Teachers Day 2022: शिक्षा के पथ को आलोकित करता है शिक्षक

Teachers Day Article: समाज और राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की महत्ती भूमिका को डॉ राधाकृष्णन ने स्वीकारते हुए कहा है कि शिक्षक या गुरू का स्थान भगवान तुल्य होता है।

Teachers Day Article: समाज और राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की महत्ती भूमिका को डॉ राधाकृष्णन ने स्वीकारते हुए कहा है कि शिक्षक या गुरू का स्थान भगवान तुल्य होता है। यही वजह है कि शिक्षकों के प्रति सम्मान का भाव विश्वभर में पाया जाता है। आज का महत्त्वपूर्ण दिन पूरे समाज व राष्ट्र को शिक्षकों की बुनियादी भूमिका के प्रति सजग बनाने को निमित्त है। भारतीय संस्कृति में निर्गुण से लेकर सगुण तक की चिंतनधारा में शिक्षक को ही सर्वोपरि माना गया है। गुरू शिष्य संबंध संसार के प्राचीनतम संबंधों में से एक है, जो आज भी पूर्ण प्रतिष्ठा सहित विद्यमान है। लेकिन बदलते परिवेश व परिस्थितियों में समीकरण कुछ बिगड़ अवश्य गये हैं जिसकी वजह से शिक्षकों की प्रकाशधारा भी बाधित हुई है।

Teachers Day Article: शिक्षा के पथ को आलोकित करता है शिक्षक

जहां एक ओर शिक्षार्थियों से अपने शैक्षिक जीवन काल में ऐसे आचरण की अपेक्षा की जाती है कि वे पूरी तरह से तन-मन से अपने कर्तव्य को पूरा कर शिक्षक के बताये मार्गदर्शन का अनुसरण कर एक योग्य नागरिक बने, वहीं यह भी जरूरी है कि शिक्षक भी अपने शिक्षार्थियों की तमाम समस्याओं का समाधान कर्ता बने, उसे अपने शिक्षार्थी की मनोदशा क्षमता व दिशा से परिचित होना चाहिए। शिक्षक तथा शिक्षार्थी के चारित्रिक, बौद्धिक और आत्मिक विकास के बल पर ही शिक्षा के सर्वातोन्मुखी विकास की कल्पना की जा सकती है। यह सत्य है कि परिवर्तन युग धर्म होता है, लेकिन आवश्यकता इस बात की है कि परिवर्तन को सम्यक रूप से देखकर अपनी सांस्कृतिक विरासत की पहचान को न खोयें, ताकि हमारे राष्ट्र का गौरवशाली भविष्य अतीत से प्रतिभासित होता रहे। शिक्षण कार्य विशिष्ठ जीवन के प्रति प्रतिबद्धता माना गया है।

परन्तु कभी-कभी यह तर्क अप्रासंगिक ही लगता है कि जैसा शिक्षक होगा पैसा ही समाज व शिक्षा होगी, भारतीय चिंतन की कसौटी पर यह बात कही जा सकती है कि, शिक्षण आदशों के प्रति वचनबद्धता है। समाज व राष्ट्र के सुदृढ़ निर्माण हेतु एकमात्र शिक्षक ही संबल माना गया है। भारत जैसे महान देश में योग्य शिक्षकों व आदर्श गुरूओं की परम्परा कत्तई समाप्त नहीं हुई है, क्योंकि शिक्षा व शिक्षार्थियों के प्रति आज भी शिक्षक समर्पित है। भारत के अधिकांश महापुरूष शिक्षक ही रहे हैं। शिक्षक अपने विद्यार्थियों में उच्चकोटि के संस्कार समाहित करने का प्रयास करता है। लेकिन फिर भी आज की परिस्थितियों में अच्छे व योग्य अध्यापकों की भूमिका बहुत सरल नहीं है।

चूंकि योग्य अध्यापक के समक्ष अनेकों चुनौतियां व समस्याएं हैं, उसे समझने व सुनने वाला कोई नहीं है। आज हो यह रहा है कि यदि निष्ठावान अध्यापक पूर्ण लग्न व ईमानदारी से शिक्षण कार्य कर रहा है तो उसे पोंगा पंडित कह कर पुकारा जाता है दुःखद पहलू तो यह भी समाने है कि जो अध्यापक अपनी संस्था, समाज और देश के प्रति निष्ठावान हैं, उन्हें कोई मैडल नहीं मिलता है, क्योंकि उनकी लग्न व निष्ठा कोई देखने वाला नहीं है जबकि पुरस्कार सूची में ऐसे अध्यापकों के नाम होते है जिनकी योग्यता व परिश्रम पर भी शक होता है। एक कर्मयोगी शिक्षक अपने विधानुराग में ही लगा रहता है जो सदैव ज्ञानार्जन करता है व शिक्षा प्रदान करने को ही अपना श्रेष्ठ कर्म समझता है।

जो पथ माता-पिता भी आलोकित नहीं कर पाते उसी पथ को एक शिक्षक सहजता से आलोकित करता है। इसलिए समाज को भी चाहिए कि वह भी शिक्षकांे को समआदर प्रदान करें, जो सदैव उन्हें मिलता रहा है। कहते हैं कि शिक्षा वह ज्ञान है जो व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास करे उसमें जीवन मूल्यों की धारा की ओर मोड़े और विद्यार्थियों की प्रतिमा को चरमोत्कर्ष पर पहुँचाए। हालाँकि, प्रतिभा प्रत्येक में होती है, उसे उभारने व उसमें जागरूकता बढ़ाने व खुलापन लाने का मार्ग तो अध्यापक ही प्रशस्त करता है। लेकिन यह तभी संभव है जब आपस में संबंध आत्मीय हो व उनके बीच कोई आर्थिक कारण न उपजे शिक्षक व शिक्षार्थी के मध्य ऐसा आकर्षण हो कि वे एक-दूसरे के प्रति आकर्षित हो, इसके लिए जरूरी है कि शिक्षक विद्यार्थियों के बीच एक ऐसी अमिट छाप छोड़े कि छात्र भी धैर्य पूर्वक उनकी बातें सुने यह सच है कि किसी भी राष्ट्र की निधि बैंकों में नहीं बल्कि विद्यालयों में होती है।

समाज के प्रबुद्ध नागरिकों को भी यह प्रयास करना चाहिए कि, शिक्षक व शिक्षार्थियों के मध्य रिश्तों की मिठास बनी रहे व वे एक दूसरे को समझने की कोशिश करें, हॉ पहल दोनों ओर से होनी चाहिए। आज समाज व राष्ट्र में शिक्षकों व विद्यार्थियों की भूमिका पर बहस छेड़ने की नितान्त आवश्यकता है, मात्र एक दूसरे पर दोषारोपण करने की बजाय देशहित व आने वाली पीढ़ियों के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए जो हो चुका है, उस और न मुड़कर आगे की ओर उस जटिल समस्याओं पर नजर डाली जाये जिससे भावी पीढ़ी की नयी अच्छी शिक्षा-व्यवस्था भी वाटिका में तैयार हो सके। नये प्रयोगों, भविष्य के झटकों व सर्जनात्मक भूमिका के मध्य शिक्षक-शिक्षार्थियों के बीच तालमेल का वातावरण बन सके।

ऐसी ही दृष्टि दोनों पक्षों को देनी होगी, विद्यार्थियों के लिए मात्र प्रमाण-पत्र व डिग्रियां, शिक्षा के जीवन के वास्तविक पहलूओं व उद्देश्यों से दूर रखने वाली ही साबित न हो, बल्कि उसको रोजगार से जोड़ने वाली होती शिक्षक-शिक्षार्थी के मनोरथ सफल साबित होंगे मेरा विश्वास है कि समाज के सभी वर्ग शिक्षकों के प्रति गंभीर हो चिंतन करेंगे, ताकि शिक्षा व्यवस्था का ढाँचा एक नया रूप लेकर देश में योग्य विद्यार्थियों के जरिये राष्ट्र निर्माण का आधा अधूरा कार्य पूरा करने में सफल होंगे, व शिक्षा की उन्नति होगी। यदि सचमुच हमारे सतत् प्रयास सफल होंगे तो हमारे शाश्वत आदर्श व मूल्य फिर से भारतीय समाज का नवनिर्माण करने में मील का पत्थर साबित होंगे।

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English summary
Teachers Day Article: Accepting the important role of teacher in society and nation building, Dr. Radhakrishnan has said that the place of teacher or guru is equal to God. This is the reason why respect for teachers is found all over the world. Today's important day is meant to make the entire society and nation aware of the basic role of teachers.
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