10 line me Maharaja Hari Singh in Hindi: जम्मू और कश्मीर रियासत के अंतिम शासक महाराजा हरि सिंह भारत के इतिहास में एक अद्वितीय स्थान रखते हैं। उनके शासनकाल में महत्वपूर्ण राजनीतिक उथल-पुथल देखी गई, जिसके परिणामस्वरूप रियासत का नए स्वतंत्र भारत में एकीकरण हुआ।
महाराजा हरि सिंह को लेकर राजनीतिक दृष्टिकोण में भिन्नतायें हैं। हालांकि वे एक महान शिक्षाविद होने के साथ ही एक प्रगतिशील विचारक, एक समाज सुधारक के रूप में भी ऊभरें। उनकी पहचान अन्य रियासतों की राजाओं की तुलना में अभिन्न है। उन्हें एक कुशल शासक बनने का सौभाग्य तो प्राप्त हुआ लेकिन कई मायनों में वे केवल नाम के ही राजा रह गये।
आइए इन 10 लाइनों के माध्यम से जम्मू और कश्मीर रियासत के अंतिम लेकिन उल्लेखनीय शासक महाराज हरि सिंह के जीवन और विरासत के बारे में जानते हैं। (10 line me Maharaja Hari Singh in Hindi)
1. शिक्षा में गहरी रुचि
महाराजा हरि सिंह का जन्म 23 सितंबर 1895 को जम्मू के शाही महल में हुआ था। उन्होंने उस समय से व्यापक स्तर पर शिक्षा प्राप्त की। इसमें अंग्रेजी, फ़ारसी और उर्दू जैसे विषय शामिल थे, जो उनके पालन-पोषण के दौरान अर्जित ज्ञान की विविधता को दर्शाता है। कहा जाता है कि सन् 1909 में उनके पिता के निधन के बाद अंग्रेजों ने हरि सिंह की शिक्षा में गहरी रुचि दिखाई। सिंह ने अपने सैन्य प्रशिक्षण के लिए देहरादून में ब्रिटिश संचालित इंपीरियल कैडेट कोर में दाखिला लेने से पहले अपनी स्कूली शिक्षा राजस्थान के अजमेर में मेयो कॉलेज से प्राप्त किया। जब उनके चाचा प्रताप सिंह की 30 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई, तो हरि सिंह उनके उत्तराधिकारी के रूप में जम्मू-कश्मीर के महाराजा बने।
2. सिंहासन तक का सफर
कहते हैं कि हरि सिंह के जम्मू और कश्मीर रियासत के शासक बनने की कहानी काफी दिलचस्प है। महज 20 वर्ष की आयु में, हरि सिंह के चाचा महाराजा प्रताप सिंह की मृत्यु हो गई। अपने चाचा महाराजा प्रताप सिंह की मृत्यु के बाद वे सन् 1925 में जम्मू-कश्मीर की गद्दी पर बैठे। एक कुशल शासक के रूप में उनके प्रारंभिक वर्ष क्षेत्र के विविध समुदायों के बीच एकता को बढ़ावा देने के प्रयासों से चिह्नित थे। उन्होंने गद्दी संभालते ही कई ऐसे अहम फैसले लिये जो कि वस्तुतः क्रांतिकारी थे। इतिहासकार कहते हैं उन्होंने अपने पहले जन संबोधन में कहा था कि, मैं एक हिन्दू हूं लेकिन अपनी जनता के शासक के रूप में मेरा एक ही धर्म है, जो कि न्याय है। उन्होंने अपने शासनकाल के दौरान जनकल्याण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
3. एक विविध और बहुसांस्कृतिक राज्य
जम्मू और कश्मीर हिंदू, मुस्लिम, बौद्ध और सिखों सहित संस्कृतियों की समृद्ध विरासत वाला एक रियासत था। हरि सिंह के शासनकाल ने इन समुदायों में सांप्रदायिक सद्भाव और विकास को बढ़ावा देने का प्रयास किया। उन्होंने सभी धर्मों का सम्मान किया और सभी धर्मों के त्योहार एवं उत्सवों में भागीदारी दिखाई। यही कारण है कि उन्हें जम्मू और कश्मीर रियासत के अंतिम शासक के साथ ही साथ एक कुशल शासक भी कहा जाता है।
4. राजनीतिक चुनौतियां
सन् 1930 और 1940 के दशक के दौरान, आजादी की लड़ाई में कई रियासतों को राजनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। वह इसलिए क्योंकि अधिक स्वायत्तता और लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व के लिए एक आंदोलन ने गति पकड़ ली थी। शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस इन मांगों के लिए एक प्रमुख आवाज बनकर उभरी। इस दौरान राजनीतिक गलियारों से एक आवाज गूंजने लगी, वो थी कश्मीर कश्मीरियों के लिए। यह मांग कश्मीरी पंडितों द्वारा उठाई गई थी, क्योंकि वे पढ़े-लिखे और नौकरियों के दावेदार के रूप में सामने आये थे।
5. भारत में शामिल होने का निर्णय
1947 में, जब भारतीय उपमहाद्वीप में महत्वपूर्ण राजनीतिक परिवर्तन हुए, महाराजा हरि सिंह को एक महत्वपूर्ण निर्णय का सामना करना पड़ा। पाकिस्तान के कबायली आक्रमण और भारत से सैन्य सहायता के अनुरोध के सामने, उन्होंने विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए, जिससे आधिकारिक तौर पर जम्मू और कश्मीर को भारत के डोमिनियन में एकीकृत किया गया।
दरअसल, जम्मू-कश्मीर के महाराजा ने भारत से मदद की अपील की। उन्होंने भारत से मदद मांगने के लिए अपने प्रतिनिधि शेख अब्दुल्ला को दिल्ली भेजा। 26 अक्टूबर 1947 को, महाराजा हरि सिंह श्रीनगर से जम्मू पहुंचे जहां उन्होंने जम्मू-कश्मीर राज्य के 'इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन' पर हस्ताक्षर किए। दस्तावेज़ की शर्तों के अनुसार, भारतीय क्षेत्राधिकार का विस्तार बाहरी मामलों, संचार और रक्षा तक होगा। दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर होने के बाद, भारतीय सैनिकों को राज्य में हवाई मार्ग से भेजा गया और कश्मीरियों के साथ लड़ाई लड़ी गई। 1948 में, महाराजा हरि सिंह ने प्रधानमंत्री के रूप में शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के साथ एक अंतरिम लोकप्रिय सरकार के गठन की घोषणा की।
6. धारा 370 का महत्व
जम्मू और कश्मीर रियासत का भारत में एकीकरण कुछ शर्तों के साथ हुआ। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 ने जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा दिया, जिससे उसे विदेशी मामलों, रक्षा और संचार को छोड़कर अधिकांश मामलों पर अपना संविधान, ध्वज और स्वायत्तता प्राप्त करने की अनुमति मिली। इस धारा ने जम्मू और कश्मीर रियासत के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
7. बदलते परिदृश्य में विरासत
जम्मू और कश्मीर भारत की 565 रियासतों में से एक था, जिन पर भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम द्वारा प्रदान की गई विभाजन योजना के तहत 15 अगस्त 1947 की आधी रात को ब्रिटिश सर्वोच्चता समाप्त हो गई थी। रियासतों के शासकों को भारत या पाकिस्तान में से किसी एक में शामिल होने का विकल्प दिया गया। कश्मीर के शासक महाराजा हरि सिंह ने तत्काल विकल्प का प्रयोग नहीं किया। इसके बजाय उन्होंने राज्य के विलय पर अंतिम निर्णय लंबित रहने तक भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए स्टैंडस्टिल समझौते का प्रस्ताव पेश किया।
1925 में जम्मू और कश्मीर रियासत के राज सिंहासन में बैठने के बाद महाराज हरि सिंह का शासन आधिकारिक तौर पर 1949 में समाप्त हो गया। उनके बेटे, डॉ करण सिंह ने जम्मू-कश्मीर में सदर-ए-रियासत (राज्य के संवैधानिक प्रमुख) की भूमिका निभाई। पिछले कुछ वर्षों में राज्य में महत्वपूर्ण राजनीतिक परिवर्तन हुए।
8. सेवानिवृत्ति के बाद की गतिविधियां
जम्मू और कश्मीर रियासत के सिंहासन छोड़ने के बाद, महाराज हरि सिंह मुंबई में बस गए और परोपकार और विभिन्न सामाजिक कार्यों पर ध्यान केंद्रित किया। इस क्षेत्र में उनका योगदान समाज के कल्याण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
9. एक युग का अंत
26 अप्रैल, 1961 को महाराजा हरि सिंह का निधन हो गया। उनकी मृत्यु से जम्मू-कश्मीर के इतिहास में एक युग का अंत हो गया, एक ऐसा क्षेत्र जो लगातार महत्वपूर्ण राजनीतिक विकास से गुजर रहा था।
10. एक जटिल ऐतिहासिक चित्र
महाराजा हरि सिंह का जीवन और विरासत क्षेत्र में राजनीति, संस्कृति और इतिहास की जटिल परस्पर क्रिया का प्रमाण है। भारत में शामिल होने का उनका निर्णय, हालांकि विवादास्पद था, अपने समय की जटिल राजनीतिक वास्तविकताओं से प्रभावित था और जम्मू-कश्मीर के आधुनिक इतिहास को आकार देता रहा।