World Earth Day 2024: हर साल 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाया जाता है। पृथ्वी दिवस 2024 की थीम 'प्लैनेट वर्सेस प्लास्टिक' रखी गई है। पृथ्वी दिवस पर पूरी दुनिया में पृथ्वी संरक्षण पर चर्चा की जाती है। पृथ्वी के बिना जीवन की कल्पना ही संभव नहीं है। अमेरीकी सीनेटर व पर्यावरणविद् गेलॉर्ड नेल्सन ने 22 अप्रैल 1970 को पृथ्वी दिवस मनाने की शुरुआत की।
तब करीब 20 लाख अमेरिकियों ने स्वस्थ पर्यावरण के लक्ष्य को लेकर दुनिया भर में पृथ्वी दिवस मनाने का काम शुरू किया था। समय के साथ संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी पृथ्वी दिवस मनाने को प्रोत्साहन दिया। सन 1941 तक आते आते यह आंदोलन बन गया और 141 देशों में पृथ्वी दिवस मानना शुरू किया गया। 1992 में रियो डी जेनेरियो में संयुक्त राष्ट्र पृथ्वी सम्मेलन में पृथ्वी पर मंडराते संकटों पर गहन विचार हुआ।
22 अप्रैल 2000 को इंटरनेट के माध्यम से 184 देशों के करीब 500 समूहों को जोड़कर पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक किया। नेल्सन के नेतृत्व में शुरू हुआ यह आंदोलन आज दुनिया की सबसे बड़ी जरूरत बन गया है और आज दुनिया के 194 देश पृथ्वी दिवस मनाने मना रहे हैं।
धरती की चिंता करने का दिन पृथ्वी दिवस
पृथ्वी दिवस, एक ऐसा दिन बन कर आता है, जब सारी दुनिया, जीवन का आधार बनी, 'धरती' की चिंता करती है। क्योंकि पृथ्वी के बिना जीवन की कल्पना ही संभव नहीं है। आपको जानकारी हैरानी होगी कि बड़े-बड़े वैज्ञानिकों की खोजों व अंतरिक्षीय कार्यक्रमों के बावजूद मानव को आज तक किसी भी दूसरे ग्रह पर जीवन के लक्ष्ण नहीं मिल पाए हैं। जिसका सीधा स मतलब है कि यदि हम अब भी पृथ्वी के संरक्षण के प्रति सचेत नहीं हुए तो पृथ्वी के साथ ही साथ मानव जीवन पर संकट आना निश्चित है।
जीवन का आधार है धरती
आईपीसीसी की रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में 15% भूमि, 21% मीठा पानी और 8% समुद्री जल संरक्षित है, बाकी सब मानव गतिविधियों का प्रभाव है। शोधकर्ताओं ने पाया कि जल चक्र तेज हो जाने के कारण धरती का मीठा पानी चार गुना तक समुद्र में जा रहा है, जिससे समुद्र का खारापन कम हो रहा है। जल चक्र अगर इसी तरह तेजी से बढ़ता रहा तो उसके गंभीर परिणाम मानव जाती को भुगतने पड़ेंगे।
जैव विविधता और पारिस्थितिक तंत्र में बढ़ती गर्मी के अनुकूल होने की सीमित क्षमता है। इसलिए जैव विविधता और पारिस्थितिक तंत्र के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए भूमि, मीठे पानी और महासागर को संरक्षित करने की आवश्यकता है। जलीय जीवन में मानव जीवन की उपस्थिति नहीं है, केवल जलचर या उभयचर ही जल में जी पाते हैं। इसका सीधा मतलब यह है कि मानव जीवन का एकमात्र आधार धरती है।
हमने ही खड़ा किया है संकट
सबसे बड़ी अचरज की बात यह है कि खुद को पृथ्वी पुत्र कहने वाला मानव ही उसकी मां पृथ्वी के संकट का सबसे बड़ा कारण भी है। निर्विवाद सच है कि पेड़ पौधे व पशु, पक्षी और मानव जीने का अंतिम आसरा पृथ्वी पर ही देखते हैं। लेकिन अपने व्यक्तिगत स्वार्थों के चलते मानव ने पर्यावरण को सबसे ज्यादा हानि पंहुचाई है। हालांकि इसका नुकसान भी सबसे ज्यादा मानव ही भुगत रहा है। जलवायु परिवर्तन और अन्य मानवीय गतिविधियों द्वारा पृथ्वी को सबसे अधिक नुकसान हुआ है।
आईपीसीसी की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2050 तक मानव जीवन के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलेगा। पीने के लिए मीठा पानी नहीं मिलेगा। यदि इस संकट से बचना है तो जैव विविधता और पारिस्थितिक तंत्र के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए पृथ्वी की 30-50% भूमि, मीठे पानी और महासागर को संरक्षित करने की आवश्यकता है।
कटते घटते जंगल
आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में, हम एक दूसरे से आगे निकलने के लिए तबदतौड़ तरीके से जंगलों को काट रहे हैं। बड़े-बड़े प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए बड़े-बड़े पैडों को काटा जा रहा है। जिसके कारण, आज पृथ्वी पर प्रदूषण का स्तर काफी अधिक बढ़ गया है, जिससे तापमान बढ़ा है और ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्या उत्पन्न हो गई है। ग्लोबल वार्मिंग के चलते आज पृथ्वी के ध्रुवों पर जमें बर्फ व ग्लेशियर्स के पिघलने का खतरा सामने है।
एक अंदेशा है कि यदि ये ग्लेशियर्स पिघल गए तो पूरी धरती ही जलमग्न हो जाएगी, जिसका सीधा सा मतलब होगा पृथ्वी से सारे जंतु समेत मानव जीवन गायब हो जाएंगे, जो केवल जमीन पर ही जीने की कला जानते हैं। इतना ही नहीं इससे भोजन श्रंखला टूट जाएगी और जलीय जंतु भी खत्म हो जाएंगें। साफ सी बात है कि धरती है तो जीवन है और जीवन है तो हम हैं और हम हैं तो कल है।
जनसंख्या पिघला देगी ग्लेशियर
अनुमानतः इस समय दुनिया में करीब 4 बिलियन लोग हैं और 10 मिलियन रोज पैदा हो रहे हैं सोचिए यदि धरती ही नहीं रही तो क्या होगा? एक सर्वे में पाया गया है कि यदि समय रहते बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण और जनसंख्या पर नियंत्रण नही किया गया तो 2035 तक यें धरुवीय ग्लेशियर्स पिघल सकते हैं। यदि ये ग्लेशियर्स पिघलना शुरू हो गए तो धीरे-धीरे मानव जीवन समेत पूरा जन-जीवन समाप्त हो जाएगा।
पृथ्वी को कैसे बचाएं?
सोचिए गलती से भी यह अनुमान सच हो गया तो क्या होगा? तो क्या हम डर जाएं? हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाएं? मरने को तैयार रहें? या 'जो होगा देखा जाएगा' के भाव के साथ जिंदा रहें? आखिर क्या करना होगा हमें? कैसे बचाएं पृथ्वी को? ऐसा क्या करें या न करें कि धरती संकट में न पड़े। आज पृथ्वी दिवस पर कुछ बहुत ही सरल से काम करने पर हम आसानी से पृथ्वी को आने वाले संकटों से बचा सकते हैं। इसके लिए आपको रीसायकल टर्म का उपयोग करना होगा। आप जो फेंकते हैं उसमें कटौती करें।
अपने इलाके की सफाई का जिम्मा उठायें। लोगों को शिक्षित करें। जब आप अपनी खुद की शिक्षा को आगे बढ़ाते हैं, तो आप दूसरों को प्राकृतिक संसाधनों के महत्व और मूल्य को समझने में मदद कर सकते हैं। जल संरक्षित करें। कम पानी का उपयोग करें। कम प्लास्टिक खरीदें और एक पुन: प्रयोज्य शॉपिंग बैग का इस्तेमाल करें। लंबे समय तक चलने वाले प्रकाश बल्बों का प्रयोग करें। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करें। अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाएं। पेड़ भोजन और ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। वे ऊर्जा बचाने, हवा को साफ करने और जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करते हैं। अपने वाहन का उपयोग सीमित करें।
पृथ्वी दिवस का नाम कैसे रखा गया है?
गेलॉर्ड नेल्सन ने कहा कि उन्होंने पृथ्वी दिवस का नाम तय करने में अपने दोस्तों की मदद ली थी। जूलियन कोएनिग नेल्सन की आयोजन समिति में थे, उन्होंने कहा कि उन्हें यह विचार उनके जन्मदिन के संयोग से आया था, जिस दिन 22 अप्रैल को चुना गया था। "अर्थ डे" की "जन्मदिन" के साथ जोड़ा गया। रॉन कॉब ने एक पारिस्थितिकी प्रतीक बनाया और इसे 25 अक्टूबर, 1969 को प्रकाशित किया। प्रतीक क्रमशः "पर्यावरण" और "जीव" शब्दों से लिए गए "ई" और "ओ" अक्षरों का एक संयोजन था। बाद में यह प्रतीक पृथ्वी दिवस से जुड़ा।