भारत में आजादी को लेकर लड़ाई तो लंबे समय से हो रही थी लेकिन 1857 में इस क्रांति ने आजादी के संघर्ष को एक नया महत्व दिया। 1857 में कई सेनानीयों ने इस क्रांति में भाग लिया। 1857 में शुरू हुई क्रांति दिल्ली से मेरठ और कानपुर से लखनऊ तक तेजी से फैल गई। इस क्रांती में पुरुषों के साथ महिलाओं ने भी बढ़-चढ कर हिस्सा लिया। उसी समय की वीरांगनाओं में एक थी बेगम हजरत महल जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ एक भीषण लड़ाई लड़ी। मुहम्मदी खानुम के तौर पर 1820 में जन्मी बेगम को राजा ताजदाए-ए-अवध ने अपनी उपपत्नी के रूप में स्वीकरा किया। अवध पर अंग्रेजों का कब्जा होने पर उनके पति अवध के शासक को लखनऊ भेज दिया गया लेकिन बेगम अपने बेटे के साथ अवध में ही रहीं और अंग्रेजों के खिलाफ डटी रही। आइए जाने बेगम हजरत महल के जीवन से जुड़े कुछ तथ्यों के बारे में।
- बेगम हजरत महल का जन्म 1820 में फैजाबाद के अवध में मुहम्मदी खानुम के तौर पर हुआ था। वह पेशे से एक वैश्या थी। जिन्हें उनके माता-पिता द्वारा शाही एजेंटों को बचा गया। उन्होंने शाही हरम में खवासिन के रूप में प्रवेश मिला। जहां उन्हें महक की परी के नाम से जाना जाता था।
- अवध के राजा ताजदार-ए-अवध वाजिद अली शाह द्वारा उन्हें उपपत्नी के रूप में स्वीकारा गया और वह बेगम बनी। बेटे के जन्म बाद उन्हें 'हजरत महल' की उपाधि दी गई और वह बेगम हजरत महल के नाम से जानी गई।
- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1856 में अवध पर कब्जा कर लिया था। उन्होंने 1857 का विद्रोह शुरू होने पर अपने नाबालिक बेटे को अवध का शासक बनाया और उसके संरक्षक के रूप में सत्ता संभाली।
- हजरत की अंग्रेजों के खिलाफ कई शिकायतें ये थी कि उन्होंने सड़को आदि को बनाने के नाम पर हमारे मंदिर और मस्जिदों को ध्वस्त किए, सूअर खाना और शराब पीना, चर्बी वाले कारतूसों को काटना, मिठाई के साथ सुअर की चर्बी को मिलाने आदि शामिल है।
- हजरत के लिए सबसे बड़ झटका वो था जब कानपुर में अंग्रेजों ने जीत हासिल की, क्योंकी इससे उनकी योजना कमजोर हो गई। बाद में हजरत ने अग्रेजों के खिलाफ एक भीषण लड़ाई की लेकिन उनकी स्थिति कमजोर पड़ गई।
- मार्च में अंग्रेजों ने सर कॉलिन कैंपबेल के नेतृत्व में लखनऊ के खिलाफ अभियान शुरू किया। लखनऊ पर कब्जा करने के लिए नेपाल के महाराजा जंग बहादुर द्वारा 3000 गोरखा भेजे गए थे। इस प्रकार 19 मार्च 1858 तक मूसाबाग, चार बाग और केसर बाग पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया।
- लगातार बिगड़ती स्थिति को देखते हुए बेगम अपने समर्थकों, बेटे बिरजिस कादिर और नाना साहब के साथ नेपाल भाग गई।
- 15 जनवरी 1859 को जनरल बुद्री द्वारा एक पत्र भेजा गया, जिसमें कड़े शब्दों में लिखा था कि- "यदि आप मेरे क्षेत्र और सीमा के भीतर बने रहें या आपने शरण मांगी तो गोरखा सैनिक निश्चित रूप से आप पर हमला करेंगे।
- थोड़ समय के बाद नेपाली अधिकारियों ने अपना इस निर्णय को बदला और उन्हें इस शर्त के साथ शरण दी गई कि बेगम विद्रोही नेताओं या भारत के लोगों के साथ किसी भी प्रकार का कोई संवाद नहीं करेंगी।
- इंग्लैंड की रानी ने ब्रिटिश भारत में लोगों को खुश करने के लिए एक घोषणा जारी की। इस घोषणा की प्रतिक्रिया के रूप में, बेगम ने भी एक प्रति-घोषणा जारी करते हुए भारत के लोगों को इंग्लैंड की रानी द्वारा किए इन वादों पर विश्वास न करने की चेतावनी दी।
- 1877 में बेगम ने भारत वापस लौटने का प्रयत्न किया लेकिन ब्रिटिष सरकार द्वारा इस पर आदेश जारी किया गया। जिसमें ब्रिटिश भारत में वापस प्रवेश के लिए बिरजिस कादिर या उनकी मां बेगम हजरत महल द्वारा किसी भी प्रकार के अनुरोध पर कोई विचार नहीं किया जाएगा।
- इन कारण की वजहा से बेगम हजरत महल भारत वापस नहीं लौट पाईं, और उन्हें स्थायी रूप से नेपाल में ही रहना पड़ा। 1879 में नेपाल में ही उनकी मृत्यु हो गई।
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English summary
Begum Hazrat Mahal is One of the biggest freedom fighter of 1857 revolt. She has as very important role in this Revolution.
Story first published: Wednesday, August 3, 2022, 17:05 [IST]