Diwali Poems in hindi: दिवाली के अवसर पर पढ़ें प्रसिद्ध कवियों की टॉप कविताएं

Diwali Poems in hindi: दिवाली भारत में मनाया जाने वाला एक प्रमुख हिन्दू त्योहार है। यह त्योहार हर साल अक्टूबर और नवम्बर के बीच मनाया जाता है और इसे 'दीपावली' के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ होता है "दीपों की पंक्ति"।

दीपावली का त्योहार पांच दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें हर दिन को अलग-अलग महत्व दिया जाता है। इसे धर्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माना जाता है। दीपावली के दिन लोग अपने घरों को सजाकर उन्हें दीपों से सजाते हैं, जिन्हें रोशनी का प्रतीक माना जाता है।

Diwali Poems in hindi: दिवाली के अवसर पर पढ़ें प्रसिद्ध कवियों की टॉप कविताएं

दीपावली का मुख्य उद्देश्य असुरों के प्रति श्रद्धाभाव और भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने की खुशी की याद करना है। इसके अलावा, इसे धन की प्राप्ति और सुख-शांति का प्रतीक माना जाता है।

दीपावली के दिन लोग एक दूसरे को उपहार भेजते हैं, खासकर मिठाई और खास तौर से बच्चों को चकरीयां (पटाखे) खिलाते हैं। इस दिन परिवारों और दोस्तों के साथ मिलकर मिठाई खाते हैं, पूजा करते हैं और आपसी मोहभंग को खत्म करते हैं।

दीपावली भारत में ही नहीं, बल्कि विभिन्न अन्य हिन्दू और जैन समुदायों में भी मनाया जाता है, और यह त्योहार विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न रूपों में मनाया जाता है।

Diwali 2023 Kab hai?

इस वर्ष, दीपावली12 नवंबर 2023 रविवार को मनाई जाएगी। दिवाली की पूजा का शुभ मुहूर्त 12 नवंबर की शाम 5 बजकर 40 मिनट से लेकर 7 बजकर 36 मिनट तक है। वहीं लक्ष्मी पूजा के लिए महानिशीथ काल मुहूर्त रात 11 बजकर 39 मिनट से मध्यरात्रि 12 बजकर 31 मिनट तक है। इस मुहूर्त में लक्ष्मी पूजा करने से जीवन में अपार सुख-समृद्धि की प्राप्ति होगी।

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आज के इस लेख में हम आपके लिए भारत के महान कवियों की कुछ रोचक कविताएं दिवाली पर लेकर आएं हैं। जो कि निम्नलिखित हैं-

Diwali Poems by famous Poet

1. दीपदान

जाना, फिर जाना,
उस तट पर भी जा कर दिया जला आना,
पर पहले अपना यह आँगन कुछ कहता है,
उस उड़ते आँचल से गुड़हल की डाल
बार-बार उलझ जाती हैं,
एक दिया वहाँ भी जलाना;

जाना, फिर जाना,
एक दिया वहाँ जहाँ नई-नई दूबों ने कल्ले फोड़े हैं,
एक दिया वहाँ जहाँ उस नन्हें गेंदे ने
अभी-अभी पहली ही पंखड़ी बस खोली है,
एक दिया उस लौकी के नीचे
जिसकी हर लतर तुम्हें छूने को आकुल है
एक दिया वहाँ जहाँ गगरी रक्खी है,
एक दिया वहाँ जहाँ बर्तन मँजने से
गड्ढा-सा दिखता है,
एक दिया वहाँ जहाँ अभी-अभी धुले
नये चावल का गंधभरा पानी फैला है,
एक दिया उस घर में -
जहाँ नई फसलों की गंध छटपटाती हैं,
एक दिया उस जंगले पर जिससे
दूर नदी की नाव अक्सर दिख जाती हैं
एक दिया वहाँ जहाँ झबरा बँधता है,
एक दिया वहाँ जहाँ पियरी दुहती है,
एक दिया वहाँ जहाँ अपना प्यारा झबरा
दिन-दिन भर सोता है,

एक दिया उस पगडंडी पर
जो अनजाने कुहरों के पार डूब जाती है,
एक दिया उस चौराहे पर
जो मन की सारी राहें
विवश छीन लेता है,
एक दिया इस चौखट,
एक दिया उस ताखे,
एक दिया उस बरगद के तले जलाना,
जाना, फिर जाना,
उस तट पर भी जा कर दिया जला आना,
पर पहले अपना यह आँगन कुछ कहता है,
जाना, फिर जाना!

- केदारनाथ सिंह

2. जगमग-जगमग

हर घर, हर दर, बाहर, भीतर,
नीचे ऊपर, हर जगह सुघर,
कैसी उजियाली है पग-पग,
जगमग जगमग जगमग जगमग!

छज्जों में, छत में, आले में,
तुलसी के नन्हें थाले में,
यह कौन रहा है दृग को ठग?
जगमग जगमग जगमग जगमग!

पर्वत में, नदियों, नहरों में,
प्यारी प्यारी सी लहरों में,
तैरते दीप कैसे भग-भग!
जगमग जगमग जगमग जगमग!

राजा के घर, कंगले के घर,
हैं वही दीप सुंदर सुंदर!
दीवाली की श्री है पग-पग,
जगमग जगमग जगमग जगमग!

- सोहनलाल द्विवेदी

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3. आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ

आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ ।

है कंहा वह आग जो मुझको जलाए,
है कंहा वह ज्वाल पास मेरे आए,

रागिनी, तुम आज दीपक राग गाओ;
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ ।

तुम नई आभा नहीं मुझमें भरोगी,
नव विभा में स्नान तुम भी तो करोगी,

आज तुम मुझको जगाकर जगमगाओ;
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ ।

मैं तपोमय ज्योति की, पर, प्यास मुझको,
है प्रणय की शक्ति पर विश्वास मुझको,

स्नेह की दो बूंदे भी तो तुम गिराओ;
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ ।

कल तिमिर को भेद मैं आगे बढूंगा,
कल प्रलय की आंधियों से मैं लडूंगा,

किन्तु आज मुझको आंचल से बचाओ;
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ ।

- हरिवंशराय बच्चन

4. दीप से दीप जले

सुलग-सुलग री जोत दीप से दीप मिलें
कर-कंकण बज उठे, भूमि पर प्राण फलें।

लक्ष्मी खेतों फली अटल वीराने में
लक्ष्मी बँट-बँट बढ़ती आने-जाने में
लक्ष्मी का आगमन अँधेरी रातों में
लक्ष्मी श्रम के साथ घात-प्रतिघातों में
लक्ष्मी सर्जन हुआ
कमल के फूलों में
लक्ष्मी-पूजन सजे नवीन दुकूलों में।।

गिरि, वन, नद-सागर, भू-नर्तन तेरा नित्य विहार
सतत मानवी की अँगुलियों तेरा हो शृंगार
मानव की गति, मानव की धृति, मानव की कृति ढाल
सदा स्वेद-कण के मोती से चमके मेरा भाल
शकट चले जलयान चले
गतिमान गगन के गान
तू मिहनत से झर-झर पड़ती, गढ़ती नित्य विहान।

उषा महावर तुझे लगाती, संध्या शोभा वारे
रानी रजनी पल-पल दीपक से आरती उतारे,
सिर बोकर, सिर ऊँचा कर-कर, सिर हथेलियों लेकर
गान और बलिदान किए मानव-अर्चना सँजोकर
भवन-भवन तेरा मंदिर है
स्वर है श्रम की वाणी
राज रही है कालरात्रि को उज्ज्वल कर कल्याणी।

वह नवांत आ गए खेत से सूख गया है पानी
खेतों की बरसन कि गगन की बरसन किए पुरानी
सजा रहे हैं फुलझड़ियों से जादू करके खेल
आज हुआ श्रम-सीकर के घर हमसे उनसे मेल।
तू ही जगत की जय है,
तू है बुद्धिमयी वरदात्री
तू धात्री, तू भू-नव गात्री, सूझ-बूझ निर्मात्री।

युग के दीप नए मानव, मानवी ढलें
सुलग-सुलग री जोत! दीप से दीप जलें।

- माखनलाल चतुर्वेदी

5. आओ फिर से दिया जलाएं

आओ फिर से दिया जलाएं
भरी दुपहरी में अंधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें
बुझी हुई बाती सुलगाएं।
आओ फिर से दिया जलाएं

हम पड़ाव को समझे मंज़िल
लक्ष्य हुआ आँखों से ओझल
वर्त्तमान के मोह-जाल में
आने वाला कल न भुलाएं।
आओ फिर से दिया जलाएँ।

आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज्र बनाने-
नव दधीचि हड्डियां गलाएं।
आओ फिर से दिया जलाएँ

- अटल बिहारी वाजपेयी

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English summary
Diwali Poem in Hindi: Diwali is a major Hindu festival celebrated in India. This festival is celebrated every year between October and November and is also known as 'Deepavali', which means "row of lamps". In today's article, we have brought for you some interesting poems of great poets of India on Diwali.
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