रक्षा बंधन का त्योहार हर साल श्रावण पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस वर्ष रक्षा बंधन 2021 में 22 अगस्त को मनाया जाएगा। रक्षा बंधन का त्योहार भाई बहन के प्यार का प्रतिक है, जिसे राखी का त्योहार भी कहा जाता है। रक्षा बंधन पर बहन भाई की कलाई पर राखी बंधती और उसके सुखी जीवन की प्राथना करती है। इसके साथ ही बहन बहन से अपनी सुरक्षा का वचन लेती है। रक्षा बंधन हिन्दुओं को प्रमुख त्योहार है, जिसे पूरे भारत समेत अन्य देशों में भी मनाया जाता है। स्कूलों में बच्चों के लिए रक्षा बंधन पर निबंध लिखने को दिया जाता है। ऐसे में अगर बच्चों को राखी पर निबंध लिखना है तो यह रक्षा बंधन पर लेख आपके लिए मददगार होगा। आइये जानते हैं राखी रक्षा बंधन पर निबंध कैसे लिखें?
रक्षा बंधन पर निबंध कक्षा 5, 6, 7, 8 और 9वीं तक के लिए
भारत में रक्षा बंधन का त्योहार भाई और बहन के बीच के बंधन को मजबूत करने वाला पर्व है। रक्षा बंधन का अर्थ है रक्षा का बंधन, यह का पर्व हर साल श्रवण मास पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन बहन अपने भाई की रक्षा के लिए उसकी कलाई पर 'राखी' नामक पवित्र धागा बांधती है। श्रावण मास की पूर्णिमा पर मनाया जाने वाला रक्षा बंधन भारत का सबसे लोकप्रिय त्योहार है। राखी के त्योहार को लेकर कई प्राचीन कहानियां प्रचलित में हैं। अगर हम इतिहास में देखें तो भाई और बहन के बीच प्यार का प्रतिक रक्षा बंधन युद्ध में जीत का भी प्रतिक है।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन काल में देवताओं और राक्षसों के बीच महायुद्ध हुआ, जो लगातार 12 साल तक चला। इस युद्ध के अंत में देवताओं की हार और राक्षसों की जीत हुई। इस जीत के बाद राक्षसों ने देवताओं के राजा-इंद्र के सिंहासन पर कब्जा कर लिया। उनका पाप लगातार बढ़त गया और उन्होंने तीनों लोगों पर भी कब्जा कर लिया। जब तीनों लोकों में देवता की हार हुई तो, सभी देवता मिलकर देवताओं के आध्यात्मिक गुरु बृहस्पति देव के पास गए और उनसे मदद मांगी।
गुरु देव बृहस्पति ने देवराज इंद्रा को जीत के कुछ मंत्र दिए और उनका जाप करने को कहा, जिससे उनको सुरक्षा मिल सके। बृहस्पति ने इंद्रा को पूजा का पूरा विधान बताया और कहा की श्रावण मास में पूर्णिमा के से दिन मंत्रों के जाप की प्रक्रिया शुरू करें। बृहस्पति देव ने इंद्रा को एक अभिमंत्रित ताबीज दिया। इस ताबीज को इंद्रा की पत्नी शची 'इंद्राणी' ने उनकी दाहिनी कलाई पर बांध दिया। जिसके बाद इंद्रा देव ने बृहस्पति देव के दिए मंत्रों का विधिपूर्वक जाप शुरू किया।
पूजा-पाठ पूरी करने के बाद इंद्र को भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश का आशीवार्द मिला। इन आशीर्वादों के कारण, भगवान इंद्र ने राक्षसों को युद्ध में हरा दिया और तीनों लोकों पर देवताओं का आधिपत्य पुनः स्थापित किया। इस जीत के बाद हर वर्ष श्रवण मास की पूर्णिमा को रक्षा बंधन का त्योहार मनाया जाने लगा। वर्तमान में, रक्षा बंधन का त्योहार बही बहन के प्रेम के साथ साथ बाजारवाद का भी पर्याय बन गया है। भाई बहन के मन के प्यार पर अब बाजारवाद हावी है, हर तरफ केवल रक्षा बंधन केवल दिखावा होता जा रहा है। इस सम्स्य को समझना होगा और रक्षा बंधन के पवित्र त्यौहार को उसका मूल स्वरुप देना होगा।
रक्षा बंधन पर निबंध कक्षा 10, 11 और 12 तक के लिए
जी हां रखाबंधन का पर्व आते ही भाई बहन का प्यार अपनापन पुरानी यादें सब ताजा हो जाती है। क्योंकि यह ऐसा बंधन जो रिश्ते को रिचार्ज कर देता है। अगर भाई बहन का रिश्ता इस पवित्र बंधन में सहेजकर रखा जाए तो दोनों एक दूसरे से चाहे कितने ही दूर रहे, पर दिलों में दूरियां न आयें, ये ही रक्षाबंधन का पर्व कहलाता है। बस रिश्तों को निभाने के लिए धैर्य समझदारी अपनापन प्यार और त्याग की आवश्यकता होती है। बस इन प्यार के बंधन को कसकर बांधकर प्यार के बंधन में बाधने के लिए इन सबको एक माला में पिरोना ही रक्षा बंधन कहलाता है। यह वजह है कि इस युग में चाहें हम कितनी ही तरक्की कर लें पर इस त्यौहार की वजह से हम एक दूसरे से जुड़े रहते हैं।
रखाबंधन के दिन बहन भाई के लिये एक थाली में मिठाई नारियल फल राखी और चावल कुमकुम रखकर उसका तिलक करके उसको मिठाई खिलाकर अपने हाथों से रेशम की डोरी उसके हाथ में बांधती है। इस तरह सारे भारत में राखी का त्यौहार बहन भाई की कलाई पर रखाी बांधकर उसे अपने प्यार में बंधती है। भाई को वह राखी हमेशा अपने बहन की याद और रक्षा करने का वचन याद दिलाती है। इस तरह यह त्यौहार पूरे रीति रिवाज के साथ मनाया जाता है और जाता रहेगा। राखाी का त्यौहार निश्छल प्रेम का प्रतीक है। एक दूसरे से किये हुये वादें निभाने का प्रतीक है। अपनी भूली बिसरी का यादों का तरोताजा करने का दिन है। कुछ नये वादे करने का भाई बहन का एक अपनेपन का पवित्र दिन है। इस रिश्ते में शंका की कोई गुंजाईश नही रहती।
यह अटुट प्रेम का बंधन है। जो एक दूसरे की परवाह करना सिखाता है। एक दूसरे के दूख दर्द को दूर करने का संकल्प और रक्षा और वादों का प्यार करने का त्यौहार है। भारतवर्ष अनेक रीतिरिवाजो संस्कति त्यौहार का देश कहा जाता है। तो सच है त्यौहार के कारण हम एक दूसरे से जुड़े हुए रहते हैं। त्यौहार एक ऐसा जरिया है, जो कुछ न कुछ नया संदेश लेकर आता है। उनमें राखी का पर्व एक दूसरे की भावनाओं को समझने यह पवित्र त्योहार है। रक्षाबंधन का त्यौहार हर वर्ष बडे ही धूमधाम से हमारे देश में मनाया जाता है। यह हमारे लिये एक नया पैगाम संदेश लेकर नये वादे करनेके संकल्प के रूप में आता है। आज के आधुनिक युग में दिखावा कुछ ज्यादा हो गया, इससे बचें। केवल रेशम की डोरी बांधने से रक्षा बंधन नही हो जाता बल्कि उसमें प्यार की मिठास जरूरी है, यही तो प्यार का प्रतीक है।
कॉलेज छात्रों के लिए रक्षा बंधन पर निबंध
राखी के त्यौहार का महत्व तब और बढ़ जाता है, जब बहन ससूराल से अपने मायके में राखी के लिये आती है। वह अपनी पुरानी सखी सहेलियों से झूलों की महक और अपनी पूरानी यादों को और अपने पवित्र रिश्ते को तरोताजा करने के लिए चली आती है। राखी का त्यौहार हमे एक सूत्रता में बांधने का प्रयास करता है। भाई को भी माता-पिता की तरह ही एक जिम्मेदारी निभाने का दर्जा दिया जाता है। अब कह सकते है कि एक अभिभावनक के रूप में देखा जाता है। माता पिता को जीवन भर साथ नही रहते परन्तु भाई बहन दोनों इस बंधन से बधंकर एक दूसरे से जुडे हुये रहते है और आज के इस दिन को भाई बहन भूल नही पाते बहन भले ही ससूराल चली जाती है। लेकिन अपने मायके अपने सखी सहेली भाई भाभी माता-पिता को नही भूल पाती, चाहे कितने ही गिले शिकवे हो जाए। यही तो राखी का त्यौहार कहलाता है। अगर बहन मायके जाने में असमर्थ हो तो वह किसी न किसी प्रकार से राखी जरूर भेजती है। यही परम्परा है तो निभाती है एक धागा ही तो है जो प्यार को महसूस कराता है। इसे अटूट सम्बन्ध को कोई नहीं तोड़ सकता है।
सावन का महीना आते ही शिव की आराधना का पर्व शुरू जाता है और जगह जगह मेले लगते है। इस सावन के महीने में हरियाली चारों और फैल जाती है और इस खुशनुमा मौसम में चार चांद लग जाते है। गांवों में आम की डाली पर झूले लगाये जाते है और सखी सहेलियों सावन की गीत गाकर इस त्यौहारों का आंनद उठाती है। हठ खेलियां करती है, सावन का महीना आते ही मायके की यादें तरोताजा होने लगती है। बहन इस सावन के मौके पर पड़ने वाले त्यौहार राखी का का बेसब्री से इंतजार करने लगती है और मायके पहुच जाती है। धार्मिक दृष्टि से देखा जाय तो यह राखी का पर्व एक महत्वपूर्ण पर्व है। जब देवता तारका सूर के वध के बाद माता पार्वती अैर शंकर जी के पास जाकर वरदान मांगते है और कहते है माता हमें कोई ऐसाा उपाय बताये जिससे हमें कोई परेशान ना करें और हमें अपने सिंहासन से कोई अलग न कर करें। हम आपको जन्म-जमान्तर तक अपने मन में आपको स्मरण करते रहे। अपने हृदय में आपको बसाये रखें तब माता पार्वती इंद्र और अन्या देवताओं कलाई पर अपना रखा सूत्र बांधती और फिर सभी माता पार्वती को रक्षा सूत्र यानि इस डोरी रक्षा करने कावचन देते है इस मार्यादा का हम पालन करेंगे।
रक्षाबंधन का अर्थ दिनों-दिन बदलता जा रहा है और आर्थिक रूप से त्योहार को देखा जाता है। अब शहरीकरण के कारण अैर समय की कमी के कारण प्यार के इस बंधन में धीरे-धीरे मिठास कम होती जा रही है और एक -दूसरे को दूर करती जा रही है। आज राखी में अमीरी गरीबी का भेद , एक दूसरे से कुछ ज्यादा ही अपेक्षाए सामने आती दिख रही है। पहले जैसा अपनापन और स्नेह सरोकार भाई का बहन के प्रति, बहन का भाई के प्रति कम हो गया है। अगर हम इस सरोकार अपनेपन की नींव को हिलने से बचाने के लिये अगर थोड़ी समझदारी से काम लें तो यह पूनः कायम हो सकती है। और वह राखी का धागा ही हमें जोडने में सहायक होगा, जिससे हमारी दूरियां मिट जाएंगी। राखी एक ऐसा अटूट बंधन है और इस बंधन से हम दूबारा प्यार का बीज बोकर उसे पूनः नए रूप में उगा सकते है। एक बात है कि आज की भागदौड भरी जिंदगी में दोनों एक दूसरे से समय के अभााव मिलने में असमर्थ होने की कारण भी दूरियां बढ़ गई हैं। लेकिन हम उन सम्मबन्धों का पुनः बनाये रख्चाने के लिये उसकेा समय समय पर हम संचार साधनों के माध्यम उसे पुनः जीवित कर सकते है। लेकिन यह पहल दोंनों औरसे होनी चाहिये दोनों का एक दूसरे के पी्रति लगाव प्यार की भावाना होनी चाहिये। आज नौकरी की वजह से दूर जाने के कारण यह त्यौहार एक औपाचारिकता पूर्ण रह गई है। मंहगाई की वजह से भी त्यौहार की मिठास कम होने लगी है। इस राखी के पवित्र रिश्ते पर बाजार वाद हावी हो गया। आज भावनाओं से ज्यादा दिखावा हो गया है। बाजारवाद की वजह से गरीबी अमीरी सामने आई है अगर भाई के पास देने के लिये कुछ न हो तो भाई बहन के पास जाने से कतराता है। इस रिश्ते में जबदस्ती तोहफा की नही होनी चाहिए तो यह त्यौहार जीवंत पर्यन्त चलता रहेगा। दोनों से केवल प्यार होना चाहिए इन सब के बावजूद हमारी हिंदू धार्मिक परंपराएं अपने गरिमामय अस्तित्व को जीवंत रखने में पूर्ण सक्षम है।