Poem On Hindi Diwas 2024: हिंदी भाषा की समृद्धि और सांस्कृतिक महत्व को प्रमुखता देते हुए हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन हिंदी भाषा और साहित्य के प्रति सम्मान व्यक्त करने का एक अनोखा अवसर होता है। इस दिन देश भर में कई कार्यक्रमों का आयोजन कर हिंदी दिवस मनाया जाता है।
हिंदी दिवस के अवसर पर कई गतिविधियों या कार्यक्रमों में विशेष रूप से हिंदी कविता पाठ सत्र या प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। क्योंकि इस दिन खासतौर पर हिंदी के महान कवियों की कविताओं के माध्यम से उनकी कला और विचारधाराओं को सम्मानित किया जाता है। हिंदी साहित्य में कवियों ने अपनी भावनाओं, विचारों और समाज की वास्तविकताओं को सुंदर शब्दों में पिरोया है। उनकी कविताएं न केवल हमें मनोरंजन प्रदान करती हैं बल्कि हमें समाज और जीवन की गहराईयों को समझने में भी मदद करती हैं।
इस वर्ष हिंदी दिवस के उत्साह को और अधिक बढ़ाने के लिए हम यहां प्रसिद्ध हिंदी कवियों की कविताएं प्रस्तुत कर रहे हैं।
1. सच है
यह सच है
तुमने जो दिया दान दान वह,
हिंदी के हित का अभिमान वह,
जनता का जन-ताका ज्ञान वह,
सच्चा कल्याण वह अथच है
यह सच है!
बार बार हार हार मैं गया,
खोजा जो हार क्षार में नया,
उड़ी धूल, तन सारा भर गया,
नहीं फूल, जीवन अविकच है
यह सच है!
- सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
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2. पंथ होने दो अपरिचि
प्राण रहने दो अकेला
और होंगे चरण हारे,
अन्य हैं जो लौटते दे शूल को संकल्प सारे;
दुखव्रती निर्माण-उन्मद
यह अमरता नापते पद;
बाँध देंगे अंक-संसृति से तिमिर में स्वर्ण बेला
दूसरी होगी कहानी
शून्य में जिसके मिटे स्वर, धूलि में खोई निशानी;
आज जिसपर प्यार विस्मृत ,
मैं लगाती चल रही नित,
मोतियों की हाट औ, चिनगारियों का एक मेला
हास का मधु-दूत भेजो,
रोष की भ्रूभंगिमा पतझार को चाहे सहेजो;
ले मिलेगा उर अचंचल
वेदना-जल स्वप्न-शतदल,
जान लो, वह मिलन-एकाकी विरह में है दुकेला
- महादेवी वर्मा
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3. कलम, आज उनकी जय बोल
जला अस्थियाँ बारी-बारी
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल
कलम, आज उनकी जय बोल
जो अगणित लघु दीप हमारे
तूफानों में एक किनारे,
जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन
माँगा नहीं स्नेह मुँह खोल
कलम, आज उनकी जय बोल
पीकर जिनकी लाल शिखाएँ
उगल रही सौ लपट दिशाएं,
जिनके सिंहनाद से सहमी
धरती रही अभी तक डोल
कलम, आज उनकी जय बोल
अंधा चकाचौंध का मारा
क्या जाने इतिहास बेचारा,
साखी हैं उनकी महिमा के
सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल
कलम, आज उनकी जय बोल
- रामधारी सिंह 'दिनकर'
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4. प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो
मैं जगत के ताप से डरता नहीं अब,
मैं समय के शाप से डरता नहीं अब,
आज कुंतल छांह मुझपर तुम किए हो;
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो
रात मेरी, रात का श्रृंगार मेरा,
आज आधे विश्व से अभिसार मेरा,
तुम मुझे अधिकार अधरों पर दिए हो;
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो
वह सुरा के रूप मोहे से भला क्या,
वह सुधा के स्वाद से जाए छला क्या,
जो तुम्हारे होंठ का मधु विष पिए हो;
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो
मृत-सजीवन था तुम्हारा तो परस ही,
पा गया मैं बाहु का बंधन सरस भी,
मैं अमर अब, मत कहो केवल जिए हो;
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो
- हरिवंश राय बच्चन
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5. चुनाव की चोट
हार गए वे, लग गई इलेक्शन में चोट।
अपना-अपना भाग्य है, वोटर का क्या खोट?
वोटर का क्या खोट, ज़मानत ज़ब्त हो गई।
उस दिन से ही लालाजी को ख़ब्त हो गई॥
कह 'काका' कवि, बर्राते हैं सोते-सोते।
रोज़ रात को लें, हिचकियाँ रोते-रोते॥
- काका हाथरसी
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6. सारा जग मधुबन लगता है
दो गुलाब के फूल छू गए जब से होंठ अपावन मेरे
ऐसी गंध बसी है मन में सारा जग मधुबन लगता है।
रोम-रोम में खिले चमेली
साँस-साँस में महके बेला
पोर-पोर से झरे मालती
अंग-अंग जुड़े जूही का मेला
पग-पग लहरे मानसरोवर डगर-डगर छाया कदंब की
तुम जब से मिल गए उमर का खंडहर राजभवन लगता है।
दो गुलाब के फूल॥
छिन-छिन ऐसा लगे कि कोई
बिना रंग के खेले होली
यूँ मदमाए प्राण कि जैसे
नई बहू की चंदन डोली
जेठ लगे सावन मनभावन और दुपहरी साँझ बसंती
ऐसा मौसम फिरा धूल का ढेला एक रतन लगता है।
दो गुलाब के फूल॥
जाने क्या हो गया कि हरदम
बिना दिए के रहे उजाला
चमके टाट बिछावन जैसे
तारों वाला नील दुशाला
हस्तामलक हुए सुख सारे दुख के ऐसे ढहे कगारे
व्यंग्य-वचन लगता था जो कल वह अब अभिनंदन लगता है।
दो गुलाब के फूल॥
तुम्हें चूमने का गुनाह कर
ऐसा पुण्य कर गई माटी
जनम-जनम के लिए हरी
हो गई प्राण की बंजर घाटी
पाप-पुण्य की बात न छेड़ो स्वर्ग-नर्क की करो न चर्चा
याद किसी की मन में हो तो मगहर वृंदावन लगता है।
दो गुलाब के फूल॥
तुम्हें देख क्या लिया कि कोई
सूरत दिखती नहीं पराई
तुमने क्या छू दिया बन गई
महाकाव्य कोई चौपाई
कौन करे अब मठ में पूजा कौन फिराए हाथ सुमरिनी
जीना हमें भजन लगता है मरना हमें हवन लगता है।
दो गुलाब के फूल॥
- गोपालदास 'नीरज'
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