10 Lines on Matangini Hazra in Hindi: देश के लिए मर मिटने वाले कई स्वतंत्रता सेनानियों की गौरव गाथा आपने कहानियों में पढ़ी और सुनी होगी। आज हम भारत की आजादी की लड़ाई में सक्रिय रूप से भाग लेने वाली ऐसी ही अदम्य साहस का परिचय देने वाली एक अद्वितीय महिला स्वतंत्रता सेनानी मातंगिनी हाजरा की कहानी जानेंगे।
मातंगिनी हाजरा को प्यार से "गांधी बूढ़ी" के नाम से जाना जाता है। गांधी बूढ़ी का नाम उन्हें इसलिए दिया गया क्योंकि गाँधी जी के जीवन, कार्य और उनकी बातों से मातंगिनी हाजरा काफी प्रभावित थीं। स्वतंत्रता आंदोलन में जम कर हिस्सा लेने वाले वे केवल एक साधारण महिला नहीं थीं; बल्कि वे भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान साहस, दृढ़ संकल्प और अटूट देशभक्ति का प्रतीक भी थीं। स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में गहराई से अंकित उनकी विरासत से आज भी लोग प्रेरणा लेते हैं और उन्हें याद करते हैं।
देश में आयोजित होने वाले विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में इतिहास के विषय पर देश के स्वतंत्रता सेनानियों की कहानियों पर लेख या निबंध लिखने जैसे प्रश्न पूछे जाते हैं। यूपीएससी, एसएससी, राज्य पीएससी, रेलवे, आर्म्ड फोर्स समेत अन्य कई परीक्षाओं में मातंगिनी हाजरा की जीवनी पर ऐसे ही प्रश्नों की तैयारी के लिए आप इस लेख से सहायता ले सकते हैं। आइए इस लेख जानें महिला निडर स्वतंत्रता सेनानी मातंगिनी हाजरा के जीवन के बारे में विस्तार से-
10 प्वाइंट्स से जानें मातंगिनी हाजरा की जीवनी |10 Lines on Matangini Hazra in Hindi for UPSC notes
1. कैसे शुरू हुई साधारण परिवार से स्वतंत्रता सेनानी तक की यात्रा
भारतीय स्वतंत्रता सेनानी मातंगिनी हाजरा का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ। मातंगिनी हाजरा का जन्म 1870 में तामलुक के पास होगला गांव में हुआ था। उस वक्त यह बंगाल प्रेसिडेंसी के अधीन हुआ करता था। मातंगिनी हाजरा एक गरीब किसान की बेटी थी, जिन्होंने बाल्य काल से ही बदहाली और तंगी का माहौल देखा था। पारिवारिक तंगी और खराब हालातों के कारण वे अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकीं और 12 वर्ष की कम आयु में ही उनकी शादी हो गई। मातंगिनी हाजरा के पति का नाम त्रिलोचन हाजरा था। पीढ़ा से भरे मातंगिनी हाजरा का जीवन तब बदल गया जब 18 वर्ष की आयु उनके पति की मृत्यू हो गई और इस अल्पायु में वे निःसंतान विधवा हो गईं। उनके ससुर का गांव तामलुक थाने का अलीनान था।
2. देश सेवा के लिए समर्पण
मातंगिनी हाजरा ने जीवन के सभी कठिन क्षणों को पार कर देश सेवा के लिए खुद को समर्पित कर दिया। समय के साथ वे गांधीवादी विचारधारा के प्रति आकर्षित और प्रभावित होने लगी और एक गांधीवादी के रूप में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के कई आंदोलनों में न केवल सक्रिय रूप से भाग लिया बल्कि एक देश प्रेमी के रूप में कई आंदोलनों में अहम योगदान दिया। एक निडर स्वतंत्रता सेनानी के रूप में मातंगिनी हाजरा ने उग्र राष्ट्रवाद को अपनाया और देश को आजादी दिलाने की राह पर चल पड़ी।
3. महात्मा गांधी के आदर्शों से ली प्रेरणा
भारत में उग्र राष्ट्रवाद के युग में जन्मी मातंगिनी हाजरा का जीवन 1905 में उस वक्त परिवर्तन आया, जब उन्होंने महात्मा गांधी के आदर्शों से प्रेरणा लेते हुए उनके स्वतंत्रता के मुद्दे को अपनाया और आजादी के लिए लंबी लड़ाई लड़ने का निर्णय लिया। उनका निवास स्थान मिदनापुर क्रांतिकारी उत्साह का केंद्र बन गया। वहां से उन्होंने कई स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया। गौरतलब हो कि मिदनापुर वह जगह है, जहां महिलाएं स्वतंत्रता के संघर्ष में सक्रिय रूप से भाग ले रही थीं।
4. हाजरा की निडरता और असहयोग आंदोलन
वर्ष 1932 में असहयोग आंदोलन के दौरान हाजरा ने निडर होकर ब्रिटिश उत्पीड़न के प्रतीक अन्यायपूर्ण नमक कानून को तोड़ा। सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने और अंग्रेजों के खिलाफ जोरदार आंदोलन करने के लिए जब जिले में बेलमैन कर-रोको आंदोलन शुरू हुआ तो उस जुलूस के दौरान उनकी गिरफ्तारी हुई। लेकिन बिना किसी डर के, उन्होंने न्याय के लिए अपनी लड़ाई जारी रखी। उन्हें छह महीने की कैद की सजा सुनाई गई और बहरामपुर जेल भेज दिया गया।
5. कारावास के बाद और अधिक दृढ़निश्चयी बनीं हाजरा
मातंगिनी हाजरा को बहरामपुर में छह महीने के लिए कैद में रखा गया। यहां तक कि कारावास भी उनकी भावना को दबा नहीं सका। छह महीने का कारावास पूरा करने के बाद, वह और अधिक मजबूत और दृढ़निश्चयी बनकर सामने आईं। इस वीरांगना महिला ने असहयोग आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होकर आजादी की लड़ाई में अपना नाम इतिहास के पन्नों पर सुनहरे अक्षरों में अमर कर लिया। उस समय पूरे भारत में ब्रिटिश विरोधी आंदोलन में मेदिनीपुर ने एक अलग ही रूप धारण कर लिया था।
6. आत्मनिर्भरता और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार
जेल से रिहा होने के बाद, अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने और स्वतंत्रता की लड़ाई के मुद्दे के प्रति हाजरा की अटूट प्रतिबद्धता तब दिखी जब वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुई। उन्होंने उस दौरान आत्मनिर्भरता और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के प्रतीक चरखे को अपनाया। उनमें समर्पण, त्याग और आत्मविश्वास भरा हुआ था। 1933 में, सीरामपोर में एक उपविभागीय कांग्रेस सम्मेलन के दौरान, मातंगिनी हाजरा पर पुलिस ने खूब लाठियां बरसाई। इस लाठीचार्ज के बीच वे निडर होकर अपने दृढ़ संकल्प के साथ डटी रहीं।
7. कई संक्षिप्त कारावास
सविनय अवज्ञा आंदोलन में उनकी भागीदारी के परिणामस्वरूप कई संक्षिप्त कारावास हुए। कारावास की इन अवधियों के दौरान वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गईं और सक्रिय रूप से अपने स्वयं के खादी कपड़े कातने में संलग्न होकर गांधी के मार्ग का अनुसरण किया। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान, 73 वर्षीय मातंगिनी हाजरा ने निडर होकर लगभग 6,000 प्रदर्शनकारियों के एक बड़े जुलूस का नेतृत्व किया, जो तमलुक पुलिस स्टेशन पर कब्जे के लिए रैली कर रहे थे।
8. अत्याचारी ब्रिटिश शासन के सामने नहीं झुकी मातंगिनी हाजरा
29 सितंबर, 1942 को हजारों लोगों ने अलग-अलग दिशाओं से तामलुक पर चढ़ाई की और पुलिस स्टेशन और अदालत को घेरने के लिए एक साथ मार्च किया। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ कई नारें भी लगायें जैसे, अंग्रेज भारत छोड़ो। कोर्ट परिसर के बाहर दमनकारी अंग्रेजी सेना भी तैयार होकर इंतजार कर रही थी। घबराए सैनिकों ने जुलूस को तितर-बितर करने के लिए गोलियां चला दी। अत्याचारी ब्रिटिश शासन के सामने झुकने से इनकार करते हुए, हाजरा ने निडर होकर मार्च किया। उनका हर कदम आजादी के लिए तरस रहे राष्ट्र की आकांक्षाओं को प्रतिध्वनित कर रहा था। यह एक ऐसा दिन था जिसे इतिहास में गर्व के साथ लिखा गया। एक ऐसा दिन जब एक कमजोर, बुजुर्ग महिला ने अडिग बहादुरी के साथ ब्रिटिश भारतीय पुलिस की ताकत का सामना किया।
9. राष्ट्रीय ध्वज को नहीं दिया गिरने
जब घायल स्वयंसेवक तितर-बितर हो गए तो 73 वर्षीय महिला मातंगिनी आगे आईं। उन्होंने झंडा फहराकर जुलूस का नेतृत्व किया। सीने पर अदम्य शक्ति और दाहिने हाथ में लहराता हुआ राष्ट्रीय ध्वज लिए वे बंदेमातरम के नारें लगाती रहीं। इस बार सेना ने मातंगिनी का झंडा थामकर फायरिंग की। लेकिन मातंगिनी ने राष्ट्रीय ध्वज को जमीन पर गिरने नहीं दिया। लहूलुहान हालत में उन्होंने उसे दूसरे हाथ से झंडा उठाया। इस महान देशभक्ति और ऐसी ओजस्वी प्रेरणा को ब्रिटिश सरकार सहन नहीं कर सकी। ब्रिटिश सेना ने मातंगिनी की छाती में गोली मार दी। दोनों हाथों में राष्ट्रीय ध्वज थामे और बंदेमातरम के नारे लगाते हुए मातंगिनी भूमि पर गिर पड़ी।
10. साहस और देश प्रेम की गाथा
मातंगिनी हाजरा का जीवन केवल घटनाओं की एक शृंखला नहीं था; यह साहस और देश प्रेम की गाथा समान है। उनकी कहानी यह याद दिलाती है कि आज़ादी की लड़ाई में लड़ने और बलिदान देने वाले स्वतंत्रता सेनानियों की पहचान ना तो उनके लिंग से होती थी और ना ही उनकी से होती थी। दमनकारी अंग्रेजों के अत्याचार के सामने वे डटकर खड़ी रहीं और लाखों लोगों के लिए आशा की किरण बनीं। मातंगिनी हाजरा ने भारत की आजादी के लिए बहादुरी से लड़ाई लड़ी। उनका बलिदान हमें सदियों तक प्रेरित करता रहेगा। इसके साथ ही यह हमें उस ताकत की भी याद दिलाता रहेगा, जब किसी खास उद्देश्य के लिए हर भारतीय धर्म, समुदाय, लिंग, उम्र आदि बातों से ऊपर ऊठकर एकजुट होते हैं।
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