भारत हर साल 5 सितंबर को राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षक दिवस मनाता है। 5 सितंबर को ही 1888 में भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति डॉ सर्वप्लली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था। 1966 में उनके जन्मदिन पर जब उनके कुछ दोस्तों ने उनसे जन्मदिन मनाने की बात की, तो उन्होंने इसे दिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाने को कहा। तभी से उनका जन्मदिवस भारत में शिक्षक दिवस के तौर पर मनाया जाता है। वह शिक्षा के समर्थक थे। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा को लेकर भी बात की थी। उनके मुख्य कार्यो में तुलनात्मक धर्म और दर्शन पर कई प्रोजेक्ट शामिल हैं।
सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत के महान दार्शनिक थे। उनके कार्यों के लिए उन्हें भारत और पश्चिम के बीचे सेतु-निर्माता के तौर पर भी जाना जाता है। इसी प्रकार भारत और शिक्षा में उनके योगदान के लिए उन्होंने 1954 में भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। उनके पूरे जीवन में उन्हें कई प्रतिष्ठित उपाधियों से नवाजा गया है। इसी के साथ उन्होंने बुजुर्ग व्यक्तियों की जीवन को बेहतर बनाने के लिए भी काम किया और हेल्पेज इंडिया की सह-स्थापना में मदद की।
राधाकृष्णन का मानना था कि शिक्षकों का दिमाग देश में सबसे अच्छा दिमाग होना चाहिए। क्योंकि शिक्षक समाज में बदलाव लाने की ताकत रखते हैं। सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने अपनी सारी पढ़ाई पूरी करी और 1918 में एक दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर के तौर पर छात्रों को शिक्षा प्रदान की थी। डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जीवन में शिक्षा और शिक्षकों का बहुत महत्व था। इसी के परिणामस्वरूप उनका जन्मदिवस आज शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। आइए उनके जीवन से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों के बारे में जाने।
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जीवन से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
1. नाइटहुड
डॉ राधाकृष्णन द्वारा शिक्षा में उनके योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से नवाजा गया है। उन्हें उनके अध्यापने के लिए नाइटहुड की उपाधि 1931 में ब्रिटिश सम्राट किंग जार्ज द्वारा दी गई थी। इसी के तीन दशक के बाद उन्हें ब्रिटेन के शाही लोगों द्वारा 'ऑर्डर ऑफ मेरिट से भी सम्मानित किया गया था। साल 1954 में उन्हें भारत के सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।
2. टेम्पलटन पुरस्कार
1975 में राधाकृष्णन को प्रसिद्ध 'टेम्पलटन फाउंडेशन' द्वारा 'टेम्पलटन पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था। राधाकृष्णन इस पुरस्कार के माध्यम से जीनती भी राशि अर्जित की थी वह पूरी की पूरी 'ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय' को दान कर दी।
3. राधाकृष्णन के पिता उनकी शिक्षा के विरोधी थे
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 में तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश की सीमा के पास बसे एक गाँव में हुआ था। उका परिवार आर्थिक रूप से पिछड़े हुआ था। उसके पिता चाहते थे कि वह पढ़ाई करने के बजाय मंदिर में पुजारी बने। अपने पिता की इच्छा के खिलाफ जाकर उन्होंने थिरुथानी के एक स्कूल में दाखिला लिया और अंत में सबसे अधिक पढ़े-लिखे भारतीयों में से एक बन गए।
4. उनके छात्रों द्वारा उन्हें मिली एक प्यारी श्रद्धांजलि
डॉ राधाकृष्णन मैसूर विश्वविद्यालय में एक शिक्षण थे। शिक्षक के रूप में अपे कार्यकाल के बाद वह अपने अगले कार्य के लिए कलकत्ता जा रहे थे। उनको विदाई देने के लिए उनके प्रिय छात्रों ने उन्होंने फूलों की गाड़ी में बैठाकर रेलवे स्टेशन पहूंचाया। इस फूलों से सजी गाड़ी को उनके छात्रों द्वारा शारीरिक रूप से खींच कर उसके स्थान पर पहुंचाया गया था।
5. एचएन स्पाल्डिंग में सर्वपल्ली राधाकृष्णन का भाषण
इंग्लैंड में सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने एक भाषण दिया था। उनके इस भाषणों को सुनने के बाद 20वीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध अंग्रेजी विद्वान, एच.एन. स्पाल्डिंग, उनके बहुत बड़े प्रशंसक बने। डॉ. राधाकृष्णन के शब्दों ने स्पाल्डिंग को 'पूर्वी धर्म और नैतिकता' के सम्मान में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में एक चेयर शुरू करने के लिए प्रेरित किया। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय का यह प्रभाग केवल उन लोगों के लिए अनुदान प्रदान करता है जो धार्मिक अध्ययन पर शोध करने की इच्छा रखते हैं।
6. राधाकृष्णन का दर्शनशास्त्र
डॉ. राधाकृष्णन भारत के एक महान दर्शनशास्त्री थे। उन्होंने दर्शनशास्त्र पर कई किताबें लिखी थीं। इसी के साथ मद्रास विश्वविद्यालय में उन्होंने इस विषय को पढ़ाया भी था। उन्हें भारत के अब तक के सर्वश्रेष्ठ दार्शनिकों में से एक के रूप में जाना जाता है। प्रसिद्ध ब्रिटिश दार्शनिक और इतिहासकार बर्ट्रेंड रसेल ने एक बार कहा था कि राधाकृष्णन को भारत के राष्ट्रपति के रूप में नियुक्त किया जाना 'दर्शन के लिए सबसे बड़ा सम्मान' होगा।
7. सोवियत संघ और यूनेस्को के साथ उनका प्रयास
डॉ. राधाकृष्णन को सोवियत संघ में भारत के राजदूत के तौर पर कार्य कर रहे थें। यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य था। कम ही लोग जानते हैं कि उन्हें यूनेस्को के कार्यकारी बोर्ड का अध्यक्ष भी नियुक्त किया गया था।
8. जातिवाद के खिलाफ उचित जवाब
माना जाता है कि लंदन में एक डिनर के दौरान एक ब्रिटिश नागरिक ने भारतीयों पर एक टिप्पणी करते हुए कहा था कि सभी भारतीय काली चमड़ी वाले हैं। डॉ. राधाकृष्णन ने इस टिप्पणी के जवाब में धीरे से उत्तर दिया कि "भगवान ने एक बार रोटी के एक टुकड़े को जरूरत से ज्यादा पकाया और इसे तथाकथित 'नीग्रो' के रूप में जाना गया। रोटी को पकाने के लिए भगवान का अगला प्रयोग अधपका था, जिसे 'यूरोपीय' कहा जाता था। उसके बाद भगवाने ने एक अंतिम प्रयोग करने की कोशिश की जहां उन्होंने रोटी को आदर्श सीमा तक पकाया और इसे 'भारतीय' कहा गया।
9. राधाकृष्णन बनारस हिंदू विश्वविद्यालय
राधाकृष्णन को 1939 में 'बनारस हिंदू विश्वविद्यालय' के वाइस चानसलर के रूप में नियुक्त किया गया था। उस दौरान देश ब्रिटिश शासन के अधीन था। ब्रिटिश गवर्नर सर मौरिस हैलेट विश्वविद्यालय परिसर को एक युद्ध अस्पताल में बदलना चाहते थे, जो महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए 'भारत छोड़ो आंदोलन' का जवाब देने का तरीका था। डॉ. राधाकृष्णन ने हैलेट के इस राजनीति विचार का कड़ा विरोध किया। इसकी वजह से विश्वविद्यालय को मिल रही वित्तीय सहायता बंद हो गई। डॉ. राधाकृष्णन ने विश्वविद्यालय के कामकाज को बनाए रखने के लिए व्यक्तिगत रूप से देश भर के परोपकारी और विचारकों से धन जुटाने के लिए संपर्क करना शुरू किया।
10. राज्यसभा में उनका मनोरंजक व्यवहार
कई लोगों ने दावा है कि जब संसद भवन के अंदर का माहौल राजनीतिक नेताओं के आपस में बहस करने की वजह से अराजक हो जाता है तो डॉ राधाकृष्णन गर्म माहौल को असामान्य तरीके से शांत किया करते थें। वह लोगों के भीतर अनुशासन पैदा करने के लिए भगवद गीता या बाइबिल के छंदों का पाठ किया करते थे। इसी को स्थिति को देख कर भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि 'डॉ. राधाकृष्णन ने संसद के सत्र को पारिवारिक समारोहों जैसा बना दिया।