्र' का उच्चारण विशेष रूप से किया जाता है। यह भक्तों को आत्मबल और साहस प्रदान करता है।

इस दिन विशेष रूप से पश्चिम बंगाल में बड़े पंडाल सजाए जाते हैं, जहां मां काली की विशाल मूर्तियों की स्थापना की जाती है। इस पर्व का सामाजिक और धार्मिक दोनों ही दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण स्थान है। काली पूजा से हमें यह सिखाती है कि हमें जीवन में कभी भी बुराई से डरना नहीं चाहिये, क्योंकि अंत में जीत अच्छाई की ही होती है। यह त्योहार साहस, शक्ति और निडरता का प्रतीक है और हमें जीवन की कठिनाइयों का सामना करने की प्रेरणा देता है।

काली पूजा केवल एक धार्मिक त्योहार नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा अवसर है जब लोग अपने भीतर की कमजोरियों और डर को खत्म करके शक्ति और साहस का आह्वान करते हैं। मां काली की पूजा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि बुराई का नाश हमेशा होता है और अच्छाई की हमेशा जीत होती है।

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