Ahoi Ashtami 2024: क्यों मनाया जाता है अहोई का त्योहार? जानें इस मनाने के पीछे की असली कहानी

भारत त्योहारों की भूमि है, जहां हर त्यौहार के पीछे कोई न कोई सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यता जुड़ी होती है। ऐसे ही एक महत्वपूर्ण त्योहार का नाम है "अहोई अष्टमी," जिसे खासतौर पर माताओं के द्वारा मनाया जाता है। यह व्रत संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है। अहोई अष्टमी 2024 का पर्व 24 अक्टूबर को मनाया जाएगा।

क्यों मनाया जाता है अहोई का त्योहार? जानें इस मनाने के पीछे की असली कहानी

यह त्योहार दीपावली से ठीक आठ दिन पहले आता है और इसका विशेष महत्व उन महिलाओं के लिए है, जिनके बच्चे होते हैं। इस दिन माताएं दिनभर निर्जला व्रत रखकर अपनी संतान की लंबी आयु और खुशहाल जीवन की कामना करती हैं। अहोई अष्टमी का व्रत खासतौर पर उत्तर भारत के राज्यों में अधिक प्रचलित है, जैसे कि उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, और पंजाब। इस पर्व का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व काफी गहरा है, जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी महिलाएं मनाती आ रही हैं।

अहोई अष्टमी का महत्व

अहोई अष्टमी का व्रत मातृत्व से जुड़ा है। इस व्रत को रखने वाली महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र, स्वास्थ्य, और समृद्धि के लिए भगवान की आराधना करती हैं। इस व्रत को विशेष रूप से संतान की कुशलता के लिए मनाया जाता है और इसे संतान प्राप्ति के लिए भी शुभ माना जाता है। ऐसा विश्वास है कि जो महिलाएं अहोई अष्टमी का व्रत सच्चे मन से करती हैं, उनकी संतान दीर्घायु और सुखी होती है।

अहोई अष्टमी का व्रत कात्यायनी देवी की पूजा के साथ जुड़ा हुआ है, जो मां दुर्गा का एक रूप मानी जाती हैं। साथ ही, इसे अहोई माता या अहोई देवी के रूप में पूजा जाता है, जो माताओं की रक्षा करती हैं और उनके बच्चों को सभी प्रकार की बुरी शक्तियों से बचाती हैं। यह पर्व खासतौर पर माताओं के लिए मनाया जाता है, जो अपने बच्चों के जीवन में सुख और शांति लाने के लिए अहोई माता की पूजा करती हैं।

अहोई अष्टमी की पौराणिक कथा

अहोई अष्टमी के पीछे एक प्रमुख पौराणिक कथा है, जो इस त्योहार के महत्व को और भी बढ़ा देती है। कहा जाता है कि प्राचीन समय में एक साहूकार की पत्नी थी, जिसके सात बेटे थे। एक बार वह दीवाली से पहले अपने घर की सजावट के लिए जंगल से मिट्टी लेने गई। मिट्टी खोदते समय उसके हाथ से गलती से एक साही के बच्चे की मृत्यु हो गई। इस घटना से वह महिला बहुत दुखी हो गई और उसे अपने किए पर पछतावा होने लगा।

जब वह घर लौटी, तो धीरे-धीरे उसके सभी बेटे एक-एक करके मरने लगे। अपने पुत्रों की मृत्यु से दुखी और पश्चाताप करते हुए वह महिला एक साधु के पास गई और पूरी घटना सुनाई। साधु ने उसे सलाह दी कि वह अहोई माता का व्रत रखें और पूरी श्रद्धा से अहोई देवी की पूजा करें। महिला ने साधु के कहे अनुसार अहोई अष्टमी का व्रत रखा, जिसके बाद उसके सभी पुत्र जीवित हो गए। तभी से अहोई अष्टमी का व्रत संतान की सुरक्षा और दीर्घायु के लिए महत्वपूर्ण माना जाने लगा।

अहोई अष्टमी व्रत की पूजा विधि

अहोई अष्टमी के दिन व्रत करने वाली महिलाएं सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करती हैं और व्रत का संकल्प लेती हैं। इस दिन महिलाएं दिनभर निर्जला व्रत रखती हैं और शाम को अहोई माता की पूजा करती हैं। पूजा के लिए दीवार पर अहोई माता की चित्र या प्रतिमा बनाई जाती है, जिसमें एक साही (जंगली जानवर) का चित्र भी बनाया जाता है। इसके साथ ही, तारे का चित्र भी बनाकर उसकी पूजा की जाती है, क्योंकि यह पर्व तारों के उदय से जुड़ा होता है।

पूजा के समय अहोई माता के सामने एक कलश रखा जाता है, जिसमें जल भरा होता है। फिर महिलाएं अहोई माता की आरती करती हैं और व्रत की कथा सुनती हैं। पूजा के बाद, महिलाएं तारों को अर्घ्य देकर व्रत खोलती हैं। कुछ स्थानों पर चंद्रमा को देखकर व्रत खोला जाता है, जबकि कुछ जगहों पर तारे देखने के बाद व्रत तोड़ा जाता है। पूजा के अंत में व्रत करने वाली महिला अपने बच्चों के माथे पर तिलक लगाकर उनके सुख और समृद्धि की कामना करती है।

आधुनिक समय में अहोई अष्टमी का महत्व

आज के समय में भी अहोई अष्टमी का व्रत पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है। हालांकि, कुछ स्थानों पर बदलते समय के साथ व्रत की विधियों में थोड़े बदलाव आए हैं, लेकिन इसका मूल उद्देश्य और भावना आज भी वही है। संतान की सुरक्षा, सुख, और दीर्घायु की कामना के साथ अहोई अष्टमी का व्रत मातृत्व के प्रेम और समर्पण का प्रतीक है।

यह व्रत मातृत्व की शक्ति और निस्वार्थ प्रेम का भी प्रतीक है। यह दिन माताओं के लिए विशेष होता है, क्योंकि वे अपनी संतान की खुशी और सुरक्षा के लिए पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं और अहोई माता की पूजा करती हैं। यह पर्व महिलाओं के जीवन में मातृत्व की जिम्मेदारियों और संघर्षों को भी दर्शाता है, जो वे अपनी संतान की भलाई के लिए करती हैं।

कुल मिलाकर हम यह कह सकते हैं कि अहोई अष्टमी का पर्व एक मातृत्व-केन्द्रित पर्व है, जिसमें महिलाएं अपने बच्चों के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती हैं। यह व्रत उनकी संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए समर्पित होता है। अहोई अष्टमी का त्योहार केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह माताओं के प्रेम, त्याग, और उनकी संतान के प्रति उनके असीमित समर्पण का प्रतीक है। इस प्रकार, यह पर्व हर साल उन सभी माताओं के लिए विशेष होता है जो अपने बच्चों की खुशहाली के लिए अहोई माता की पूजा करती हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।

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English summary
India is a land of festivals, where every festival has some cultural and religious belief behind it. One such important festival is "Ahoi Ashtami," which is especially celebrated by mothers. This fast is observed for the longevity and happiness of the children. The festival of Ahoi Ashtami 2024 will be celebrated on October 24.
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